शब्द का अर्थ
			 | 
		
					
				| 
					तर्ज					 :
				 | 
				
					पुं० [अ०] १. बनावट या रचना प्रणाली के विचार से किसी वस्तु का आकार-प्रकार या स्वरूप। किस्म। प्रकार। २. किसी वस्तु को आकार-प्रकार या स्वरूप देने का विशिष्ट ढंग, प्रकार या प्रणाली। तरह।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					तर्जन					 :
				 | 
				
					पुं० [सं०√तर्ज् (भर्त्सना करना)+ल्युट्-अन] १. कोई काम करने से किसी को रोकने के लिए क्रोधपूर्वक कुछ कहना या संकेत करना। २. डराना-धमकाना।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					तर्जना					 :
				 | 
				
					अ० [हिं० तर्जन] तर्जन करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					तर्जनी					 :
				 | 
				
					स्त्री० [सं० तर्जन+ङीष्] अँगूठे के पास की उँगली। विशेष–इस उँगली को होंठो पर रखकर अथवा खड़ी करके किसी को तर्जित किया जाता है इसी लिए इसका नाम यह पड़ा है।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					तर्जनी-मुद्रा					 :
				 | 
				
					स्त्री० [मध्य० स०] तंत्र की एक मुद्रा जिसमें बाएँ हाथ की मुट्ठी बाँधकर तर्जनी और मध्यमा को फैलाते हैं।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					तर्जिक					 :
				 | 
				
					पुं० [सं०√तज्+घञ्-इक] एक प्राचीन देश।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					तर्जित					 :
				 | 
				
					भू० कृ० [सं०√तर्ज+क्त] जिसका तर्जन किया गया हो। जिसे डाँटा-डपटा या डराया-धमकाया गया हो।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					तर्जुमा					 :
				 | 
				
					पुं० [अ०] अनुवाद। उलथा। भाषाँतर।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 |