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तुर  : अव्य० [सं०√तुर् (जल्दी करना)+क] शीघ्र। जल्द। वि० बहुत तेज चलनेवाला। वेगवान। शीघ्रगामी। पुं० [?] १. करघे की वह मोटी लकड़ी जिस पर बुना हुआ कपड़ा लपेटा जाता है। २. वह बेलन जिस पर बुना हुआ गोटा लपेटा जाता है।
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तुरई  : स्त्री० [सं० तूर-तुरही बाजा] तोरी नाम की बेल जिसके लंबे फलों की तरकारी बनाई जाती है। तोरी। पद–तुरई के फूल सा=(क) बहुत ही कोमल और हलका। (ख) जिसका कोई विशेष महत्त्व, मान या मूल्य न हो। जैसे–तुरई के फूल-से इतने रुपए उड़ गये, पर काम कुछ भी न हुआ। स्त्री०=तुरही।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तुरक  : पुं०=तुर्क।
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तुरकटा  : पुं० [फा० तुर्क+हिं० टा (प्रत्यय)] मुसलमान। (उपेक्षा तथा घृणा सूचक)।
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तुरकान  : पुं० [फा० तुर्क] १. तुर्क देश। २. तुर्की की बस्ती।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तुरकाना  : पुं० [फा० तुर्क०] मुसलमान। वि० तुर्कों का-सा।
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तुरकिन  : स्त्री० [फा० तुर्क] १. तुर्क जाति की स्त्री।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) २. मुसलमान स्त्री।
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तुरकिस्तान  : पुं०=तुर्की (देश)।
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तुरकी  : वि० [फा०] तुर्क देश का। पुं० पश्चिमी एशिया का एक प्रसिद्ध देश। तुर्की। स्त्री० उक्त देश की भाषा।
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तुरंग  : वि० [सं० तुर√गम् (जाना)+ख, मुम्] जल्दी करनेवाला। पुं० १. घोड़ा। २. चित्त या मन जो बहुत जल्दी हर जगह पहुँच सकता है। ३. सात की संख्या।
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तुरग  : वि० [सं० तुर√गम् (जाना)+ड] तेज चलनेवाला। पुं० १. घोड़ा। २. चित्त। मन।
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तुरग-गंधा  : स्त्री० [ब० स० टाप्] अश्वगंधा। असगंध।
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तुरंग-गौड़  : पुं० [सं० कर्म० स० ?] संगीत में गौड़ राग का एक भेद।
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तुरग-दानव  : पुं० [मध्य०.स०] एक दैत्य जो कंस के आदेशानुसार घोड़े का रूप धारण करके कृष्ण को मारने गया था।
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तुरंग-द्वेषिणी  : स्त्री० [सं० तुरंग√द्विष् (द्वेष करना)+णिनि=ङीप्] भैंस। महिषी।
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तुरग-ब्रह्मचर्य  : पुं० [ष० त०] वह ब्रह्मचर्य जो केवल स्त्री की अप्राप्ति के कारण चलता हो।
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तुरंग-वक्त्र  : वि० [ब० स०] जिसका मुँह घोड़े के मुँह की तरह लंबा हो। पुं० किन्नर।
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तुरंग-वदन  : पुं० [ब० स०] किन्नर।
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तुरंग-शाला  : स्त्री० [ष० त०] घुड़सवार। अस्तबल।
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तुरंगक  : पुं० [सं० तुरंग√कै (शब्द करना)+क] बड़ी तोरी (फल)।
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तुरंगप्रिय  : पुं० [ष० त०] जौ। यव।
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तुरंगम  : वि० [सं० तुर√गम् (जाना) खच्, मुम्] जल्दी चलनेवाला। पुं० १. घोड़ा। २. चित्त। मन। ३. एक वर्ण-वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में दो नगण और दो गुरु होते हैं।
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तुरंगमी(मिन्)  : पुं० [सं० तुरङम+इनि] अश्वारोही। घुड़सवार।
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तुरंगारि  : पुं० [तुरंग-अरि, ष० त०] १. कनेर। करवीर। २. भैंसा।
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तुरगारोह  : पुं० [सं० तुरग+आ√रूह् (चढ़ना)+अच्] अश्वारोही।
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तुरगास्तरण  : पुं० [सं० तुरग-आस्तरण, मध्य० स] घोड़े की पीठ पर बिछाया जानेवाला कपड़ा। पलान।
