शब्द का अर्थ
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यम :
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वि० [सं०√यम् (नियंत्रण करना)+अच्] जुड़वाँ। पुं० १. जुड़वाँ बच्चे। यमल। २. उक्त के आधार पर दो की संख्या। ३. रोक। नियंत्रण। ४. अपने ऊपर किया जानेवाला नियंत्रण। ५. कोई बहुत बड़ा धार्मिक या नैतिक कर्तव्य। ६. भारतीय आर्यों के एक प्रसिद् देवता जो सूर्य के पुत्र तथा दक्षिण दिशा के दिकपाल कहे गये हैं, और आजकल मृत्यु के देवता माने जाते है। काल। कृतान्त। ७. चित्त को धर्म में स्थिर रखनेवाले कर्मों का साधन ८. कौआ। ९. शनि। १॰. विष्णु। ११. वायु। |
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यम-कीट :
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पुं० [सं० मध्य० स०] केचुआ। |
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यम-घंट :
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पुं० [सं० यम√घंट् (शब्द करना)+णिच् (स्वार्थ)+अण्] १. फलित ज्योतिष में एक प्रकार का दुष्ट योग जो रविवार को मघा या पूर्वा फाल्गुनी सोमवार को पुष्य या श्लेषा, मंगलवार को ज्येष्ठा, अनुराधा, भरणी या अश्विनी, बुधवार को हस्त या आर्द्रा, बृहस्पति को पूर्वाषाढ़ा, रेवती या उत्तराभाद्रपद, शुक्र को स्वाती या रोहिणी और शनिवार को शतभिषा या श्रवण नक्षत्र के पड़ने पर माना जाता है। २. कार्तिक शुक्ला प्रतिपाद। |
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यम-चक्र :
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पुं० [सं० ष० त०] यमराज का शस्त्र। |
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यम-दंष्ट्रा :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. यम की दाढ़। २. वैद्यक के अनुसार आश्विन, कार्तिक और अगहन के लगभग का कुछ विशिष्ट काल जिसमें रोग और मृत्यु आदि का विशेष भय रहता है |
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यम-दूत :
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पुं० [सं० ष० त०] १. यमराज का दूत। २. कौआ। ३. नौ समिधों में से एक। |
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यम-दूतिका :
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स्त्री० [सं० ष० त०] इमली। |
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यम-देवता :
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स्त्री० [सं० ब० स०] भरणी नक्षत्र, जिसके देवता यम माने जाते हैं। |
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यम-द्रुम :
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पुं० [सं० उपमित० स०] सेमर का पेड़। (वृक्ष)। |
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यम-द्वितीया :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] कार्तिक शुक्ला द्वितीया। भाई-दूज। |
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यम-धार :
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पुं० [सं० ब० स०] एक तरह की दुधारी तलवार। |
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यम-नक्षत्र :
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पुं० [सं० मध्य० स०] भरणी नक्षत्र, जिसके देवता यम माने जाते हैं। |
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यम-पुर :
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पुं० [सं० ष० त०] यम के रहने का स्थान। यमलोक। मुहावरा—(किसी को) यमपुर पहुँचाना=मार डालना। प्राण ले लेना। |
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यम-पुरुष :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. यमराज। २. यम के दूत। |
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यम-प्रिय :
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पुं० [सं० ष० त०] वट (वृक्ष)। |
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यम-भगिनी :
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स्त्री० [सं० ष० त०] यमुना नदी। |
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यम-यातना :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] पुराणानुसार मरने के समय यम के दूतों की दी हुई पीड़ा। |
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यम-रथ :
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पुं० [सं० ष० त०] यम की सवारी, भैंसा। |
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यम-राज :
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पुं० [सं० कर्म० स० टच्, प्रत्यय] यमों के राजा धर्मराज, जो प्राणी के मरने के उपरान्त उसके कर्मों का विचार कर उसे दंड अथवा शुभ फल देते हैं। (पुराणों में इनकी संख्या १४ मानी गई है)। |
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यम-राज्य, यम-राष्ट्र :
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पुं० [सं० ष० त०] यमलोक। |
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यम-लोक :
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पुं० [सं० ष० त०] १. वह लोक जहाँ मरने के उपरान्त मनुष्य जाते हों। यमपुरी। २. नरक। |
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यम-वाहन :
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पुं० [सं० ष० त०] यम की सवारी। भैंसा। |
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यम-व्रत :
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पुं० [सं० ष० त०] राजा का धर्म जिसके अनुसार उसे यमराज की भाँति निष्पक्ष होकर सब को दंड देना चाहिए। राजा का दंडनियम। |
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यम-सदन :
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पुं० [सं० ष० त०] यमपुर। |
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यमक :
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पुं० [सं० यम√कै (प्राप्ति)+क] साहित्य में एक शब्दालंकार जो उस समय माना जाता है जब किसी चरण में एक ही शब्द दो या अधिक बार आता है और हर बार अलग-अलग अर्थ में आता है। जैसे—कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।—बिहारी। |
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यमकात, यमकातर :
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पुं० [सं० यम+हिं० कातर] १. यम का छुरा या खाँड़ा। २. एक प्रकार की तलवार। |
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यमज :
