शब्द का अर्थ
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					मिश्र					 :
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					वि० [सं०√मिश्र (मिलाना)+रक्] १. जो अनेक के योग से मिलकर एक हो गया हो। कइयों को मिलाकर एक किया या बनाया हुआ। जैसे—मिश्र धातु। २. मिला हुआ। संयुक्त। ३. जिसने अनेक अंगों, तत्त्वों, प्रक्रियाओं आदि के योग से एक नया और स्वतन्त्र रूप धारण कर लिया हो। जैसे—मिश्र अनुपात, मिश्र गुणन, मिश्र वाक्य आदि। ४. बड़ा और मान्य। श्रेष्ठ। पुं० १. कुछ विशिष्ट वर्गीय ब्राह्मणों (जैसे—कान्यकुब्ज, सरयूपारी, सारस्वत आदि) की एक विशिष्ट शाखा का अल्ल या जाति-नाम। २. साहित्य में इतिवृत्त के मूल के विचार से नाटकों की कथा-वस्तु के तीन भेदों में से एक ऐसी कथा-वस्तु जिससे इतिवृत्त की पीठिका या पृष्ठभूमि जो प्रख्यात या लोक-विदित हो, परन्तु उसके साथ अनेक उत्पाद्य या कल्पित कथाएँ अथवा घटनाएं भी मिला दी गयी हों। (अन्य दो भेद ‘उत्पाद्य’ और ‘प्रख्यात’ कहलाते हैं)। ३. ज्योतिष में सात प्रकार के गणों में से अंतिम या सातवाँ गण जो कृतिका और विशाखा नक्षत्र के योग में होता है। ४. व्याकरण में तीन प्रकार के वाक्यों में से एक, जिसमें मुख्य उपवाक्य तो एक ही होता है, परन्तु आश्रित उपवाक्य एक से अधिक होते हैं। ५. हाथियों की चार जातियों में से एक जाति। ६. सन्निपात रोग। ७. खून। रक्त। ८. मूली। पुं० =मिस्र (देश)।				 | 
			
			
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					मिश्र-धातु					 :
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					पुं० [कर्म० स०] वह धातु जो दो या अधिक धातुओं के मिश्रण से बनी हों। (एलाँय) जैसे—पीतल।				 | 
			
			
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					मिश्र-धान्य					 :
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					पुं० [सं० कर्म० स०] एक में मिलाये हुए कई प्रकार के अनाज या धान्य।				 | 
			
			
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					मिश्र-पुष्पा					 :
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					स्त्री० [ब० स०+टाप्] मेथी।				 | 
			
			
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					मिश्र-वर्ण					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] १. काला अगरू। २. गन्ना। वि० दो या दो से अधिक रंगोंवाला।				 | 
			
			
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					मिश्र-वाक्य					 :
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					पुं० [सं० कर्म० स०] व्याकरण में तीन प्रकार के वाक्यों में से एक जिसमें एक मुख्य उपवाक्य होता है और दो या दो से अधिक आश्रित उपवाक्य होते हैं।				 | 
			
			
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					मिश्र-शब्द					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] खच्चर।				 | 
			
			
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					मिश्रक					 :
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					वि० [सं० मिश्र+कन्] मिश्रण करने या मिलानेवाला। पुं० १. खारी नमक। २. जस्ता। ३. मूली। ४. नन्दन वन। ५. एक प्राचीन तीर्थ। ६. वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का रोग।				 | 
			
			
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					मिश्रक-स्नेह					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] एक प्रकार का औषध जो त्रिफला, दशमूल और दंती की जड़ आदि से बनती है। (वैद्यक)				 | 
			
			
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					मिश्रज					 :
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					वि० [सं० मिश्र√जन् (उत्पत्ति)+ड] १. जो किसी प्रकार के मिश्रण से उत्पन्न हुआ हो २. वह जो दो भिन्न-भिन्न जातियों के मिश्रण या मेल से बना हो। वर्ण-संकर। दोगला पुं० खच्चर।				 | 
			
			
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					मिश्रण					 :
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					पुं० [सं०√मिश्र+ल्युट-अन] १. दो या अधिक चीजों को आपस में मिलाना। मिश्रित करना। २. उक्त को मिलाने से तैयार होने या बननेवाला पदार्थ या रूप। ३. मिलावट। ४. गणित में संख्याओं का जोड़ लगाने की क्रिया। ५. रसायन विज्ञान में, द्रव, ठोस या गैस रूप में होने वाले किसी पदार्थ को किसी दूसरे द्रव, ठोस या गैस रूप में मिलाना। ६. उक्त के मिलाये जाने पर तैयार होनेवाला पदार्थ विशेषतः तरल पदार्थ। घोल। (सेल्यूशन, उक्त दोनों अर्थों में) ७. वह तरल औषध जो कई औषधियों के मेल से बना हो। (मिक्सचर)।				 | 
			
			
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					मिश्रणीय					 :
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					वि० [सं०√मिश्र+अनीयर] जो मिश्रण के योग्य हो, अथवा जिसका मिश्रण होने को हो।				 | 
			
			
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					मिश्रता					 :
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					स्त्री० [सं० मिश्र+तल+टाप्] मिश्रण या मिश्रित होने की अवस्था या भाव।				 | 
			
			
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					मिश्रित					 :
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					भू० कृ० [सं०√मिश्र+क्त०] १. एक से मिला या मिलाया हुआ। २. मिलावटवाला (पदार्थ)।				 | 
			
			
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					मिश्रिता					 :
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					स्त्री० [सं० मिश्रित+टाप्] सात संक्रान्तियों में से एक।				 | 
			
			
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					मिश्री					 :
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					स्त्री०=मिसरी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					मिश्रीकरण					 :
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					पुं० [सं० मिश्र+च्वि, इत्व, दीर्घ√कृ (करना)+ल्युट-अन] मिलाने की क्रिया या भाव। मिश्रण करना।				 | 
			
			
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					मिश्रोदन					 :
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					पुं० [सं० मिश्र-ओदन, कर्म० स०] खिचड़ी।				 | 
			
			
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