शब्द का अर्थ
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निका :
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पुं०=निकाह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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निकाई :
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स्त्री० [हिं० नीका=अच्छा] १. अच्छापन। २. अच्छाई। ३. खूबसूरती। सुन्दरता। स्त्री० [हिं० निकाना] खेत में से घास-पात काटकर अलग करने की क्रिया, भाव या मजदूरी। निराई। पुं०=निकाय। |
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निकाज :
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वि० [हिं० नि+काज]=निकम्मा। |
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निकाना :
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स० [?] नाखून गड़ाना या चुभाना। स०=निराना (खेत)। |
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निकाम :
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वि० [हिं० नि+काम] १. जिसे कोई काम न हो। २. निकम्मा। वि०=निष्काम। क्रि० वि० व्यर्थ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) वि० [?] प्रचुर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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निकाय :
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पुं० [सं० नि√चि (चयन)+घञ्, कुत्व] १. झुंड। समूह। २. प्राचीन भारत में कुछ विशिष्ट संप्रदाय, विशेषतः बौद्ध धर्म के वे संप्रदाय जिनकी संख्या अशोक के समय में १8 तक पहुँच चुकी थी। ३. दे० ‘समुदाय’। ४. एक ही प्रकार की वस्तुओं का ढेर या राशि। ५. रहने का स्थान। निवास स्थान। निलय। ६. परमात्मा। |
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निकाय्य :
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पुं० [सं० नि√चि+ण्यत् नि० सिद्धि्] घर। गृह। |
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निकार :
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पुं० [सं० नि√कृ (करना)+घञ्] १. पराभव। हार। २. अपकार। ३. अपमान। ४. तिरस्कार। ५. ईख या गन्ने का रस पकाने का कड़ाहा। ६. दे० ‘निकासी’। |
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निकारण :
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पुं० [सं० नि√कृ (मारना)+णिच्+ल्युट्–अन] मारण। वध। |
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निकारना :
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स०=निकालना। |
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निकारा :
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वि० [फा० नाकार] [स्त्री० निकारी] १. तुच्छ। निकम्मा। २. खराब। बुरा। उदा०–हरी चंद काहु नहिं जान्यो मन की रीति निकारी।–भारतेन्दु।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निकाल :
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पुं० [हिं० निकालना] १. निकलने की क्रिया, ढंग या भाव। २. निकलने का मार्ग। निकास। ३. कठिनाई, संकट आदि से निकलने का ढंग या युक्ति। जैसे–कुश्ती में किसी दाँव या पेंच का निकाल। ४. विचार, विवेचन आदि के फलस्वरूप निकलनेवाला परिणाम या सिद्धान्त। |
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निकालना :
