शब्द का अर्थ
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याम :
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पुं० [सं०√यम् (नियंत्रण)+घञ्] १. दिन मान का आठवाँ अंश। तीन घंटे का समय। पहर। २. काल। समय। ३. एक प्रकार के देवगण जो संख्या में बारह कहे गये हैं। वि० यम-सम्बन्धी। यम का। स्त्री० यामि (रात)। |
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याम-घोष :
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पुं० [सं० ब० स०] १. मुर्गा। २. श्रृंगाल। २. पहरों की सूचना देनेवाला घंटा। घड़ियाल। |
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याम-घोषा :
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स्त्री० [सं० ब० स०+टाप्] वह घंटा जो समय की सूचना देने के लिए बजता हो घड़ियाल। |
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याम-नाली :
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स्त्री० [सं० ष० त०] समय बतानेवाली पुरानी चाल की घड़ी। |
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याम-वृत्ति :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. रात के समय चौकसी करने या पहरा देने का काम। २. उक्त काम का पारिश्रमिक। |
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यामकिनी :
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स्त्री०=यामि। |
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यामल :
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पुं० [सं० यमल+अण्] १. जुड़वाँ बच्चे। यमल। २. तन्त्र शास्त्र का एक ग्रन्थ। |
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यामवती :
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स्त्री० [सं० याम+मतुप्, +ङीष्] रात। निशा। |
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यामाता :
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पुं० =जामाता (दामाद)। |
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यामायन :
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पुं० [सं० यम+फक्, -आयन] वह जो यम के गोत्र में उत्पन्न हो। |
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यामार्द्ध :
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पुं० [सं० याम-अर्द्ध, ष० त०] याम अर्थात् पहर का आधा भाग। डेढ़ घंटे का समय। |
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यामि :
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स्त्री० [सं०√या+मि] १. कुल-वधू। कुल स्त्री। २. बहन। भगिनी। ३. रात्रि। रात। ४. पुत्री। बेटी। पुत्र-वधू। ६. दक्षिण दिशा। ७. धर्म की एक पत्नी। |
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यामिक :
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पुं० [सं० याम+ठक्—इक] रात के समय चौकसी करने या पहरा देनेवाला व्यक्ति। |
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यामिका :
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स्त्री० [सं० यामिक+टाप्] रात। |
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यामिका-पति :
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पुं० [सं०] १. चंद्रमा। २. कर्पूर। |
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यामित्र :
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पुं० [सं० जामित्र] जन्म-कुण्डली में लग्न से सातवाँ स्थान। |
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यामित्र-वेध :
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पुं० [सं० जामित्रवेध] वेधशाला। |
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यामिन (नि) :
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स्त्री०=यामिनी। |
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यामिनी :
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स्त्री० [सं० याम+इनि+ङीष्] १. रात्रि। रात। २. हलदी। |
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यामिनी-चर :
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पुं० [सं० यामिनी√चर्+ट] १. राक्षस। निशाचर। २. उल्लू। ३. गुग्गुल। |
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यामुन :
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वि० [सं० यमुना+अण्] १. यमुना-संबंधी। २. यमुना में रहने या होनेवाला। पुं० यमुना के किनारे बसने वाले लोग। २. एक प्राचीन तीर्थ। ३. एक प्राचीन पर्वत। ४. एक प्राचीन जनपद। ५. एक प्राचीन वैष्णव आचार्य। ६. आँख में लगाने का अंजन या सुरमा। |
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यामुनेष्टक :
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पुं० [सं० यामुन-इष्टक, उपमित स०] सीसा। |
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यामेय :
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पुं० [सं० यामि+ढक्—एय] १. यामिका पुत्र। २. बहन का लड़का। भाँजा। |
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याम्य :
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वि० [सं० यम+ष्यञ्] १. यम-संबंधी। यम का। २. दक्षिण दिशा का। दक्षिणी। पुं० [यामी+यत्] १. विष्णु। २. शिव। ३. यमदूत। ४. अगस्त्य ऋषि का एक नाम। ५. चन्दन। ६. भरणी (नक्षत्र)। |
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याम्य-द्रुम :
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पुं० [सं० कर्म० स०] सेमल का पेड़। |
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याम्या :
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स्त्री० [सं० या्म्य+टाप्] १. दक्षिण दिशा। २. भरणी नक्षत्र। |
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याम्यायन :
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पुं० [सं० याम्य+अयन, कर्म० स०] दक्षिणायन। |
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याम्योत्तर :
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वि० [सं० याम्य-उत्तर, सुप्सुपा स०] जो दक्षिण से उत्तर की ओर या उक्त लंब में हो। |
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याम्योत्तर-दिगंश :
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पुं० [सं० कर्म० स०] लंबांश। दिगंश। (भूगोल, खगोल)। |
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याम्योत्तर-रेखा :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] खगोल और भूगोल में वह कल्पित रेखा जो किसी विशिष्ट स्थान (जैसे—प्राचीन भारत में उज्जयिनी और आज-कल इंग्लैड के ग्रीनविच नगर) के ख-स्वस्तिक से चलकर सुमेरु और कुमेरु को पार करती हुई पृथ्वी का पूरा वृत्त बनाती है। (मेरीडियन) |
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याम्योत्तर-वृत्त :
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पुं० [सं० मध्य० स०] याम्योत्तर रेखा से बननेवाला वृत्त। (मेरीडियन) |
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