शब्द का अर्थ
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					मत					 :
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					पुं० [सं०√मज्+क्त] १. सोच-समझकर निश्चित की हुई बात। २. अपने निजी विचारों के रूप में किसी विषय के संबंध में कही या प्रकट की जानेवाली बात। सम्मति। जैसे—दूसरों को सब कोई मत देता है। ३. धर्म-ग्रंथों अथवा ऋषि-मुनियों द्वारा प्रतिपादित अथवा समर्थित कोई कथन या सिद्धांत। (डाक्ट्रिन) 4. किसी विशिष्ट ग्रंथ या महापुरुष के सिद्धांत का अनुयायी संप्रदाय। पंथ। ५. लोकतंत्र के क्षेत्र में, अपनी प्रतिनिधि चुनने के लिए किसी व्यक्ति अथवा समाज को प्राप्त वह अधिकार जिससे वह अपनी इच्छा, रुचि आदि के अनुकूल दो या अधिक व्यक्तियों, पक्षों आदि में से किसी एक या कुछ का अधिकारिक रूप में समर्थन कर सकता है। वोट (वोट)। विशेष—मत दो प्रकार से दिया जाता है। एक तो सभाओं आदि में खुले आम हाथ उठाकर और दूसरे गुप्त रूप में परचियाँ डालकर। ६. उक्त के द्वारा किसी का किया जानेवाला समर्थन। जैसे—इस चुनाव में समाजवादी उम्मीदवारों को १५000 मत मिले थे। स्त्री०=मति। अव्य० [सं० मा] निषेध-वाचक शब्द। न। नहीं। जैसे—वहाँ मत जाया करो।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					मत-क्षेत्र					 :
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					पुं० दे० ‘निर्वाचन-क्षेत्र’।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					मत-गणना					 :
				 | 
				
					स्त्री० [ष० त०] दे० ‘जनमत-संग्रह’।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					मत-दाता (तृ)					 :
				 | 
				
					पुं० [ष० त०] वह व्यक्ति जिसे लोकतंत्र के क्षेत्र में मत देने, विशेषतः निर्वाचन आदि में मत देने का अधिकार हो।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					मत-पत्र					 :
				 | 
				
					पुं० [ष० त०] वह परची जिस पर किसी विशेष उम्मीदवार या पक्ष के समर्थन में चिन्ह आदि बनाकर उसे मतदान पेटिका में डाला जाता है (वोटिंग-पेपर)।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत-परिवर्तन					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० ष० त०] अपना मत या विचार अथवा धर्म, संप्रदाय आदि छोड़कर दूसरा मत या विचार अथवा धर्म, संप्रदाय आदि ग्रहण करना। (कन्वर्सन)।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					मत-भेद					 :
				 | 
				
					पुं० [ष० त०] वह अवस्था जिसमें किसी दल, वर्ग या समूह के सदस्यों में किसी विषय में एक मत नहीं, बल्कि दो या कई मत होते हैं।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत-संग्रह					 :
				 | 
				
					पुं० [ष० त०] किसी प्रश्न पर मत-दान की परिपाटी के द्वारा लोगों के मत एकत्र करना।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत-सुन्न					 :
				 | 
				
					वि० [सं० मत-शून्य] मूर्ख।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत-स्वातंत्र्य					 :
				 | 
				
					पुं० [ष० त०] प्रत्येक व्यक्ति को अपना मत या विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतंग					 :
				 | 
				
					पुं० [सं०] १. हाथी। २. बादल। मेघ। ३. एक प्राचीन तीर्थ। ४. एक प्राचीन ऋषि जो शबरी के गुरु थे। ५. कामरूप के अग्नि-कोण का एक प्राचीन देश।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					मतंगज					 :
				 | 
				