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स० [सं० निष्कासन, पुं० हिं० निकासना] १. जो अंदर हो, उसे बाहर करना या लाना। निर्गत या बहिर्गत करना। जैसे–अलमारी में से किताबें, बरतन में से घी या संदूक में से कपड़े निकालना। संयो० क्रि०–देना।–लेना। २. किसी को किसी क्षेत्र, परिधि, मर्यादा, सीमा आदि में से किसी प्रकार या रूप में अलग, दूर या बाहर करना। जैसे–किसी को दल, बिरादरी, संस्था समाज आदि से निकालना। संयो० क्रि०–देना। मुहा०–(किसी को कहीं से) निकाल ले जाना=किसी प्रकार के घेरे, बंधन सीमा आदि में से छल या बल-पूर्वक अपने अधिकार में करके अपने साथ ले जाना। जैसे–(क) किसी स्त्री को उसके घर से निकाल ले जाना। (ख) कैदी को जेल से निकाल ले जाना। (ग) किसी के यहाँ से कुछ माल निकाल ले जाना। ३. कहीं छिपी, ठहरी या रुकी हुई चीज किसी प्रकार वहाँ से हटाकर अपने हाथ में लाना या लेना। बाहर करना या लाना। जैसे–(क) कूएँ में से पानी, खान में से सोना, फोड़े में से मवाद या म्यान में से तलवार निकालना। (ख) किसी के यहाँ से चोरी का माल निकालना। ४. किसी चीज में पड़ी या मिली हुई अथवा उसके साथ जुड़ी, बंधी या लगी हुई कोई दूसरी चीज अलग या दूर करना अथवा हटाना। जैसे–(क) चावल या दाल में से कंकड़ियाँ निकालना। (ख) कान में से बाली या नाक में से नथ निकालना। ५. किसी वस्तु में से कोई ऐसी दूसरी वस्तु किसी युक्ति से अलग या दूर करना, जो उसमें ओत-प्रोत रूप में मिली हुई या व्याप्त हो। जैसे–(क) कपड़ों में की मैल, बीजों में से तेल या पत्तियों में से रस निकालना। ६. किसी को किसी कठिन, विकट या संकटपूर्ण स्थिति आदि से बाहर करके उसका उद्धार करना। जैसे–आपने ही मुझे इस विपत्ति से निकाला है। मुहा०–(किसी को या कोई चीज कहीं से) निकाल ले जाना=चुरा-छिपाकर या युक्ति-पूर्वक संकटों आदि से बचते हुए सुरक्षित रूप में कहीं ले जाना। जैसे–शिवाजी के साथी उन्हें औरंगजेब की कैद से निकाल ले गये। ७. किसी चीज, तत्त्व या बात को उसके स्थान से इस प्रकार हटाकर अलग या दूर करना कि उसका अंत, नाश या समाप्ति हो जाय। न रहने देना। अस्तित्व मिटाना। जैसे–(क) दवा से शरीर का रोग या विकार निकालना। (ख) शहर से गंदगी निकालना। (ग) किसी वस्तु या व्यक्ति के दुर्गुण या दोष निकालना। (घ) किसी की चालाकी या शेखी निकालना। ८. किसी कार्य या पद पर नियुक्त व्यक्ति को वहाँ से हटाकर अलग या दूर करना। पद, नौकरी, सेवा आदि से हटाना। जैसे–छँटनी में दस आदमी इस विभाग से भी निकाले गये हैं। ९. एक में मिली हुई बहुत-सी चीजों में से कोई चीज या कुछ चीजें किसी विशिष्ट उद्देश्य से बाहर करना या सामने लाना। जैसे–दूकानदार अपने यहाँ की तरह-तरह की चीजें निकाल कर ग्राहकों को दिखाते हैं। संयो० क्रि०–देना।–लाना।–लेना। १॰. किसी बड़ी राशि में से कोई छोटी राशि अलग, कम या प्रथक् करना। जैसे–इसमें से से भर दूध (या गज भर कपड़ा) निकाल दो। संयो० क्रि०–डालना।–देना।