शब्द का अर्थ
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					तवा					 :
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					पुं० [हिं० तवना=जलना] [स्त्री० अल्पा० तई, तवी, तोई, तौनी] १. लोहे की चादर का बना हुआ गोलाकार छोटा टुकड़ा जिस पर रोटी आदि पकाई जाती है। मुहावरा–तवा सिर से बाँधना=(क) बड़े-बड़े आघात या प्रहार सहने के लिए तैयार होना। (ख) अपने को खूब दृढ़ और सुरक्षित करना। तवे का हँसना=तवे के नीचे जमी हुई कालिख का तपकर लाल हो जाना और चमकने लगना जो घर में लड़ाईःझगड़ा होने का सूचक समझा जाता है। पद–तवे की बूँद=(क) इतना अल्प या कम जो तवे पर पड़ी हुई घी, तेल या पानी की बूँद के समान हो और तुरंत समाप्त हो जाय। (ख) बहुत ही अस्थायी और नश्वर। तवे सा मुँह-तवे के नीचेवाले भाग की तरह काली और कुरूप आकृति। २. उक्त आकार-प्रकार का लोहे का बहुत बड़ा गोल टुकड़ा। ३. मिट्टी या खपड़े का गोल ठीकरा जो चिलम में तमाकू के ऊपर और अंगारों या आग के नीचे रखा जाता है। पुं० [?] एक प्रकार की लाल मिट्टी जो प्रायः हींग में मिलावट करने के काम आती है।				 | 
			
			
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					तवाई					 :
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					स्त्री० [हिं० ताव-ताप] १. ताप। २. लू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					तवाखीर					 :
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					पुं० [सं० त्वक्रक्षीर या तवक्षीर] १. तबाशीर० तीखुर। २. वंशलोचन।				 | 
			
			
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					तवाजा					 :
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					स्त्री० [अ० तवाजः] आदर-सत्कार। खातिरदारी।				 | 
			
			
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					तवाना					 :
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					वि० [फा०] मोटा-ताजा। हृष्ट-पुष्ट स० [हिं० तवा] ढक्कन चिपका या बैठाकर बरतन का मुँह बन्द करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स०=तपाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					तवायफ					 :
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					स्त्री० [अ०] गाने-नाचने का पेशा करनेवाली वेश्या।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					तवारा					 :
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					पुं० [सं० ताप, हि० ताव] १. अत्यधिक गरमी। २. अत्यधिक गर्मी के कारण होनेवाला कष्ट। ३. जलन।				 | 
			
			
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					तवारीख					 :
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					स्त्री० [अ०] इतिहास। (दे०)।				 | 
			
			
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					तवारीखी					 :
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					वि० [अ०] ऐतिहासिक।				 | 
			
			
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					तवालत					 :
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					स्त्री० [अ०] १. तबील अर्थात् लंबे होने की अवस्था या भाव। लंबाई। २. किसी काम में होनेवाली ऐसी झंझट या बखेड़ा जिससे उसके संपादन में प्रायः व्यर्थ का विस्तार हो या अधिक समय लगे।				 | 
			
			
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