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नमक  : पुं० [फा०] एक प्रसिद्ध क्षार पदार्थ जो मुख्यतः खारे जल से तैयार किया जाता है और कहीं-कहीं चट्टानों के रूप में भी मिलता है। लवण। पद—नमक-हराम, नमक- हलाल। (देखें) मुहा०—(किसी का) नमक अदा करना= किसी के किये हुए उपकारों का कृतज्ञतापूर्वक पूरा पूरा प्रतिफल देना। (किसी का) नमक खाना=किसी का दिया हुआ अन्न खाना। किसी के आश्रय में रहकर पलना। (किसी का) नमक फूटकर निकलना=स्वामी या आश्रयदाता के प्रति कृतघ्न होने या उसकी बुराई करने का दंड मिलना। कृतघ्नता का बुरा फल मिलना। (किसी बात में) नमक- मिर्च मिलाना या लगाना=कोई बात बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर और अतिरिक्त तथा आकर्षक बनाकर कहना। कटे पर नमक छिड़कना=ऐसा काम करना या ऐसी बात कहना जिससे दुःखी व्यक्ति और अधिक दुःखी हो। २. लावण्य। सलोनापन।
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नमक-ख्वार  : वि० [फा०] (व्यक्ति) जिसने किसी का नमक खाया हो। किसी के द्वारा पालित होनेवाला।
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नमक-हराम  : वि० [फा०+अ०] [भाव० नमक-हरामी] जो अपने आश्रयदाता,उपकारक या स्वामी के प्रति कृतज्ञ न रहकर उसका अहित करता हो या चाहता हो। कृतघ्न।
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नमक-हरामी  : स्त्री० [फा० नमक+अ० हराम+ई (प्रत्य०)] १. नमक हराम होने की अवस्था या भाव। २. नमक हराम का अन्नदाता या आश्रयदाता के प्रति किया जानेवाला कोई द्रोहपूर्ण कार्य। वि०=नमक-हराम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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नमक-हलाल  : वि० [फा०+अ०] [भाव० नमक-हलाली] जो अपने आश्रयदाता, उपकारक या स्वामी की कृपा के लिए उसका उपकार मानने और उसकी भलाई करने के लिए सदा तत्पर रहे।
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नमक-हलाली  : स्त्री० [फा० नमक+हलाल+ई (प्रत्य०)] १. नमक हलाल होने का भाव। स्वामिनिष्ठा। स्वामिभक्त। २. ऐसा कार्य जिससे उपकारक या स्वामी के प्रति कृतज्ञता और भक्ति प्रकट होती हो।
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नमकदान  : पुं० [फा०] [स्त्री० अल्पा० नमकदानी] पिसा हुआ नमक रखने का पात्र।
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नमकसार  : पुं० [फा०] १. वह स्थान जहाँ से नमक निकलता हो। २. वह खेत जिसमें समुद्र-जल से नमक तैयार किया जाता है।
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