					पुं० [सं०√मद् (मस्त होना)+अंगच्, द्—त्,+√जन्ड] हाथी।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतंगा					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० मतंग] एक प्रकार का बाँस जो बंगाल और बरमा में होता है।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतंगी (गिन्)					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० मतंग+इनि, दीर्घ] हाथी का सवार।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतदान					 :
				 | 
				
					पुं० [ष० त०] किसी विचारणीय विषय के संबंध में अथवा किसी प्रकार के चुनाव के समय किसी के पक्ष में अपना मत देने की क्रिया (वोटिंग)।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतदान-केन्द्र					 :
				 | 
				
					पुं० [ष० त०] वह केन्द्र या स्थान जहाँ निर्वाचन के समय किसी विशिष्ट क्षेत्र में मतदाता आकर मत देते हैं (पोलिंग स्टेशन)।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतदान-कोष्ठ					 :
				 | 
				
					पुं० [ष० त०] जिसमें रखी हुई पेटी में मत-पत्र छोड़ा जाता है (पोलिंग बूथ)।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतदान-पेटिका					 :
				 | 
				
					स्त्री० [ष० त०] वह पेटी जिसमें मतदाताओं द्वारा मत-पत्र छोड़े या डाले जाते हैं (बैलेट-बॉक्स)।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतना					 :
				 | 
				
					अ० [सं० मति+हिं० ना (प्रत्य०)] किसी विषय में अपना मत सम्मति निश्चित या प्रकट करना। अ०=मातना (उन्मत्त होना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतबन्ना					 :
				 | 
				
					वि० [अ० मुतबन्नः] (सन्तान) जो औरस न हो, पर गोद लिया गया हो। दत्तक पुं० दत्तक पुत्र।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतरिया					 :
				 | 
				
					स्त्री० [हिं० माता] माता। माँ। मुहा०—मतरिया बहिनिया करना=किसी को माँ-बहन की गालियाँ देना और उससे ऐसी ही गालियाँ सुनना। वि० [सं० मंत्र] १. मंत्र देनेवाला। मंत्री। २. मंत्र से प्रभावित किया हुआ। मंत्रित।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतरुक					 :
				 | 
				
					वि० [अ०] त्याग किया या छोड़ा हुआ। त्यक्त। परित्यक्त।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतलब					 :
				 | 
				
					पुं० [अ० मतलबी] १. मन में रहनेवाला आशय या उद्देश्य। अभिप्राय। २. पद, वाक्य या शब्द का अर्थ। माने। ३. अपने भला या हित का विचार। स्वार्थ। पद—मतलब का यार=सदा अपने स्वार्थ का ध्यान रखनेवाला व्यक्ति। स्वार्थी। मुहा०—मतलब गाँठना—स्वार्थ साधन करना। (अपना) मतलब निकालनाँ=स्वार्थ सिद्ध करना। मतब हो जाना=(क) स्वार्थ सिद्ध हो जाना (ख) पूरी दुर्गति या दुर्दशा हो जाना (व्यंग्य)। ४. संपर्क। संबंध। वास्ता। जैसे—हमारा उनसे कोई मतलब नहीं है।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतलबिया					 :
				 | 
				
					वि०=मतलबी।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतलबी					 :
				 | 
				
					वि० [अ० मत्लबी+ई (प्रत्य०)] अपना ही मतलब निकालनेवाला। स्वार्थ-परायण। स्वार्थी। खुदगरज।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतला					 :
				 | 
				
					पुं० [अ० मत्ल] गज़ल का पहला शेर जिसके मिस्रे सानुप्रास होते हैं।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतली					 :
				 | 
				
					स्त्री०=मिचली।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतलूब					 :
				 | 
				
					वि० [अ० मत्लूब] १. चाहा हुआ। जिसकी इच्छा हो। अभिप्रेत। २. प्रिय।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतवा					 :
				 | 
				
					स्त्री०=माता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतवार					 :
				 | 
				
					वि०=मतवाला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतवाल					 :
				 | 
				