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वि० [सं० यम√जन् (उत्पत्ति)+ड] जुड़वाँ। यमल। पुं० १. जुड़वाँ बच्चे। २. ऐसा घोड़ा जिसका एक ओर का अंग हीन और दुर्बल हो और दूसरी ओर का वही अंग ठीक हो। ३. अश्वनीकुमार। |
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यमजित् :
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वि० [सं० यम√जि (जय)+क्विप्, तुक्-आगम] मृत्यु को जीतनेवाला। मृत्यंजय। पुं० शिव। |
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यमत्व :
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पुं० [सं० यम+त्व०] यम का धर्म, पद या भाव। |
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यमदग्नि :
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पुं० [सं० जमदग्नि]=जमदग्नि (परशुराम के पिता)। |
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यमदंड :
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पुं० [सं० ष० त०] १. यम के हाथ में रहनेवाला डंडा। २. वह दंड जो यम से प्राप्त होता है। |
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यमदुतिया :
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स्त्री०=यम-द्वितीया (भैया दूज)। |
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यमदूतक :
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पुं० [सं० यमदूत+कन्] १. यम का दूत। २. कौआ। |
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यमनाह :
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पुं० [सं० यमनाह, प्रा० जमनाह] यमों के स्वामी, धर्मराज। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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यमनिका :
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स्त्री०=यवनिका (रंगमंच का परदा)। |
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यमनी :
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वि० [अ० यमन] यमन देश-संबंधी। पुं० १. यमन देश का निवासी। २. यमन देश की कृति या वस्तु। |
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यमपुरी :
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स्त्री० [सं० ष० त०] यमलोक। यमपुर। |
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यमल :
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वि० [सं० यम√ला (आदान)+क] जुड़वाँ। युग्म। पुं० ऐसी दो सन्तानें जो एक साथ उत्पन्न हुई हों। |
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यमलार्जुन :
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पुं० [सं० म-अर्जुन, कर्म० स०] कुबेर के नलकूबर और मणिग्रीव नामक दोनों पुत्र जो शाप वश अर्जुन वृक्ष हो गए थे और जिन्हें श्रीकृष्ण ने शाप से मुक्त किया था। |
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यमली :
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स्त्री० [सं० यमल+ङीष्] १. एक में मिली हुई दो चीजें। जोड़। जोड़ी। २. स्त्रियों के घाघरे और चोली की जोड़ी। |
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यमसू :
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पुं० [सं० यम√सू (प्रसूति)+क्विप्] सूर्य। वि० स्त्री० जिसे एक साथ दो सन्तानों हुई हों। |
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यमहंता (तृ) :
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पुं० [सं० ष० त०] काल का नाश करनेवाले शिव। |
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यमांतक :
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पुं० [सं० यम-आतंक, ष० त०] शिव। |
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यमानिका :
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स्त्री० [सं० यमानी+क+टाप्] अजवायन। |
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यमानी :
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स्त्री० [सं० यम+ल्युट-अन० पृषो० सिद्धि] अजवायन। |
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यमानुजा :
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स्त्री० [सं० यम-अनुजा, ष० त०] यमराज की छोटी बहन, यमुना। |
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यमारि :
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पुं० [सं० यम-अरि, ष० त०] विष्णु। |
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यमालय :
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पुं० [सं० यम-आलय, ष० त०]=यमपुर। |
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यमित :
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भू० कृ० [सं० यम] १. संयत। २. दबाया हुआ। ३. बँधा हुआ। |
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यमी :
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स्त्री० [सं० यम+ङीष्] यम की बहन, यमुना (नदी) (पुराण)। पुं० यम नियम आदि का पालन करनेवाला व्यक्ति। संयमी। |
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यमुना :
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स्त्री० [सं० यम+उनन+टाप्०] १. दुर्गा। २. यम की बहन यमी जो बाद में नदी के रूप में अवतरित हुई थी। (पुराण) ३. उत्तरी भारत की एक प्रसिद्ध बड़ी नदी जो हिमालय के यमुनोत्तरी नामक स्थान से निकलकर प्रयाग के पास गंगा में मिलती है। |
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यमुना-कल्याणी :
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स्त्री० [सं० उपमित० स०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। |
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यमुनाभिद् :
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पुं० [सं० यमुना√भिद् (विदारण)√क्विप्] कृष्ण के भाई बलराम जिन्होंने अपने हल से यमुना के दो भाग किये थे। |
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यमुनोत्तरी :
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स्त्री० [सं० यमनोत्तर] हिमालय में गढ़वाल के पास का एक पर्वत जिससे यमुना नदी निकली है। |
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यमेश :
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पुं० [सं० यम-ईश, ब० स०] भरणी नक्षत्र। |
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यमेश्वर :
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पुं० [सं० यम-ईश्वर, ष० त०] शिव। |
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