शब्द का अर्थ
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भ्राम :
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वि० [सं०√भ्रम् (संदेह)+ण] १. भ्रम-युक्त। २. घूमनेवाला। पुं० १. धोखा। भ्रम। २. भूल-चूक। |
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समानार्थी शब्द-
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भ्रामक :
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वि० [सं०√भ्रम् (संदेह)+णिच्+ण्वुल्—अक] १. भ्रम या धोखे में डालनेवाला। मन में भ्रम उत्पन्न करनेवाला। २. सन्देह उत्पन्न करनेवाला। ३. घुमाने या चक्कर देनावाला। ४. चालबाज। धूर्त। मक्कार। पुं० १. कांतिसार लोहा। २. चुम्बर पत्थर। ३. गीदड़। सियार। |
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समानार्थी शब्द-
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भ्रामर :
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वि० [सं० भ्रमर+अञ्] १. भ्रमर-संबंधी। भ्रमर का। २. भ्रमर से उत्पन् या प्राप्त होनेवाला। पुं० १. भ्रमर से उत्पन्न होनेवाला मधु या शहद। चुम्बक पत्थर। ३. अपस्मार या मिरगी नामक रोग। ४. दोहे का दूसरा भेद जिसमें २१ गुरु और ६ लघु मात्राएँ होती हैं। उदा०—माधो मेरे ही बसो राखो मेरी लाज। कामी क्रोधी लंपटी जानि न छाँडों काज। ५. ऐसा नाच जिसमें बहुत से लोग फेरा या मंडल बाँधकर गोलाकार नाचते हों। |
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भ्रामरी (रिन्) :
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वि० [सं० भ्रामर+इनि] जिसे भ्रामर या अपस्मार रोग हुआ हो। स्त्री० [भ्रामर+ङीष्] १. पार्वती। २. पुत्रदात्री। नाम की लता। |
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भ्रामित :
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भू० कृ० [सं०√भ्रम्+णिच्+क्त, इट्] घुमाया या इधर-उधर चक्कर खिलाया हुआ। |
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