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तुरंगिका  : स्त्री० [सं० तुरंग+ठन्-इक] देवदाली। घघरबेल।
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तुरंगी  : स्त्री० [सं० तुरंग+अच्-ङीष्] अश्वगंधा। असगंध।
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तुरगी  : स्त्री० [सं० तुरग+ङीष्] १. घोड़ी। २. [तुरग+अच्-ङीष्] अश्वगंधा या असगंध नाम की ओषधि। पुं० [सं० तुरग+इनि] घुड़सवार।
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तुरगुला  : पुं० [देश०] १. कान में पहनने का झुमका। २. लटकन लोलक।
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तुरगोपचारक  : पुं० [सं० तुरग-उपचारक, ष० त०] साईस।
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तुरंज  : पुं० [फा० तुरुंज] १. चकोतरा। नीबू। २. बिजौरा नीबू। ३. सूई-धागे से कपड़े पर बनाई जानेवाली एक तरह की बूटी।
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तुरंजबीन  : स्त्री० [फा०] १. एक प्रकार की चीनी जो खुरासान देश में प्रायः ऊँटकटार के पौधों पर ओस के साथ जमती है। २. नीबू के रस का शरबत। शिकंजवी।
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तुरंत  : क्रि० वि० [सं० तुर-वेग, जल्दी] १. ठीक इसी समय। २. जितनी जल्दी हो सके। जल्दी के जल्दी।
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तुरत  : अव्य०=तुरंत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तुरंता  : पुं० [हिं० तुरंत] गाँजा (जिसका नशा पीते ही तुरंत चढ़ता है।)।
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तुरतुरा  : वि० [सं० त्वरा] [स्त्री० तुरतुरी] १. वेगवान। तेज। २. जल्दबाज। ३. जल्दी-जल्दी या तेज बोलनेवाला।
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तुरतुरिया  : वि०=तुरतुरा।
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तुरपई  : स्त्री० [हिं० तुरपना] एक प्रकार की सिलाई। तुरपन।
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तुरपन  : स्त्री० [हिं० तुरपन] १. तुरपने की क्रिया या भवा। २. सीयन।
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तुरपना  : स० [हिं० तूर-नीचे+पर-ऊपर+ना (प्रत्यय)०] १. सूई धागे से बड़े-बड़े और कच्चे टाँके लगाना। तोपे भरना या लगाना। २. सीना।
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तुरपवाना  : स० [हिं० तुरपना का प्रे०] तुरपने का काम किसी के कराना।
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तुरपाना  : स०=तुरपवाना।
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तुरबत  : स्त्री० [अ० तुर्बत] कब्र।
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तुरंबीन  : स्त्री० [?] भवासे की जड़ की शर्करा जो दवा के काम आती है तथा जो वैद्यक में ज्वरहर तथा अग्निप्रदीपक मानी जाती है और पुरानी होने पर दस्तावर होती है।
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तुरम  : पुं० [सं० तूरम] तुरही।
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तुरमती  : स्त्री० [तु० तुरमता] एक प्रकार की शिकारी चिड़िया।
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तुरमनी  : स्त्री० [देश०] नारियल की खोपड़ी रेतने की एक तरह की रेती।
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तुरय  : पुं० [सं० तुरग] [स्त्री० तुरी] घोड़ा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तुररा  : पुं०=तुर्रा।
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तुरसीदास  : पुं० [सं०] मध्यकाल के एक प्रसिद्ध सगुणोपासक भक्त कवि जिन्होंने रामचरितमानस विनय-पत्रिका आदि बारह ग्रंथ रचे थे।
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तुरसीला  : वि० [फा० तुर्का-खट्टा] १. तीखा। २. घायल करनेवाला। उदाहरण–करधनी शब्द हैं तुरसीले ।–नारायण स्वामी।
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तुरही  : स्त्री० [सं० तूर] फूँककर बजाया जानेवाला एक तरह का लंबा बाजा।
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तुरा  : पुं० [सं० तुरग] घोड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [सं० तूरा] जल्दी। शीघ्रता। पुं० तुर्रा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तुराई  : अव्य० [हिं० तुराना] १. आतुरतापूर्वक। २. जल्दी से।
