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शा  : पुं० [फा० नश्शः] १. वह मानसिक विकृति जो अफीम, चरस, गाँजा, भाँग, शराब आदि मादक द्रव्यों का सेवन करने से उत्पन्न होती है। मादक द्रव्यों का उपयोग या व्यवहार उत्पन्न करने पर होने वाली ऐसी स्थिति जिसमें मनुष्य बदहवास हो जाता है। विशेष–ऐसी स्थिति में मनुष्य थोड़े समय के लिए प्रायः दुख और कष्ट भूलकर निश्चिंत और मस्त हो जाता है; ज्ञान अथवा बुद्धि पर उसका नियंत्रण शिथिल पड़ जाता है; वह ऐसे काम या बातें करने लगता है, जो साधारण स्थिति में नहीं होते। नशे की मात्रा बढ़ने पर आदमी बेहोश हो जाता है और कुछ अवस्थाओं में मर भी सकता है। यह कुछ समय शारीरिक क्लांति दूर करके मन में नई-नई उमंग पैदा करता है। क्रि० प्र०—उतरना।–चढ़ना।–जमना।–टूटना। मुहा०—नशा किरकिरा होना=कोई अप्रिय घटना या बात होने पर नशे के आनंद या मस्ती में बाधा पड़ना। नशा हिरन हो जाना=कोई विकट घटना या बात होने पर नशा बिल्कुल दूर हो जाना। २. वह पदार्थ जिसके सेवन से मनुष्य की उक्त प्रकार की मानसिक स्थिति होती हो। मादक द्रव्य। ३. कोई मादक पदार्थ सेवन करते रहने की प्रवृत्ति या बान। ४. किसी प्रकार के अधिकार, प्रवृत्ति, बल मनोविकार आदि की अधिकता, तीव्रता या प्रबलता के कारण उत्पन्न होने वाली उक्त प्रकार की अनियंत्रित अथवा असंतुलित मानसिक अवस्था। मद। जैसे–जवानी, दौलत या मुहब्बत का नशा ! मुहा०—(किसी का) नशा उतरना=कष्ट, दंड आदि देकर घमंड या मद दूर करना। ५. ऐसी स्थिति जिसमें मनुष्य आनंद पूर्वक किसी धुन में लगा रहना चाहता हो। मस्ती।
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शाइस्तगी  : स्त्री० [फा०] शाइस्ता होने की अवस्था या भाव।
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शाइस्ता  : वि० [फा० शाइस्तः] १. शिष्ट तथा सभ्य। २. नम्र तथा सुशील। ३. जिसे अच्छा आचरण या व्यवहार सिखाया गया हो।
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शाक  : वि० [सं० शक+अण्] १. शक जाति संबंधी। २. शक राजा का। ३. शक सम्वत् संबंधी। पुं० १. वनस्पति। २. विशेषतः ऐसी वनस्पति जिसकी तरकारी बनाई जाती हो। ३. किसी वनस्पति के वे पत्ते जिनकी तरकारी बनाई जाती है। ४. उक्त की बनी हुई तरकारी। ५. सागवान। ६. भोजपत्र। ७. सिरिस। ८. सात द्वीपों में से छठा द्वीप। ९. शक जाति के लोग। १॰. एक युग विशेषतः शक राजा शालिवाहन का युग। ११. उक्त के द्वारा चलाया हुआ संवत्। १२. शक्ति। वि० [अ० शाक] १. भारी। २. दूभर। दुस्सह। मुहावरा—शाक गुजरना=कष्टकर प्रतीत होना। खलना। ३. कष्ट या दुःख देनेवाला। (काम)।
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शाक-भक्ष  : वि० [सं० ब० स०]=शांकाहारी।
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शाकट  : वि० [सं० शकट+अण्] १. शकट या गाड़ी संबंधी। २. (वह जो कुछ) गाड़ी पर लादा गया हो। पुं० १. गाड़ी खींचनेवाला पशु। २. गाड़ी पर लादा जानेवाला बोझ। ३. लिसोड़ा। ४. धौ का पेड़। ५. खेत।
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शाकटायन  : पुं० [सं० शकट+फक्-आयन] १. शकट का पुत्र या वंशज। २. एक बहुत प्राचीन संस्कृत वैयाकरण जिसका उल्लेख पाणिनी ने किया है। ३. एक दूसरे अर्वाचीन वैयाकरण जिनके व्याकरण का प्रचार जैनों में है।
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शाकटिक  : पुं० [सं० शकट+ठक्-इक] १. सग्गड़ हाँकनेवाला व्यक्ति। २. गाड़ीवान।
