शब्द का अर्थ
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					रोप					 :
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					पुं० [सं०√रुह (उद्भव)+णिच्+घञ्, ह-प, वा√रुप्, (विमोहन)+घञ] १. ठहरने की क्रिया या भाव। ठहराव। २. किसी को मुग्ध करके उसमें बुद्धि-भ्रम उत्पन्न करना। ३. मोहित करना। मोहना। ४. तीर। बाण। ५. छेद। सूराख। पुं० [देश] हल की एक लकड़ी जो हरिस के छोर पर जंधे के पार लगी रहती है।				 | 
			
			
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					रोपक					 :
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					वि० [सं०√रुह्+णिच्, ह-प+वुल्-अक] १. रोपण या स्थापन करनेवाला। २. रोपनेवाला। ३. जमाने या लगानेवाला। पुं० [सं०] सोने-चाँदी की एक पुरानी तौल या मान जो सुवर्ण का ७0 वाँ भाग होता था।				 | 
			
			
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					रोपण					 :
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					पुं० [सं०√रुह्+णिचह्-प, +ल्युट-अन] [भू० कृ० रोपित, वि० रोप्य] १. ऊपर रखना या स्थापित करना। २. (पौधे, बीज आदि) जमाना। बैठाना। लगाना। ३. बनाकर खड़ा या तैयार करना। ४. अपने प्रति अनुरक्त या मोहित करना। ५. घाव भरनेवाली क्रिया या चिकित्सा करना। मरहम या लेप लगाना। ६. विचारों में गड़बड़ी डालना। बुद्धि फेरना।				 | 
			
			
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					रोपना					 :
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					स० [सं० रोपण] १. पौधा या बीज जमाना। लगाना। बैठाना। बोना। २. कुछ विशिष्ट प्रकार के पौधों को एक स्थान से उखाड़कर दूसरे स्थान पर लगाना। दृढ़तापूर्वक कोई चीज स्थापित या स्थित करना। ४. कोई वस्तु लेने के लिए हथेली या कोई चीज सामने करना। पसारना। फैलाना। जैसे—किसी के आगे हाथ रोपना। पाने, माँगने या लेने के लिए हाथ फैलाना या बढ़ाना। ५. (आघात या वार) किसी अंग या अस्त्र पर लेना या सहना। जोड़ना।				 | 
			
			
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					रोपनी					 :
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					स्त्री० [हिं० रोपना] १. रोपने की क्रिया या भाव। २. वह समय जिन दिनों धान रोपा जाता है।				 | 
			
			
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					रोपित					 :
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					भू० कृ० [सं०√रुह्+णिच्—हस्य, प+क्त] १. जिसका रोपण किया गया हो। जगाया या लगाया हुआ। २. रखा या स्थापित किया हुआ। ३. मुग्ध या भ्रांत किया हुआ। ४. उठाया या खड़ा किया हुआ।				 | 
			
			
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