					स्त्री० [हिं० मतवाला] १. मतवालापन। मत्तता। २. मतवालों या पागलों की तरह का कोई काम। उदा०—करत मतवाल जहाँ सन्त जन सूरमा...।—कबीर।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतवाला					 :
				 | 
				
					वि०, पुं० [सं० मत्त+हिं० वाला (प्रत्य०)] [स्त्री० मतवाली] १. नशे आदि के कारण मस्त। नशे में चूर। २. किसी प्रकार के अभिमान या मद के कारण मस्त और ला-परवाह। ३. उन्मत्त। पागल। पुं० १. वह भारी पत्थर जो किले या पहाड़ पर से नीचे के शत्रुओं को मारने के लिए लुढ़काया जाता है। २. कागज का बना हुआ एक प्रकार का खिलौना जो जमीन पर फेकने से सीधा खड़ा रहकर इधर-उधर हिलता रहता है।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतस्य-द्वीप					 :
				 | 
				
					पुं० [मध्य० स०] पुराणानुसार एक द्वीप।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतस्यनाशन					 :
				 | 
				
					पुं०=मत्स्यनाशक।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मता					 :
				 | 
				
					पुं०=मत (विचार)। स्त्री०=मति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मताधिकार					 :
				 | 
				
					पुं० [मत-अधिकार; ष० त०] किसी चुनाव या विषय में मत (या वोट) देने का अधिकार जो शासन से प्राप्त हो। प्रतिनिधिक संस्थाओं के सदस्य या प्रतिनिधि निर्वाचित करने में वोट या मत देने का अधिकार (फ्रैंचाइज़)।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मताधिकारी (रिन्)					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० मताधिकार+इनि] मत देने का अधिकारी। वोटर।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मताना					 :
				 | 
				
					अ० [सं० मत+हिं० ना (प्रत्य०)] मत्त या मस्त होना। उदा०—पाइ बहै कंज में सुगंध राधिका कौ, मंजु ध्याए कदलीबन मतंग लौ मताए हैं।—रत्ना। स० मत्त का मस्त करना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतानुज्ञा					 :
				 | 
				
					स्त्री० [मत-अनुज्ञा, ष० त०] २१ प्रकार के निग्रह स्थानों में से एक (न्याय-दर्शन)।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतानुयायी (यिन्)					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० मत-अनुयायिन्, ष० त०] किसी मत का अनुयायी। मतावलंबी।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतारी					 :
				 | 
				
					स्त्री०=मतहारी (माता)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतार्थना					 :
				 | 
				
					स्त्री० [सं० मत-अर्थना] चुनाव आदि के अवसरों पर लोगों के पास जाकर उनसे अपने पक्ष में मत माँगने या उन्हें अपने अनुकूल करने की क्रिया या भाव (कैन्वेसिंग ऑफ वोट्स)।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतावलंबी (बिन्)					 :
				 | 
				
					पुं० [मत-अवलंबित, ष० त०] किसी मत, सिद्धान्त आदि का अनुयायी। जैसे—जैन मतावलंबी।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मताही					 :
				 | 
				
					स्त्री० [हिं० माता=चेचक] चेचक या माता का रोग जो कहीं कुछ दूर तक फैला हो (पूरब)। क्रि० प्र०—फैलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मति					 :
				 | 
				
					स्त्री० [स०√मन्+क्तिन्] १. बुद्धि। अक्ल। २. राय। सम्मति। ३. इच्छा। कामना। ४. याद। स्मृति। ५. साहित्य में एक संचारी भाव। यह उस समय माना जाता है जब कोई अनुचित बात हो जाती है तब उसके बाद नीति की कोई बात सूझती है। वि० १. बुद्धिमान। २. चतुर। चालाक। अव्य०=मत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मति-दर्शन					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० ष० त०] वह शक्ति जिसके अनुसार दूसरे की योग्यता का पता लगाया जाता है।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मति-भ्रम					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० ष० त०] अस्वस्थ अथवा विकृत बुद्धि या समझ के कारण होनेवाला वह भ्रम जिसके फलस्वरूप मनुष्य कुछ का कुछ समझने लगता है, अथवा उसे किसी अवास्तविक घटना या दृश्य का भान होने लगता है (हैल्यूसिनेशन)।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मति-भ्रंश					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० ष० त०] वह अवस्था जिसमें बुद्धि कुछ भी सोच-समझ सकने में असमर्थ होती है। बुद्धि-भ्रंश।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मति-मंद					 :
				 | 
				
