शब्द का अर्थ
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					मठ					 :
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					पुं० [सं०√मठ् (निवास कनरा)+क] १. वह मकान जिसमें साधु-संन्यासी रहते हों। २. देवालय। मन्दिर। उदा०—मठ-पूतली पाखाण-मय।—प्रिथीराज।				 | 
			
			
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					मठ-पति					 :
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					पुं० [ष० त०]=मठधारी।				 | 
			
			
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					मठधारी (रिन्)					 :
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					पुं० [सं० मठ√धृ (रखना)+णिनि, उप० स०] वह साधु या महंत जो मठ का प्रधान अधिकारी हो। मठाधीश।				 | 
			
			
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					मठर					 :
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					वि० [सं० मन् (जानना)+अरन्, न्=ठ्] जो नशे में हो। मद-मत्त। पुं० एक प्राचीन ऋषि।				 | 
			
			
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					मठरना					 :
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					पुं० [?] कसेरों, सुनारों आदि का एक औजार जिससे वे धातु के पत्तरों या चद्दरों को पीटते हैं। अ० पत्तर, चद्दर आदि का उक्त उपकरण से पीटा जाना। स० दे० ‘मठारना’।				 | 
			
			
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					मठरी (ली)					 :
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					स्त्री० [सं० मेठ] =मुट्ठ। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					मठा					 :
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					पुं० [सं० मथन] दही का वह घोल जिसमें से मक्खन निकाल लिया गया हो। तक्र। मही। लस्सी। मुहा०—मठे मूसल की हाँकना=बढ़-बढ़कर इधर-उधर की बातें कहना। उदा०—गया था, अब लगा है मठा मूसल की हाँकने।—वृन्दावनलाल वर्मा।				 | 
			
			
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					मठाधीश					 :
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					पुं० [सं० मठ-अधीश, ष० त०] मठ में रहनेवाले साधुओं का प्रधान। महन्त।				 | 
			
			
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					मठान					 :
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					पुं०=मठरना (औजार)।				 | 
			
			
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					मठारना					 :
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					स० [हिं० मठरना] १. कसेरों, सुनारों आदि का मठरना नामक औजार से पत्तरों या चद्दरों को पीटना। २. पत्तरों, चद्दरों आदि को पीट कर गोलाई में लाना। स० [?] १. गूँथे हुए आटे को इस प्रकार हाथों से मसलना तथा सँवारना कि उसमें लस उत्पन्न हो जाय। २. धीरे धीरे तथा बना-सँवार कर कोई बात कहना।				 | 
			
			
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					मठारा					 :
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					पुं० [हिं मठारना] १. मठारने की क्रिया या भाव। २. किसी बात को सुधारने-सँवारते हुए उसकी पुष्टि करने की क्रिया या भाव। जैसे—उन्हें जो वक्तृता देनी थी, उसी पर मठारा दे रहे थे। क्रि० प्र०—देना।				 | 
			
			
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					मठिया					 :
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					स्त्री० [हिं० मठ+इया (प्रत्य०)] छोटा मठ। स्त्री० [?] काँसे या फूल की बनी हुई चूड़ी।				 | 
			
			
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					मठी (ठिन्)					 :
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					पुं० [सं० मठ+इनि] मठ का अधिकारी। मठाधीश। स्त्री० [हिं० मठ] छोटा मठ। मठिया।				 | 
			
			
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					मठुलिया, मठुली					 :
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					स्त्री०=मट्ठी।				 | 
			
			
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					मठोठा					 :
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					पुं० [?] कूएँ की जगत्।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					मठोर					 :
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					स्त्री० [हि० मट्ठा] १. वह बड़ी मटकी जिसमें दही मथा जाता है। २. नील पकाने का माठ।				 | 
			
			
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					मठोरना					 :
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					स० [हिं० मठारना] १. किसी लकड़ी को खरीदने के लिए रंदा लगाकर ठीक करना। २. दे० ‘मठारना’।				 | 
			
			
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					मठोलना					 :
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					स० [हिं० मठोला+ना (प्रत्य०] हास्त-मैथुन करना।				 | 
			
			
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					मठोला					 :
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					पुं० [हिं० मुट्ठी+ओला (प्रत्य०)] मुट्ठी में लिंग पकड़कर उसे सहलाते हुए वीर्य-पात करना। हस्त-मैथुन। उदा०—लड्डू में न पेड़े में, न बर्फी में मजा है, जो मर्दे-मुजर्रद के मठोलों में मजा है।—नजीर।				 | 
			
			
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					मठौरा					 :
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					पुं० [हिं मठोरना] एक प्रकार का रंदा जिससे लकडी रंद कर खरादने आदि के योग्य बनाते हैं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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