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तुराई  : स्त्री० [सं० तूल-रूई, तूलिका-गद्दा] १. रूई भरा हुआ गुदगुदा बिछावन। गद्दा। तोसक। २. ओढ़ने की हलकी रजाई। तुलाई। दुलाई।
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तुराट  : पुं० [सं० तुरग] घोड़ा। (डिं०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तुराना  : अ० [सं० तुर] १. आतुर होना। २. जल्दी मचाना। स०=तुड़ाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तुरायण  : पुं० [सं०√तुर् (शीघ्रता)+क, तुर+फक्-आयन] चैत्र शुक्ल पंचमी और वैशाख शुक्ल पंचमी को होनेवाला एक प्रकार का यज्ञ।
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तुरावत  : वि० [सं० त्वरावत्] [स्त्री० तुरावती] वेगपूर्वक चलनेवाला।
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तुरावान  : वि०=तुरावत।
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तुराषाट्  : पुं० [सं० तुर√सह् (सहना)+णिच्+क्विप्, दीर्घ] इन्द्र।
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तुरास  : पुं० [सं० तुर] वेग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) क्रि० वि० १. वेगपूर्वक। २. जल्दी से।
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तुरासाह  : पुं०=तुराषाट्।
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तुरिया  : वि० स्त्री०=तुरीय। स्त्री० दे० ‘तोरिया’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तुरी  : स्त्री० [सं० तुरगी] १. घोड़ी। २. घोड़े की लगाम पुं० घुड़सवार। स्त्री० [सं० त्वरा] जल्दबाजी। शीघ्रता। वि० स्त्री० जल्दी या तेज चलनेवाली। स्त्री०[ अ० तुर्रा] १. फूलों का गुच्छा। २. मोतियों सूतों आदि का वह झब्बा जो सोभा के लिए पगड़ी आदि में लगाया जाता है। ३. जुलाहों की वह कूँची जिससे वे ताने के सूत बराबर करते हैं। स्त्री०=तुरही।
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तुरी-यंत्र  : पुं० [सं०] वह यंत्र जिसके द्वारा सूर्य की गति जानी जाती है।
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तुरीय  : वि० [सं० चतुर+छ–ईय, चलोप] चतुर्थ। चौथा। स्त्री० १. वाणी का वह रूप या अवस्था जब वह मुँह से उच्चरित होती है। बैखरी। २. प्राणियों की चार अवस्थाओं में से अन्तिम अवस्था जो ब्रह्म में होनेवाली लीनता या मोक्ष है। (वेदान्त)। पुं० निर्गुण ब्रह्म।
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तुरीय-वर्ण  : वि० [ब० स०] (व्यक्ति) जो चौथे वर्ण का अर्थात् शूद्र हो पुं० शूद्र।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तुरुक  : पुं०=तुर्क।
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तुरुप  : पुं० [अं० ट्रप] कुछ विशिष्ट ताश के खेलों में वह रंग जो प्रधान मान लिया जाता है तथा जिसके छोटे से छोटा पत्ता दूसरे रंग के बड़े से बडे पत्ते को काट या माल सकता है। पुं० [अं० ट्रप=सेना] १. सेना की टुकड़ी या दास्ता। २. घुड़सवारों का रिसाला।
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तुरुपना  : स०=तुरपना।
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तुरुष्क  : पुं० [सं० तुरुस्+कन्] १. तुर्किस्तान का रहनेवाला व्यक्ति। २. तुर्क देश में बसनेवाली जाति। तुर्क। ३. तुर्किस्तान या तुर्की देश। ४. उक्त देश का घोड़ा। ५. लोबान जो पहले उक्त देश से आता था।
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तुरुष्क-गौड़  : पुं०=तुरंग गौड़।
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तुरुही  : स्त्री०=तुरही।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तुरै  : पुं० [सं० तुरंग] घोड़ा। उदाहरण–जोबन तुरै हाथ गहि लीजै।–जायसी।
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तुरैया  : स्त्री०=तोरी।
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तुर्क  : पुं० [सं० तुरुष्क से तु०] १. तुर्किस्तान का निवासी। २. मुसलमान। ३. सैनिक।
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तुर्क-चीन  : पुं० [?] सूर्य।
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तुर्क-सवार  : पुं० [फा० तुर्क+फा० सवार] घुड़सवार।