–लेना। ११. कहीं रखी हुई अपनी कोई चीज या उसका कुछ अंश वहाँ से उठा या लेकर अपने अधिकार या हाथ में करना। जैसे–(क) किसी के यहाँ से अपनी धरोहर निकालना। (ख) बैंक से रुपये निकालना। १२. देन, प्राप्य आदि के रूप में किसी के जिम्मे कोई रकम ठहरना। बाकी लगाना। जैसे–वे तो अभी और सौ रुपए तुम्हारी तरफ निकालते हैं। १३. कोई चीज बेचकर या और किसी रूप में अपने अधिकार, नियंत्रण, वश आदि से अलग या बाहर करना। जैसे–(क) वे यह मकान भी निकालना चाहते हैं। (ख) यह दूकानदार अपने यहाँ की पुरानी और रद्दी चीजें निकालने में बहुत होशियार है। १४. कोई ऐसी चीज या बात नये सिरे से आरंभ करके प्रचलित या प्रत्यक्ष करना, जो पहले न रही हो। नवीन रूप में जारी या प्रचलित करना। जैसे–नया कानून, कायदा या रीति निकालना। १५. अविष्कार, उपज्ञा, सूझ आदि के फलस्वरूप कोई नई चीज या बात बनाकर या और किसी प्रकार करना या सबके सामने लाना। जैसे–(क) आज-कल के वैज्ञानिक नित्य नये यंत्र (या सिद्धांत) निकालते रहते हैं। (ख) आपके तर्क (या मत) में उसने बहुत-से दोष निकाले हैं। १६. उपाय, युक्ति आदि के संबंध में, सोच-विचारकर नये सिरे से और ऐसे रूप में कोई बात सामने रखना या लाना जो पहले अपने आपको या औरों को न सूझी हो। जैसे–उद्देश्य पूरा करने की कोई नई तरकीब या नया रास्ता निकालना। १७. किसी गूढ़ तत्त्व, बात या विषय का आशय, रहस्य या रूप स्पष्ट करना, सामने रखना या लाना। खोलकर प्रकट करना। जैसे–(क) किसी वाक्य या शब्द का अर्थ निकालना। (ख) कहीं जाने के लिए मुहूर्त निकालना। संयो० क्रि०–देना।–लेना। १८. किसी प्रश्न या समस्या का ठीक उत्तर या समाधान प्रस्तुत करना। मीमांसा या हल करना। जैसे–(क) गणित के प्रश्नों के उत्तर निकालना। (ख) किसी मामले का कोई हल निकालना। १९. अपना उद्देश्य, कार्य या मनोरथ सफल या सिद्ध करना। जैसे–अभी तो किसी तरह उनसे अपना काम निकालो, फिर देखा जायगा। संयो० क्रि०–लेना। २0. कोई ऐसी नई वास्तु-रचना प्रस्तुत करना, जो किसी दिशा में दूर तक चली गई हो। जैसे–कहीं से कोई नई नहर रेल की लाइन या सड़क निकालना। २१. किसी प्रकार की रचना करने के समय उसका कोई अंग इस प्रकार प्रस्तुत करना कि वह अपने प्रथम या साधारण रूप अथवा नियत रेखा से कुछ आगे बढ़ा हुआ हो। जैसे–मिस्तरी ने इस दीवार का एक कोना कुछ आगे निकाल दिया है। २२. किसी पदार्थ को छेदते या भेदते हुए कोई चीज एक दिशा या पार्श्व से उसकी विपरीत दिशा या पार्श्व में पहुँचाना या ले जाना।किसी के आर-पार करना। जैसे–पेड़ के तने पर तीर (या गोली) चलाकर उसे दूसरी ओर निकालना। २३. पुस्तकों, समाचार-पत्रों, सूचनाओं आदि के संबंध में छापकर अथवा और किसी प्रकार प्रचारित करना या सब के सामने लाना। जैसे–अखबार या विज्ञापन निकालना। २४. शब्द या स्वर कंठ या मुँह (अथवा वाद्य-यंत्रों आदि) से उत्पन्न या बाहर करना। जैसे–(क) गले से आवाज या मुँह से बात निकालना। (ख) तबले, सारंगी या सितार से बोल निकालना। २५. किसी प्रकार की चर्चा, प्रसंग या विषय आरंभ करना। छेड़ना। जैसे–अपने भाषण में उन्होंने यह प्रसंग निकाला था। २६. सलाई, सूई आदि से बनाये जानेवाले कामों के संबंध में, कढ़ाई, बुनाई आदि के रूप में बनाकर तैयार या प्रस्तुत करना। जैसे–(क) दिन भर में एक गुलूबंद या मोजा निकालना। (ख) कसीदे के काम में बेल-बूटे निकालना। २७. दल आदि के रूप में कुछ लोगों को साथ करके किसी ओर से या कहीं ले जाना। जैसे–जुलूस या बारात निकालना। २८. जुताई, सवारी आदि के कामों में आनेवाले पशुओं के सम्बन्ध में उन्हें सधा या सिखाकर इस योग्य बनाना कि वे जुताई, ढुलाई, सवारी आदि के काम में ठीक तरह आ सकें। जैसे–यह घोड़ा (या बैल) अभी निकाला नहीं गया है, अर्थात् अभी सवारी (या हल में जोते जाने) के योग्य नहीं हुआ है। २९. समय, स्थिति आदि के सम्बन्ध में किसी प्रकार निर्वाह करते हुए उसे पार या व्यतीत करना। जैसे–यह जाड़ा तो हम इस कोट से निकाल ले जायँगे। संयो० क्रि०–देना।–ले जाना।–लेना। |
