शब्द का अर्थ
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					मनुष					 :
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					पुं० [सं० मनुष्य] १. मनुष्य। २. स्त्री० का पति। स्वामी।				 | 
			
			
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					मनुषी					 :
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					स्त्री० [सं० मनुष्य+ङीष्, य लोप] स्त्री।				 | 
			
			
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					मनुष्य					 :
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					पुं० [सं० मनु+यत्, षुक्-आगम] जरायुज जाति का एक स्तनपायी प्राणी जो अपने मस्तिष्क या बुद्धि बल की अधिकता के कारण सब प्राणियों में श्रेष्ठ है। आदमी। नर।				 | 
			
			
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					मनुष्य-गणना					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] जन-गणना।				 | 
			
			
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					मनुष्य-गति					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] जैन शास्त्रानुसार वह कर्म जिसे करने से मनुष्य बार बार मरकर मनुष्य का ही जन्म पाता है। ऐसे कर्म पर-स्त्री-गमन, माँस-भक्षण चोरी आदि बतलाये गये हैं।				 | 
			
			
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					मनुष्य-धर्मा (र्मन्)					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] कुबेर।				 | 
			
			
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					मनुष्य-यज्ञ					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] मनुष्य, विशेषतः अभ्यागत व्यक्ति का किया जानेवाला आदत-सत्कार। अतिथियज्ञ। नृयज्ञ।				 | 
			
			
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					मनुष्य-रथ					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] प्राचीन काल में वह रथ जिसे मनुष्य (पशु नहीं) खींचते थे। नर-रथ।				 | 
			
			
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					मनुष्य-लोक					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] यह जगत् जिसमें मनुष्य (देवता नहीं) रहते हैं। मर्त्य-लोक। भूलोक।				 | 
			
			
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					मनुष्य-शीर्ष					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार की जहरीली मछली जिसका सिर आदमी के सिर की तरह होता है (टेटाओडन)।				 | 
			
			
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					मनुष्यकार					 :
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					पुं० [सं० मनुष्य+कार] उद्योग। प्रयत्न।				 | 
			
			
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					मनुष्यता					 :
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					स्त्री० [सं० मनुष्य+तल्+टाप्] १. मनुष्य होनी की अवस्था या भाव। आदमीपन। २. सज्जन मनुष्य के लिए सभी आवश्यक और उपयोगी गुणों का समूह। २. वे बातें जो किसी मनुष्य को शिक्षित और सभ्य समाज में उठने-बैठने के लिए आवश्यक होती हैं।				 | 
			
			
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					मनुष्यत्व					 :
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					पुं० [सं० मनुष्य+त्व] १. मनुष्य होने की अवस्था या भाव। मनुष्यता। २. मनुष्यों के लिए आवश्यक और उपयुक्त गुणों (दया, प्रेम, सहृदयता आदि) से युक्त होने की अवस्था या भाव।				 | 
			
			
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