शब्द का अर्थ
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					रंभ					 :
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					पुं० [सं०√रंभ् (शब्द)+खञ्] १. बहुत जोर का शब्द। जैसे—गौ या भैस का रंभ। २. [√रंभ्+अच्] बाँस। ३. एक प्रकार का तीर या वाण। ४. महिषासुर के पिता का नाम। पुं० +रंभा। पुं० =आरंभ। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					रंभा					 :
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					स्त्री० [सं०√रंभ+अच्—टाप्] १. केला। कदली। २. गौरी। पार्वती। ३. स्वर्ग की एक प्रसिद्ध अप्सरा। ४. वेश्या। रंडी। ५. उत्तर दिशा। पुं० [सं० रंभ] लोहे का वह मोटा भारी डंडा जिसका अगला सिरा धारदार होता है और जिससे आघात करके मजदूर या दीवार में छेद करते हैं।				 | 
			
			
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					रंभा-तृतीया					 :
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					स्त्री० [सं० मध्य० स०] ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया।				 | 
			
			
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					रँभाना					 :
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					अ० [सं० रंभणा] गाय का बोलना। गाय का शब्द करना। स० गौ से रंभण करना। गौ के शब्द करने में प्रवृत्त करना।				 | 
			
			
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					रंभापति					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] इंद्र।				 | 
			
			
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					रंभाफल					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] केला।				 | 
			
			
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					रंभित					 :
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					भू० कृ० [सं०√रंभ्+क्त] १. जिसमें या जिससे शब्द उत्पन्न किया गया हो। २. बजाया हुआ।				 | 
			
			
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					रंभी (भिन्)					 :
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					पुं० [सं०√रंभ्+णिनि] १. व्यक्ति जो हाथ में बेंत या दंड लिए हुए हो। २. द्वारपाल जो हाथ में दंड लिये रहता था। ३. वृद्ध आदमी जो प्रायः छड़ी या लकड़ी लेकर चलता है।				 | 
			
			
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					रंभोरु					 :
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					वि० [सं० रंभा-उरु, ब० स०] १. (स्त्री) जिसकी केले के वृक्ष के समान उतार-चढ़ाववाली जाँघें हो। २. मनोहर। सुन्दर।				 | 
			
			
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