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शाकटीन  : पुं० [सं० शकट+खञ्-ईन] १. गाड़ी का बोझ। २. बीस तुला या दो हजार पल की एक पुरानी तौल।
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शाकद्रुम  : पुं० [सं० मध्यम० स०] १. वरुण वृक्ष। २. सागौन।
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शाकद्वीपीय  : वि० [सं० शाकद्वीप+छ-ईय] शक (द्वीप) का रहनेवाला। पुं० ब्राह्मणों का एक वर्ग जिसे मग भी कहते हैं और शक द्वीप से आया हुआ माना जाता है।
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शांकभरी  : स्त्री० [सं० शाक√भृ (भरण करना)+खच्, मुम्-ङीष्] १. दुर्गा। २. साँभर नगर का प्राचीन नाम।
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शाकंभरीय  : वि० [सं० शाकंभर+छ-ईय] सांभर झील से उत्पन्न। पुं० साँभर नमक।
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शांकर  : वि० [स० शंकर+अण्] १. शहीद संबंधी। शंकर का। २. शंकराचार्य का। जैसे—शांकर भाष्य। पुं० १. शंकराचार्य का अनुयायी। २. एक प्रकार का छंद। ३. एक प्रकार की सोमलता। ४. आर्द्रा नक्षत्र, जिसके देवता शिव है। ५. साँड़।
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शांकरी  : पुं० [सं० शंकर+इञ्] शिव के पुत्र गणेश जी। २. कार्तिकेय। ३. अग्नि। ४. शमी वृक्ष। स्त्री० [शांकर-ङीष्] शिव द्वारा निर्धारित अक्षरों का क्रम शिव-सूत्र।
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शाकरी  : स्त्री० [सं० शाक√रा (लेना)+क, ङीष्] दे० ‘शाकारी’।
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शाकल  : वि० [सं० शकल+अण्] १. शकल अर्थात् अंश या खंड से संबंध रखनेवाला। २. शकल नामक रंग से बना या रँगा हुआ। पुं० १. अंश। खण्ड। टुकड़ा। २. ऋग्वेद की एक शाखा या संहिता। ३. लकड़ी का बना हुआ जंतर या तावीज। ४. एक प्रकार का साँप। ५. प्राचीन भारत में मद्र जनपद की राजधानी। (आजकल का स्थालकोट नगर)।
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शाकलिक  : वि० [सं०√शाकल+ठक्-इक] शकल या शाकल संबंधी।
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शाकली  : पुं० [सं० शाकल-ङीप्] एक प्रकार की मछली।
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शाकल्य  : पुं० [सं० शकल+यञ्] एक प्राचीन ऋषि जो ऋग्वेद की शाखा के प्रचारक थे और जिन्होंने पहले-पहल उसका पद पाठ किया था।
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शांकव  : वि० [सं० शंकु+अञ्] जो शंकु के आकार या रूप में हो। जिसके नीचे का भाग चौड़ा और मोटा हो और ऊपर का भाग बराबर पतला या कोणाकार होता गया हो (कोनिक)।
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शाकशाल  : पुं० [सं० शाक√शाल (सुशोभित होना)+अच्] बकायन। महानिंब वृक्ष।
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शाका  : स्त्री० [सं० शाक-टाप्] हरीतकी। हड़। हर्रे।
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शाकारी  : स्त्री० [सं० शकार+अण्-ङीष्] शकों अथवा शाकरों की बोली जो प्राकृत का एक भेद है।
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शाकाष्टका  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अष्टमी (इस दिन पितरों के उद्देश्य से शाकदान किया जाता है)।
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शाकाष्टमी  : स्त्री० [सं० मध्यम० स०]=शाकाष्टका।
