शब्द का अर्थ
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					महत्					 :
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					वि० [सं०√मह्+अति] १. बहुत बड़ा। महान। २. सर्वश्रेष्ठ। पुं० १. दार्शनिक क्षेत्रों में प्रकृति का आरम्भिक या मूल विकार। महत्तत्व। २. ब्रह्म। ३. राज्य। ४. जल। पानी। पुं० =महत्त्व।				 | 
			
			
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					महत्कथ					 :
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					पुं० [सं० महती-कथा, ब० स०] खुशामदी।				 | 
			
			
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					महत्तत्त्व					 :
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					पुं० [सं० महत्त-तत्व, कर्म० स०] १. दार्शनिक क्षेत्र में प्रकृति का पहला बिकार या कार्य। विशेष—सांख्यकार ने कहा है कि पहले-पहल जब तक जगत सुषुप्तावस्था से उठा, या जागा था, तब सबसे पहले इसी महत्तत्त्व का आविर्भाव हुआ था। इसी को दार्शनिक परिभाषा में बुद्धि-तत्त्व भी कहते हैं। २. कुछ तांत्रिकों के अनुसार संसार के सात त्तत्वों में से सबसे अधिक सूक्ष्म तत्त्व। ३. जीवात्मा।				 | 
			
			
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					महत्तनु					 :
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					पुं० =महत्तत्व।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					महत्तम					 :
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					वि० [सं० महत्+तमप्] १. जिसका महत्व सबसे अधिक आँका, माना या समझा जाता हो। २. सबसे बड़ा। (ग्रेटेस्ट)।				 | 
			
			
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					महत्तम-समापवर्त्तक					 :
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					पुं० [कर्म० स०] गणित में वह बड़ी से बड़ी संख्या जिसका भाग दो या अन्य संख्याओं में पूरा-पूरा हो सके।				 | 
			
			
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					महत्तर					 :
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					वि० [सं० महत्+तरप्] किसी की अपेक्षा अधिक महत्व वाला। पुं० शूद्र।				 | 
			
			
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					महत्तरक					 :
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					पुं० [सं० महत्तर+कन्] दरबारी। मुसाहब।				 | 
			
			
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					महत्ता					 :
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					स्त्री० [सं० महत्त+तल्+टाप्] महत्त्व।				 | 
			
			
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					महत्त्व					 :
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					पुं० [सं० महत्+त्व] १. महत् या महा अर्थात् सबसे बड़े होने की अवस्था या भाव। २. बड़प्पन। बड़ाई। श्रेष्टता। ३. किसी काम, बात या चीज की वह अवस्था जिसमें वह अर्थ, उपयोग, परिणाम, प्रभाव, मूल्य आदि के विचार से औरों से बहुत बढ़कर मानी या समझी जाती है। (इम्पार्टेन्स) जैसे—महत्त्व का विचार, महत्त्व का समाचार आदि।				 | 
			
			
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					महत्त्वपूर्ण					 :
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					वि० [सं० तृ० त०] जिसका कुछ या अधिक महत्त्व हो।				 | 
			
			
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					महत्त्वाकांक्षा					 :
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					स्त्री० [सं० महत्त्व-आकांक्षा, ष० त०] दे० ‘उच्चाकांक्षा’।				 | 
			
			
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