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तुर्कमान  : पुं० [फा० तुर्क] १. तुर्क जाति का व्यक्ति। २. तुर्की घोड़ा जो बहुत बढ़िया होता है।
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तुर्किन  : स्त्री०=तुरकिन।
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तुर्किनी  : स्त्री०=तुरकिन।
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तुर्किस्तान  : पुं० [फा०] पश्चिमी एशिया का एक राज्य जहाँ तुर्क जाति रहती है।
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तुर्की  : वि० [फा०] तुर्किस्तान का। तुर्किस्तान में होनेवाला। जैसे–तुर्की घोड़ा। पुं० १. तुर्किस्तान देश। २. तुर्किस्तान का घोड़ा। स्त्री० १. तुर्किस्तान की भाषा। २. तुर्की की सी ऐंठ,शान या शेखी। अकड़। मुहावरा–(किसी को) तुर्की-बतुर्की जबाब देना-किसी के उग्र या तीव्र कथन या व्यवहार का वैसा ही उत्तर देना। (किसी की) तुर्की तमाम होना-अकड़ ऐंठ या घमंड नष्ट या समाप्त होना।
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तुर्की-टोपी  : स्त्री० [हिं०] एक प्रकार की गोलाकार ऊँची या कुछ लंबी और फूँदनेदार टोपी जो पहले तुर्क लोग पहना करते थे।
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तुर्फरी  : पुं० [सं०√तृफ्+हिंसा करना)+अरी(बा०)] अंकुश का अगला नुकीला सिरा।
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तुर्य  : वि० [सं० चतुर+यत्, च का लोप] १. चौथा। २. चौगुना।
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तुर्या  : स्त्री० [सं० तुर्य+टाप्] प्राणियों की चार अवस्थाओं में से अन्तिम अवस्था जो ब्रह्म में होनेवाली लीनता या मोक्ष है। (वेदांत)।
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तुर्याश्रम  : पुं० [सं० तुर्य-आश्रम, कर्म० स] चौथा आश्रम। संन्यास।
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तुर्रा  : पुं० [अ० तुरः] १. घुँघराले बालों की लट जो इधर-उधर या माथे पर लटकती है। काकुल। २. कुछ पक्षियों के सिर पर की परों या बालों की चोटी। कलगी। ३. टोपी, पगड़ी आदि में खोंसा या लगाया जानेवाला पक्षियों का सुदंर पर, फूलों का गुच्छा अथवा बादले, मोतियों आदि का लच्छा। कलगी। गोशवारा। ४. किसी चीज या बात में होनेवाली ऐसी विलक्षण विशेषता जो उस चीज या बात को दूसरी चीजों या बातों से भिन्न और श्रेष्ठ सिद्ध करती हो। विशेष–परिहास या व्यंग्य में इस शब्द का प्रयोग अनोखी असंबद्धता सूचित करने के लिए होता है। जैसे–जबरदस्ती हमारी किताब भी उठा ले गये, तिस पर तुर्रा यह कि हमें ही चोर (या झूठा) बनाते हैं। ५. किसी चीज में लगाया हुआ सुंदर किनारा या हाशिया। ६. मकान का छज्जा। ७. कोड़ा। चाबुक। मुहावरा–तुर्रा करना=(क) कोड़ा या चाबुक मारना। (ख) उत्तेजित या प्रोत्साहित करना। ८. एक प्रकार की बुलबुल जो जाड़े भर भारतवर्ष के पूर्वीय भागों में रहती है, पर गरमी में चीन और साइबेरिया की ओर चली जाती है। ९. एक प्रकार की बटेर। डुबकी। १॰. जटाधारी या मुर्गकेश नाम का पौधा और उसका फूल। गुलतर्रा। ११. मुहांसे आदि का ऊपरी नुकीला भाग। कील। वि० [फा०] अनोखा। विलक्षण। पुं० [?] दूध, भाँग आदि का थोड़ा-थोड़ा करके लिया जानेवाला घूँट। (क्व०) मुहावरा–तुर्रा चढ़ाना या जमाना-खूब ढेर सी भाँग पीना।
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तुर्वसु  : पुं० [सं०] राजा ययाति का एक पुत्र जो देवयानी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था और जिसने पिता के माँगने पर उसे अपना यौवन नहीं दिया था।
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तुर्श  : वि० [फा०] [भाव० तुर्शी] खट्टा।
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तुर्शरू  : वि,० [फा०] तीखे मिजाजवाला। कटु-भाषी।
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तुर्शाई  : स्त्री०=तुर्शी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तुर्शाना  : अ० [फा० तुर्श] खट्टा हो जाना। स० खट्टा करना या बनाना।
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तुर्शी  : स्त्री० [फा०] १. तुर्श होने की अवस्था या भाव। अम्लता। खट्टापन। २. खटाई।
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तुर्शीदंदाँ  : स्त्री० [फा०] घोड़ों का एक योग जिसमें उसके दाँतों पर मैल जमने लगती है।
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