शब्द का अर्थ
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					लाव					 :
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					पुं० [सं०√लू (छेदना)+ण] १. लवा नामक पक्षी। २. लौंग। ३. काटने की क्रिया या भाव। स्त्री० [देश या सं० रज्जू] मोटा रस्सा। मुहावरा—लाव चलाना=चरसे के द्वारा कूएँ से पानी निकालकर खेत सींचना। २. उतनी भूमि जितनी एक दिन में एक चरसे से सींची जा सके। ३. लंगर में बांधने का रस्सा। ४. डोरी। रस्सी। पुं० [हिं० लावा] ऋण के रूप में किसी को दिया जानेवाला धन। मुहावरा—लाव उठाना= (क) चीज बंधक रखकर उधार देना। (ख) कष्ट के समय खेतिहरों की सहायता करने के लिए उन्हें धन देना। लाव-लगाना=उधार लिया हुआ रुपया, अन्नादि देकर चुकाना। स्त्री० [हिं० लाव=आग] अग्नि। आग।				 | 
			
			
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					लावक					 :
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					पुं० [सं० लाव+कन्] लवा (पक्षी)। पुं० [देश] १. चावल की जाड़े की फसल। २. चरसा। ३. उतना समय जितना एक बार मोट खींचने में लगता है।				 | 
			
			
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					लावण					 :
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					पुं० [सं० लवण+अण्] सुँघनी। नस्य। वि० १. लवण संबंधी। नमक का। २. जिसमें नमक मिला हो। नमकीन। ३. (ओषधि आदि) जिसका लवण या नामक के द्वारा संस्कार हुआ हो।				 | 
			
			
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					लावणिक					 :
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					पुं० [सं० लवण+ठअ—इक] १. वह जो नमक बनाता या बेचता हो। नमक का प्यापारी। २. नमक रखने का बर्तन। नमकदान। वि० =लावण।				 | 
			
			
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					लावण्य					 :
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					पुं० [सं० लवण+ष्यञ्] १. लवण का धर्म या भाव। नमक-पन। २. शील या स्वभाव की उत्तमता। ३. आकृति आदि में होनेवाली नमकीनी। चेहरे या शरीर का नमक अर्थात् सलोनापन।				 | 
			
			
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					लावण्या					 :
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					स्त्री० [सं० लावण्य+अच्+टाप्] ब्राह्मी (बूटी)।				 | 
			
			
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					लावदार					 :
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					वि० [हिं० लाव=आग+फा० दार (प्रत्यय)] भरी हुई तोप। पुं० वह जो पुरानी चाल की तोपों में बत्ती लगाकर उन्हें चलाता या छोड़ता था।				 | 
			
			
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					लावनता					 :
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					स्त्री० =लावण्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					लावना					 :
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					स० [हिं० लगना] १. लगना। स्पर्श करना। उदाहरण—अंतर पट दे खोल सबद उर लावरी।—कबीर। २. पूरा करना। उदाहरण—नाचहिं गावहिं लावहिं सेवा।—तुलसी।				 | 
			
			
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					लावनि					 :
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					स्त्री० [सं० लावण्य] लावण्य। सुन्दरता। स्त्री० =लावनी।				 | 
			
			
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					लावनी					 :
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					स्त्री० [सं० लावणी] १. संगीत में देशी रागों के अंतर्गत एक उपराग जिसका विकास मगध के पास लावणक नामक प्रदेश के लोक-गीतों में हुआ था। उसके कई भेद हैं। यथा—लावनी कलिंगड़ा, लावनी जंगला, लावनी भूपाली, लावनी रेखता आदि। २. लोक में प्रचलित उपराग के वे विशिष्ट प्रकार जो प्रायः चंग या डफ बजाकर उसके साथ गाये जाते हैं। ३. उक्त प्रकार की वह कविता या गीत जो चंग या डफ बजाकर गाया जाता हो।				 | 
			
			
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					लावनी-बाज					 :
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					पुं० [हिं०+फा०] [भाव० लावनी-बाजी] वह जो चंग या डफ पर लावनियाँ गाता हो।				 | 
			
			
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					लावा					 :
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					पुं० [सं० लाजा] ज्वार, धान, रामदाने आदि को बालू में भूनने पर तैयार होनेवाला वह रूप जिसमें दाने-फूटकर फैल जाते हैं। मुहावरा—(किसी पर) लावा मेलना= (क) किसी को अधिकार या वश में करने के लिए मंत्र पढ़ते हुए उस पर लावा फेंकना। (ख) अधिकार या वश में करना। वि० [हिं० लावना] लगाई-बुझाई करनेवाला। जो पक्षों में झगड़ा खड़ा करनेवाला। पुं० [हिं० लवना] फसल काटनेवाला मजदूर। पुं० =लवा। पुं० [अं० लाबत] राख, पत्थर और धातु आदि मिला हुआ वह द्रव पदार्थ जो प्रायः ज्वालामुखी पर्वतों के मुख से विस्फोट होने पर निकलता है। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					लावा-परछन					 :
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					पुं० [हिं०] एक वैवाहित रीति जिसमें कन्या की झोली अथवा उसके हाथ में पकड़ी हुई डलिया में उसके भाई लावा डालते या छोड़ते हैं। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					लावा-लुतरा					 :
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					वि० [हिं०] इधर की बाते उधर लगाकर लोगों को आपस में लड़ानेवाला।				 | 
			
			
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					लावाणक					 :
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					पुं० [सं०] मगध का निकटवर्ती एक देश।				 | 
			
			
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					लावु					 :
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					पुं० [हिं० अलावू] कद्दू। घीया। लौआ।				 | 
			
			
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					लाव्य					 :
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					वि० [सं०√ल् (छेदन)+ण्यत्] लवने अर्थात् काटने के योग्य।				 | 
			
			
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