					वि० [सं० मंदमति] मूर्ख।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मति-मांद्य					 :
				 | 
				
					पुं० [ष० त०] मति-मंद होने की अवस्था या भाव।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतिदा					 :
				 | 
				
					स्त्री० [सं० मति√दा (देना)+क,+टाप्] १. ज्योतिष्मती नाम की लता। २. सेमल। शालमलि।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतिन					 :
				 | 
				
					अव्य० [सं० मत् या वत् ?] सदृश। समान (पूरब)। अव्य०=मत (निषेधार्थक)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतिभंगी (गिन्)					 :
				 | 
				
					वि० [सं० मति√भञ्ज् (नष्ट करना)+णिनि] मति या बुद्धि नष्ट करनेवाला।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतिमंत					 :
				 | 
				
					वि० [सं० मतिमत्] बुद्धिमान्। चतुर।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतिमान् (मत्)					 :
				 | 
				
					वि० [सं० मति+मतुप्] बुद्धिमान। समझदार।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतिमाह					 :
				 | 
				
					वि०=मतिमान्।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतिवंत					 :
				 | 
				
					वि०=मतिमंत।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मती					 :
				 | 
				
					वि० [सं० मतिमान्] १. किसी प्रकार का मत या राय रखनेवाला। २. किसी मत या सम्प्रदाय का अनुयायी। स्त्री० [सं० मति]=मत (विचार या संप्रदाय)। अव्य०=मत (निषेधात्मक)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतीरा					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० मेट] तरबूज।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतीस					 :
				 | 
				
					पुं० [देश०] एक प्रकार का बाजा।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतेई					 :
				 | 
				
					स्त्री० [सं० विमातृ मि० पं० मतरई=विमाता] माता की सौत। विमाता।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मतैक्य					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० मत+ऐक्य] किसी विषय में दो या अधिक व्यक्तियों का एक ही मत या राय होना। मत या विचार में होनेवाली एकता या समानता।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत्कुण					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० कर्म० स०] खटमल।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत्त					 :
				 | 
				
					वि० [सं०√मद् (मतवाला होना)+क्त] १. नशे आदि में चूर। सुस्त। २. किसी बात की अधिकता के कारण जिसमें विवेक न रह गया हो। जैसे—धन-मत्त। ३. किसी प्रकार के मनोवेग के पूर्ण आवेश से युक्त। ४. किसी काम या बात के पीछे मतवाला। जैसे—रण-मत्त। ५. उन्मत्त। पागल। ६. बहुत अधिक प्रसन्न। पुं० १. मतवाला हाथी। २. धतूरा। ३. कोयल। स्त्री०=माया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत्त-गयंद					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० मत्त+हिं गजेन्द्र] सवैया छंद का एक भेद जिसके प्रत्येक चरण में ७ भगण और २ गुरु होते हैं।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत्त-मयूर					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० मध्य० स०] पंद्रह अक्षरों का एक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः यगण, मगण, सगण, और फिर मगण होता है।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत्त-वारण					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० कर्म० स०] १. बरामदा। २. आँगन के पास या सामने की छत। ३. मस्त हाथी। ४. सुपारी का चूर्ण।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत्तक					 :
				 | 
				
					वि० [सं० मत्त+कन्] जो कुछ-कुछ मत्त हो।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत्तकाशी					 :
				 | 
				
