शब्द का अर्थ
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					निःसार					 :
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					वि० [सं० निर्–सार, ब० स०] १. (पदार्थ) जिसमें कुछ भी सार न हो। थोथा। २. जिसका कुछ भी महत्त्व न हो। महत्त्हीन। ३. जिससे कोई प्रयोजन सिद्ध न हो सके। निर्रथक। व्यर्थ। पुं० १. शाखोट या सिहोर नामक वृक्ष। २. सोनपाढ़ा।				 | 
			
			
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					निःसारण					 :
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					पुं० [सं० निर्√सृ+णिच्+ल्युट्–अन] [भू० कृ० निःसरित] १. कोई चीज निकालने, विशेषतः बाहर निकालने की क्रिया या भाव। २. निकालने का मार्ग। निकास। ३. वनस्पतियों की गाँठों या शरीर की गिल्टियों का अपने अंदर से कोई तत्त्व या तरल अंश बाहर निकालना जो अंगों को विशुद्ध और ठीक दशा में रखने या ठीक तरह से चलाने के लिए आवश्यक होता है। ४. इस प्रकार निकलनेवाला कोई पदार्थ। (सीक्रेशन)				 | 
			
			
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					निःसारा					 :
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					स्त्री० [सं० निर्–सार, ब० स०, टाप्] कदली। केला।				 | 
			
			
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					निःसारित					 :
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					भू० कृ० [सं० निर्√स्+णिच्+क्त] १. निकला हुआ। २. बाहर किया हुआ।				 | 
			
			
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					निःसारु					 :
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					पुं० [सं० निर्–सीमन्, ब० स०] ताल के साठ भेदों में से एक।				 | 
			
			
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