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शाकाहार  : पुं० [सं० ष० त० स०] अनाज अथवा फल-फूल का भोजन (मांसाहार से भिन्न)।
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शाकाहारी  : पुं० [सं० शाकाहारिन्] वह जो केवल अन्न, फल और सागभाजी खाता हो, मांस न खाता हो। निराभिषभोजी (वेजीटेरियन)।
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शाकिनी  : स्त्री० [सं० शाक+इनि-ङीष्] १. शाक अर्थात् शाक-भाजी की खेती। २. वह भूमि जिसमें साक-भाजी बोई जाती हो। [सं० शाकिन-ङीष्] ३. एक पिशाची या देवी जो दुर्गा के गणों में समझी जाती है। डाइन। चुड़ैल।
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शाकिर  : वि० [अ०] १. शुक्र करने अर्थात् कृतज्ञता प्रकाशित करनेवाला। शुक्रगुजार। २. संतोषी।
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शाकी  : वि० [अ०] १. शिकायत करनेवाला। २. नालिश या फरियाद करनेवाला। ३. चुगल खोर।
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शाकुंतल, शाकुंतलेय  : वि० [सं० शकुंतला+अण्, शकुंतला,+ढक्-एय] शकुंतला संबंधी। पुं० शकुंतला के गर्भ से उत्पन्न राजा भरत।
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शाकुंतिक  : पुं० [सं० शकुंत+ठञ्-इक] बहेलिया।
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शाकुन  : वि० [सं० शकुन+अण्] १. पक्षी संबंधी। चिड़ियों का। २. शकुन संबंधी। पुं० १. बहेलिया। २. दे० ‘शकुन’।
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शाकुनि  : पुं० [सं० शाकुन+इन] बहेलिया।
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शाकुनी  : पुं० [सं० शाकुन+इन, दीर्घ, नलोप, शाकुनिन] १. मछली पकड़नेवाला। मछुआ। २. शकुन का विचार करनेवाला पंडित। ३. एक प्रकार का प्रेत।
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शाकुनेय  : वि० [सं० शकुन+ढय-एय] पक्षी संबंधी। शकुन संबंधी। पं० १. बकासुर दैत्य का एक नाम। २. एक प्रकार का छोटा उल्लू।
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शाकुल  : पुं०=शाकुलिक।
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शाकुलिक  : पुं० [सं० शकुल+ठक्—इक] १. मछलियों का झोल या समूह। २. मछुआ। मल्लाह।
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शाक्त  : वि० [सं० शक्ति+अण्] १. शक्ति संबंधी। बल संबंधी। २. दुर्गा संबंधी। पुं० वह जो तांत्रिक रीति से शक्ति अर्थात् देवी की पूजा करता हो। शक्ति का उपासक, अर्थात् वाम-मार्गी।
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शाक्तागम  : पुं० [सं० ष० त० स०] शाक्तों का आगम या शास्त्र अर्थात् तंत्रशास्त्र।
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शाक्तिक  : पुं० [सं० शक्ति+ठक्-इक] १. शक्ति का उपासक शाक्त। २. शक्ति (एक प्रकार का भाला) चलानेवाला। भाला बरदार।
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शाक्तीक  : वि० [सं० शक्ति+ईकक्] शाक्तिक।
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शाक्तेय  : पुं० [सं० शक्ति+ढक्-एय] शक्ति का उपासक। शाक्त।
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शाक्य  : पुं० [सं० शक+घञ्+यत्-ञ्य, वा०] १. गौतम बुद्ध के वंश का नाम। २. गौतम बुद्ध।
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शाक्य सिंह  : पुं० [सं० सप्त० त०] गौतमबुद्ध।
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शाक्यमुनि  : पुं० [सं० कर्म० स०] गौतमबुद्ध।
