शब्द का अर्थ
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					माला					 :
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					स्त्री० [सं० मा=शोभा√ला (देना)+क,+टाप्] १. एक ही पंक्ति या सीघ में लगी हुई बहुत सी चीजों की स्थिति। अवली। पंक्ति। जैसे—पर्वत-माला। २. एक तरह की चीजों का निरन्तर चलता रहनेवाला क्रम। जैसे—पुस्तक माला। ३. फूलों का हार। गजरा। ४. फूलों के हार की तरह बनाया हुआ सोने, चाँदी, रत्नों आदि का हार। जैसे—मोतियों या हीरों की माला। ५. कुछ विशिष्ट प्रकार के दानों या मनकों का हार जो धार्मिक दृष्टियों से पहना जाता है। जैसे—तुलसी की माला, रुद्राक्ष की माला अर्थात् जिसके दानों या मनकों की गिनती के हिसाब के इष्टदेव के नाम का जप किया जाता है। मुहा०—माला जपना या फेरना=हाथ में माला लेकर इष्टदेव का नाम जपना। (किसी के नाम की) माला जपना=हरदम या प्रायः किसी का नाम लेते रहना अथवा चर्चा या ध्यान करते रहना। ६. समूह । झूंड। जैसे—मेघमाला। ६. एक प्राचीन नदी। ८. दूब। ९. भुई आँवला। १॰. काठ की एक प्रकार की कटोरी जिसमें उबटन या तेल रखकर शरीर पर मला या लगाया जाता है। ११. उपजाति छंद का एक भेद जिसके प्रथम और चौथे चरण में जगण, तगण, फिर जगण और अंत में दो गुरु होते है। पुं० [अ० महल, हि० महला] मकान का खंड। (महाराष्ट्र) जैसे—मकान का चौथा माला।				 | 
			
			
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					माला दीपक					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] साहित्य में, दीपक अलंकार का एक भेद जिसमें किसी वस्तु के एक ही गुण के आधार पर उत्तरोत्तर अनेक वस्तुओं का संबंध बताया जाता है। जैसे—रस के काव्य, काव्य से वाणी, वाणी से रसिक और रसिक से सभा की शोभा बढ़ती है।				 | 
			
			
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					माला मणि					 :
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					पुं० [ष० त०] रुद्राक्ष।				 | 
			
			
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					माला रानी					 :
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					स्त्री० [हिं,] संगीत में कल्याण ठाठ की एक रागिनी।				 | 
			
			
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					माला-कंद					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का कंद जो वैद्यक में तीक्ष्ण दीपन, गुल्म और गंडमाला रोग को हरनेवाला तथा वात और कफ का नाशक कहा गया है। कंडलता। बल-कंद।				 | 
			
			
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					माला-दूर्बा					 :
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					स्त्री० [सं० उपमि० त०] एक प्रकार की दूब जिसमें बहुत सी गाँठें होती हैं। गंडदूर्वा।				 | 
			
			
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					मालाकंठ					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] १. अपामार्ग। चिचड़ा। २. एक प्रकार का गुल्म।				 | 
			
			
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					मालाकार					 :
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					पुं० [सं० माला√कृ+अक्] [स्त्री० मालाकारी] १. पुराणानुसार एक वर्णसंकर जाति। विशेष—ब्रह्यवैवर्त पुराण के अनुसार यह जाति विश्वकर्मा और शूद्रा से उत्पन्न है। पराशर पद्धति के अनुसार यह तेलिन और कर्मकार से उत्पन्न है। २. माली।				 | 
			
			
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					मालाकृति					 :
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					वि० [माला-आकृति, ब० स०] माला के आकार का। दे० ‘रज्जुवक्र’।				 | 
			
			
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					मालागिरी					 :
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					वि०, पुं० =मलयागिरि।				 | 
			
			
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					मालातृण					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] एक तरह की सुगंधित घास। भूस्तृण।				 | 
			
			
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					मालाधर					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] सत्रह अक्षरों का एक वर्णिक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में नगण, सगण, जगण, फिर सगण और अंत में एक लधु और फिर गुरु होता है।				 | 
			
			
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					मालाप्रस्थ					 :
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					पुं० [सं०] एक प्राचीन नगर।				 | 
			
			
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					मालाफल					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] रुद्राक्ष।				 | 
			
			
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					मालामाल					 :
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					वि० [फा०] जिसके पास बहुत अधिक माल या धन हो। धन-धान्य से पूर्ण। सम्पन्न।				 | 
			
			
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					मालाली					 :
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					स्त्री० [सं० माला√अल्+अच्+ङीष्] पक्का। असबरग।				 | 
			
			
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					मालावती					 :
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					स्त्री० [सं० माला+मतुप्, वत्व, ङीप,] एक प्रकार की संकर रागिनी जो पंचम, हम्मीर, नट और कामोद के संयोग से बनती है। कुछ लोग इसे मेघराज की पुत्रवधु मानते हैं।				 | 
			
			
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