					वि० [सं०] [स्त्री० मत्तकाशिनी] अत्यन्त रूपवान। परम सुन्दर।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत्तकोकिल					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० कर्म० स०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत्तता					 :
				 | 
				
					स्त्री० [सं० मत्त+तल्+टाप्] मत्त होने की अवस्था या भाव मस्ती।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत्तताई					 :
				 | 
				
					स्त्री०=मत्तता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत्ता					 :
				 | 
				
					स्त्री० [सं० मत्त+टाप्] १. बारह अक्षरों का एक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में मगण, भगण, सगण और एक गुरु होता है और ४, ६ पर यदि होती है। २. मदिरा। शराब। स्त्री० [सं० मत् का भाव] सं० मत का वह रूप जो भाव वाचक शब्द बनाने के लिए प्रत्यय के रूप में अन्त में लगता है। जैसे—नीति मत्ता, बुद्धिमत्ता आदि। स्त्री०=मात्रा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					मत्ता-क्रीड़ा					 :
				 | 
				
					स्त्री० [सं० ब० स०] तेईस अक्षरों का एक छंद जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः दो मगण, एक तगण, चार नगण एक लघु और एक गुरु अक्षर होता है।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					मत्था					 :
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					पुं० [सं० मस्तक] १. ललाट। मस्तक। माथा। २. किसी पदार्थ का अगला या ऊपरी भाग।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					मत्थे					 :
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					क्रि० वि० [हिं० माथा] १. मस्तक या सिर पर। २. किसी पर उत्तरदायित्व, भार आदि के रूप में। मुहा०—(किसी के) मत्थे मढ़ना=जबरदस्ती देना। जैसे—यह काम तुम्हारे मत्थे पड़ेगा। (कोई बात किसी के) मत्थे मढ़ना=बलात् किसी पर कोई दोष मढ़ना।				 | 
			
			
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					मत्य					 :
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					पुं० [सं० मत+यत्] १. पटेला। हेंगा। २. ज्ञान-प्राप्ति का साधन।				 | 
			
			
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					मत्सर					 :
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					पुं० [सं०√मद्+सरन्] १. द्वेष। विद्वेष। २. द्वेष-जन्य और ईर्ष्यापूर्ण मानसिक स्थिति। ३. क्रोध। गुस्सा।				 | 
			
			
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					मत्सरी (रिन्)					 :
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					पुं० [सं० मत्सर+इनि, दीर्घ] मत्सर करनेवाला व्यक्ति। जिसके मन में मत्सर हो।				 | 
			
			
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					मत्स्य					 :
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					पुं० [सं०√मद्+स्यन्] १. मछली। २. विष्णु के दस अवतारों में से पहला अवतार जो मछली के रूप में हुआ था। ३. ज्योतिष में मीन नामक राशि। ४. नारायण। ५. प्राचीन विराट् देश का दूसरा नाम। ६. पुराणानुसार सुनहले रंग की एक प्रकार की शिला जिसका पूजन करने से मुक्ति होना माना जाता है। ७. छप्पय छंद के २३वें भेद का नाम। ८. दे० ‘मत्स्य-पुराण’।				 | 
			
			
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					मत्स्य-गंधा					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०,+टाप्] १. सत्यवती (व्यास की माता। २. जल-पीपल।				 | 
			
			
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					मत्स्य-द्वादशी					 :
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					स्त्री० [मध्य० स०] अगहन सुदी द्वादसी।				 | 
			
			
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					मत्स्य-नारी					 :
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					स्त्री० [कर्म० स०] १. वह जो आकृति में आधी मछली हो और आधी नारी। विशेषतः जिसका धड़ से ऊपरी भाग नारी का हो और शेष भाग मछली है। (एक प्रकार का काल्पनिक प्राणी) २. सत्यवती।				 | 
			