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निकाला :
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पुं० [हिं० निकालना] १. निकलने या निकालने की क्रिया, ढंग या भाव। जैसे–अब घर से जल्दी निकाला नहीं होता। २. किसी स्थान से बाहर निकाले जाने का दंड या सजा। जैसे–देश-निकाला। क्रि० प्र०–देना।–मिलना। |
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निकाश :
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पुं० [सं० नि√काश् (चमकना)+घञ्] १. दृश्य। २. क्षितिज। ३. समीपता। ४. अनुरूपता। |
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निकाष :
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पुं० [सं० नि√कष् (खरोंचना)+घञ्] १. खुरचना। २. रगड़ना। |
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निकास :
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पुं० [सं० निष्कास, हिं० निकसना] १. निकसने अर्थात् निकलने की क्रिया या भाव। २. वह उद्गम स्थान जहां से कोई चीज निकल या बनकर पूर्णतया प्रकट रूप में सामने आती हो। ३. वह मार्ग या विस्तार जिसमें से होकर कोई चीज जाती हो। ४. घर आदि से निकलने का द्वार, विशेषतः मुख्य द्वार। ५. खुला हुआ स्थान। मैदान। ६. आमदनी या आय का रास्ता। ७. आमदनी। ८. विपत्ति, संकट आदि से बचने की युक्ति। ९. दे० ‘निकासी’। पुं० [सं० निकाश] समानता। उदा०–सनीर जीमूत-निकास सोभहिं।–केशव। |
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निकास-पत्र :
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पुं० [हिं० निकास+सं० पत्र] वह पत्र जिसमें किसी दुकान, संस्था आदि के जमा खरच, बचत आदि का विवरण दिया हो। रवन्ना। |
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निकासना :
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स०=निकालना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निकासी :
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स्त्री० [हिं० निकास] १. निकलने या निकालने की क्रिया, ढंग या भाव। २. व्यक्ति का घर से बाहर निकलने विशेषतः काम-काज या यात्रा के लिए बाहर निकलने का भाव। ३. दुकान में रखे हुए अथवा कारखानों आदि में तैयार होनेवाले माल का बिकना और बाहर आना। ४. वह माल जितना उक्त रूप में निकलकर बाहर जाय। खपता। बिक्री। ५. आय। आमदनी। ६. ब्रिटिश शासन में, वह धन जो सरकारी मालगुजारी देने के उपरांत जमींदार के पास बच रहता था। बचत। ७. चुंगी। ८. दे० ‘निकासी-पत्र’। |
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निकासी-पत्र :
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पुं० [हिं० निकासी+सं० पत्र] वह अधिकार-पत्र जिसके अनुसार कोई व्यक्ति या वस्तु कहीं से निकल कर बाहर जा सके। (ट्रानजिट पास) |
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निकाह :
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पुं० [अ०] इस्लाम की धार्मिक पद्धित से होनेवाला विवाह। |
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निकाही :
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वि० [अ० निकाह] (स्त्री०) जो निकाह अर्थात् धार्मिक पद्धति से विवाह करके घर में लाई गई हो। मुसलमान की विवाहित (पत्नी)। |
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