शब्द का अर्थ
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विय :
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वि० [सं० द्वि, द्वितीय, प्रा० विय] १. दो। युग्म। २. दूसरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
वियंग :
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वि० [सं० अव्यंग] जो टेढ़ा-मे़ढ़ा न हो। सीधा। पुं० [?] शिव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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वियत् :
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पुं० [सं० वि√यम्+क्विप्, तुक्-म-लोप] १. आकाश। २. वायुमंडल। वि० १. गमनशील। २. गतिशील। |
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वियत्-पताका :
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स्त्री० [सं० वियत्+पताका] विद्युत। बिजली। |
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वियद्गंगा :
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स्त्री० [सं० ब० स०] आकाशगंगा। |
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वियम :
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पुं० [सं०√यम्+अप्]=वियाम। |
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वियाम :
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पुं० [सं० वि√यम् (संयम करना)+घञ्] १. इन्द्रिय निग्रह। संयम। २. विराम। ३. कष्ट। ४. रोक। |
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वियुक्त :
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वि० [वि√युज् (संयक्त होना)+क्त] [भाव० वियुक्ति] १. जो युक्त या संयुक्त न हो। २. जो किसी से अलग, जुदा या पृथक् हो चुका हो। ३. जिसे औरों ने छोड़ दिया हो। परित्यक्त। ४. वियोगी। ५. वंचित, रहित या हीन। |
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वियुग्म :
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वि० [सं०] १. जो युग्म अर्थात् जोड़ा हो। अकेला। २. (गणित में वह राशि) जिसे दो से भाग देने पर एक निकलता या बचता हो। (आँड) ३. जिसमें कुछ अस्वाभाविकता हो। |
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वियुत :
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वि० [सं० वि√यु (मिलना, न मिलना)+क्त] १. वियुक्त। अलग। २. जो किसी से अलग हुआ हो। वियुक्त। ३. रहित। हीन। |
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वियो :
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वि०=विय (दूसरा)। |
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वियोग :
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पुं० [वि√युज् (संयोग होना)+घञ्, मध्यम० स०] १. योग न होने की अवस्था या भाव। पार्थक्य। २. ऐसी अवस्था जिसमें दो जीव विशेषतः प्रेमी एक दूसरे से दूर हों और इस प्रकार उनमें मिलन न होता हो। ३. उक्त अवस्था के फलस्वरूप प्रेमियों को होनेवाला कष्ट। ४. किसी का सदा के लिए बिछुड़ना। मरने के कारण होनेवाला अलगाव। ५. उक्त के फलस्वरूप होनेवाला शोक। |
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वियोग-श्रृंगार :
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पुं० [सं०] साहित्य में श्रृंगार रस का वह अंग या विभाग जिसमें विरही की दशा का वर्णन होता है। २. संयोग श्रृंगार का जिसमें विरही की दशा का वर्णन होता है। विप्रलंभ। ३. ‘संयोग श्रृंगार’ का विपर्याय। |
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वियोगांत :
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वि० [सं० ब० स०] (कथा-कहानी या नाटक) जिसके अंतिम दृश्य में प्रेमी, मित्र आदि के वियोग का वर्णन हो। |
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वियोगिन :
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स्त्री०=वियोगिनी। |
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वियोगिनी :
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वि० [वियोगिन्+ङीष्] जो नायक, पतिया प्रिय के पर देश चले जाने पर उसके विरह में दुःखी हो। स्त्री० विरहनी नायिका। |
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वियोगी (गिन्) :
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वि० [सं० वियोगिन्] [स्त्री० वियोगिनी] १. जिसका किसी से वियोग हुआ हो। २. विरही। पुं० १. नायक जो नायिका से वियुक्त होने पर दुःखी हो। २. चकवा पक्षी। चक्रवाक। |
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वियोजक :
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वि० [सं० वि√युज् (मिलना)+णिच्+ण्वुल-अक] [स्त्री० वियोजिका] वियोजन करने-वाला। पृथक् करनेवाला। पुं० गणित में वह छोटी संख्या जो किसी बड़ी संख्या में से घटाई गई हो। |
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वियोजन :
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पुं० [सं० वि√युज् (मिलना)+णिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० वियोजित, वियुक्त] १. वियोग होना। योग का अभाव। २. जुदाई। वियोग। ३. गणित में एक संख्या (या राशि) में से दूसरी संख्या या राशि घटाने की क्रिया। |
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वियोजित :
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भू० कृ० [सं० वि√युज् (मिलना)+णिच्+क्त] १. जिसका किसी से वियोग हुआ हो। २. जिसे बलात् किसी से अलग या जुदा कर दिया गया हो। ३. वंचित। |
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वियोज्य :
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वि० [सं० वि√युज् (मिलना)+क्त] १. जिसका वियोजन हो सके या होने को हो। २. (गणित में संख्या) जिसमें से कोई छोटी संख्या घटाई जाने को हो। |
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