			
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					मत्स्य-न्याय					 :
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					पुं० [ष० त०] १. यह मान्यता कि छोटों को बड़े अथवा दुर्बलों को सबल उसी प्रकार खा जाते हैं या नष्ट कर देते हैं जिस प्रकार बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को खा जाती हैं। २. अराजकों या आततायियों का राज्य।				 | 
			
			
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					मत्स्य-पालन					 :
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					पुं० [ष० त०] मछलियाँ पालकर उनकी पैदावार बढ़ाने का काम (पिसीकल्चर)।				 | 
			
			
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					मत्स्य-पुराण					 :
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					पुं० [मध्य० स०] अठारह पुराणों में से एक पुराण जो महापुराण माना जाता है।				 | 
			
			
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					मत्स्य-बंध					 :
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					पुं [ष० त०] मछलियाँ पकड़नेवाला। मछुआ। धीवर।				 | 
			
			
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					मत्स्य-बंधन					 :
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					पुं० [ष० त०] मछली पकड़ने की बंशी। कँटिया।				 | 
			
			
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					मत्स्य-मुद्रा					 :
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					स्त्री० [मध्य० स०] तांत्रिकों की एक मुद्रा।				 | 
			
			
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					मत्स्य-राज					 :
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					पुं० [ष० त०] १. रोहू मछली। रोहित। २. विराट्-नरेश।				 | 
			
			
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					मत्स्य-वेधनी					 :
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					स्त्री० [ष० त०] मछली फँसाने की बंसी। कँटिया।				 | 
			
			
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					मत्स्य-संवर्धन					 :
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					पुं० [ष० त०] मत्स्य-पालन।				 | 
			
			
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					मत्स्यजीवी (विन्)					 :
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					पुं० [सं० मत्स्य√जीव (जीना)+णिनि, उप० स०] मछुआ। धीवर।				 | 
			
			
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					मत्स्यनाशक					 :
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					पुं० [ष० त०] कुरर पक्षी।				 | 
			
			
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					मत्स्यनी					 :
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					स्त्री० [सं०] देशों की पाँच प्रकार की सीमाओं में से वह सीमा जो नदी या जलाशय आदि के द्वारा निर्धारित हो।				 | 
			
			
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					मत्स्याक्षी					 :
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					स्त्री० [मत्स्य-अक्षि, ब० स०,+षच्,+ङीष्] १. सोम लता। ब्राह्मी बूटी। ३. गाँडर। दूब।				 | 
			
			
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					मत्स्यादिनी					 :
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					स्त्री० [मत्स्य-आदिनी, सुप्सुपा स०] १. जल पीपल। ३. दे० ‘मत्स्याक्षी’।				 | 
			
			
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					मत्स्यावतार					 :
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					पुं० [मत्स्य-अवतार, ष० त०] भगवान् विष्णु का पहला अवतार जिसमें उन्होंने मत्स्य का रूप धारण किया था।				 | 
			
			
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					मत्स्याशन					 :
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					वि० [सं० मत्स्य√अश् (खाना)+ल्यु-अन] मछली खानेवाला। पुं० मछरंग नामक पक्षी।				 | 
			
			
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					मत्स्यासन					 :
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					पुं० [मत्स्य-आसन, मध्य० स०, ष० त०] तांत्रिकों के अनुसार योग का एक आसन।				 | 
			
			
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					मत्स्येन्द्रनाथ					 :
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					पुं० [सं०] एक प्रसिद्ध हठयोगी महात्मा जो गोरखनाथ के गुरु थे।				 | 
			
			
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					मत्स्योदरी					 :
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					स्त्री० [मत्स्य-उदरी, ब० स०,+ङीष्] सत्यवती। मत्स्यगंधा।				 | 
			
			
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					मत्स्योपजीवी (विन्)					 :
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					पुं० [सं० मत्स्य,+उप√जीव् (जीना)+णिनि] मछुआ धीवर।				 | 
			
			
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