शब्द का अर्थ
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					लिह					 :
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					वि० [सं०√लिह् (आस्वादन)+क] चाटनेवाला (बहुधा समस्त पदों के अन्त में प्रयुक्त)				 | 
			
			
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					लिहना					 :
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					स०=लिखना। स०=लेना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					लिहाज					 :
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					पुं० [अ० लिहाज] १. व्यवहार या बरताव में किसी बात या व्यक्ति का आदरपूर्वक रखा जानेवाला ध्यान। जैसे—बड़ों का लिहाज करना सीखो। २. किसी बात का किसी रूप में रखा जानेवाला ध्यान। जैसे—(क) इस नुस्खे में खाँसी का भी लिहाज रखा गया है। (ख) मैने उसकी गरीबी का लिहाज करके उसे छोड़ दिया। ३. शील, संकोच आदि के विचार से रखा जानेवाला ध्यान। जैसे—काम-बिगड़ जाने पर वह किसी का लिहाज न करेगा, सबको निकाल देगा। ३. तरफदारी। पक्षपात। ५. लज्जा। शर्म। हया। क्रि० प्र०— करना।—रखना।				 | 
			
			
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					लिहाजा					 :
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					अव्य० [अ०] अतः। इसलिए।				 | 
			
			
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					लिहाड़ा					 :
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					वि० [देश] १. बेहूदा और वाहियात (व्यक्ति) २. निकम्मा या निरर्थक (पदार्थ)।				 | 
			
			
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					लिहाड़ी					 :
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					स्त्री० [देश] किसी को बहुतों में उपहासास्पद सिद्ध करने के लिए किया जानेवाला मजाक। मुहावरा—(किसी की) लिहाड़ी लेना=किसी को तुच्छ या निन्दनीय ठहराते हुए उसका उपहास करना।				 | 
			
			
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					लिहाफ					 :
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					पुं० [अ० लिहाफ़] जाड़े के दिनों में सोते समय ओढ़ने की रूईदार भारी और मोटी रजाई।				 | 
			
			
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					लिहित					 :
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					वि० [सं० लीढ़] चाटा हुआ।				 | 
			
			
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