शब्द का अर्थ
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					तिरक					 :
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					पुं० [सं० त्रिक] १.रीढ़ के नीचे का वह स्थान जहाँ दोनों कूल्हों की हड्डियाँ मिलती है। २. दोनों टाँगों के ऊपरवाले जोड़ का स्थान। ३. हाथी के शरीर का वह पिछला भाग जहाँ से दुम निकलती है।				 | 
			
			
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					तिरकट					 :
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					पुं० [?] आगे का पाल। अगला पाल। (लश०)				 | 
			
			
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					तिरकट गावी					 :
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					पुं० [?] सिरे का पाल (लश०)।				 | 
			
			
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					तिरकट डोल					 :
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					पुं० [?] आगे का मस्तूल। (लश०)।				 | 
			
			
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					तिरकट तवर					 :
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					पुं० [?] एक तरह का छोटा पाल जो जहाज के सब से ऊंचे मस्तूल पर लगाया जाता है। (लश०)				 | 
			
			
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					तिरकट सवर					 :
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					पुं० [?] जहाज में लगा रहनेवाला सबसे ऊँचा पाल। (लश०)।				 | 
			
			
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					तिरकट सवाई					 :
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					पुं० [?] एक तरह का पाल (लश०)।				 | 
			
			
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					तिरकट, गावा सवाई					 :
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					पुं० [?] जहाज का आगे का और सबसे ऊपरवाला पाल (लश०)।				 | 
			
			
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					तिरकना					 :
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					अ० [अनु०] तिर शब्द करते हुए किसी चीज का टूटना या फटना। अ०-थिरकना।				 | 
			
			
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					तिरकस					 :
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					वि० [सं०तिरस्] १.तिरक्षा० २.टेढ़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					तिरकाना					 :
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					स० [?] रस्सा या और कोई बन्धन ढीला छोड़ना (ल०)। अ०–थिरकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					तिरकुटा					 :
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					पुं० [सं० त्रिकूट] पीपल, मिर्च और सोंठ ये तीनों एक में मिली हुई कड़वी वस्तुएँ।				 | 
			
			
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