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शाक्र  : पुं० [सं० शक+अण्] शक्र (इंद्र) संबंधी। पुं० ज्येष्ठा नक्षत्र जिसके अधिपति इंद्र माने जाते हैं।
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शाक्री  : स्त्री० [सं० शक-ङीष्] १. दुर्गा। २. इन्द्राणी।
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शाक्वर  : पुं० [सं०√शक्+ष्वरप्-अण्] १. इन्द्र। २. इन्द्र का वज्र। ३. साँड़। ४. प्राचीन आर्यों का एक संस्कार।
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शांख  : पुं० [सं० शंख+अण्] शंख की ध्वनि। वि० शंख-संबंधी। शंख का।
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शाख  : पुं० [सं०√शाख् (व्याप्त होना)+अच्] कृतिका का पुत्र। कार्तिकेय। २. भाँग। ३. करंज। स्त्री० [सं० शाखा से फा०] १. वृक्ष की शाखा। डाली। मुहावरा— (किसी बात में) शाख निकालना=व्यर्थ दोष या भूल निकालना। २. किसी वस्तु संस्था आदि का वह अंश या विभाग जो उसके संबंध के अथवा उसकी तरह के कुछ काम करता हो। शाखा। ३. पशु का सींग। ४. शरीर का दूषित रक्त निकालने का सींग का उपकरण। सिंगी। ५. किसी बड़ी चीज के साथ लगा हुआ छोटा खंड या टुकड़ा। ६. नदी आदि की बड़ी धारा में से निकली हुई छोटी धारा। शाखा।
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शाखदार  : वि० [फा०] १. शाखाओं से युक्त। २. सींगवाला (पशु)।
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शाखसाना  : पुं० [फा०] १. झगड़ा। विवाद। २. तर्क-वितर्क। बहस। ३. किसी काम या बात में निकाला जानेवाला व्यर्थ का दोष। ४. किसी बात का कोई विशिष्ट अंग या पक्ष। ६. ईरान में फकीरों का एक फिरका जो अपने आपको घायल कर लेने की धमकी देकर लोगों से पैसे लेते हैं।
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शाखा  : स्त्री० [सं०] १. वृक्षों आदि के तने से इधर-उधर निकले हुए अंग। टहनी। डाल २. किसी मूल वस्तु से इसी रूप में या इसी प्रकार के निकले हुए अंग। जैसे—नदी की शाखा। मुहावरा— (किसी की) शाखाओं का वर्णन करना= (क) गुण, महत्व आदि का वर्णन करना। उदाहरण—शाखा बरनै रावरी द्विजवर ठौरे ठौर।—दीनदयाल। (ख) शाखोच्चार करना। ३. किसी मूल वस्तु के वे अंग जो दूर रहकर भी उसके अधीन और उसके अनुसार काम करता हो। जैसे—किसी दुकान या बैंक की शाखा। (ब्रांच, उक्त सभी अर्थों के लिए)। ४. वेद की संहिताओं के पाठ और क्रम-भेद। किसी विषय या सिद्धान्त के संबंध में एक ही तरह के विचार या मत रखनेवाले लोगों का वर्ग। वर्ग। संप्रदाय। (स्कूल)। ६. ज्ञान या मत से संबंध रखनेवाला किसी विषय की कई भिन्न-भिन्न विचार-प्रणालियों या सिद्धान्तों में से कोई एक (स्कूल)। ७. शरीर के हाथ और पैर नामक अंग। ८. हाथों या पैरों की उँगलियाँ। ९. दरवाजे की चौखट। १॰. घर का किसी ओर निकला हुआ कोना। ११. विभाग। हिस्सा। १२. किसी चीज का किसी प्रकार का अंग या अवयव।
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शाखा चंक्रमण  : पुं० [सं० ष० त०] १. एक डाल पर से दूसरी डाल पर कूद कर जाना। २. बिना किसी एक काम को पूरा किये दूसरे काम को हाथ में ले लेना। ३. थोड़ा-थोड़ा करके काम करना।
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शाखा-वात  : पुं० [सं० ब० स०] हाथ या पैर में होनेवाला वात रोग।
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शाखाचंद्र-न्याय  : पुं० [सं० मध्य० स०] उसी प्रकार मिथ्या बात को सत्य मानने का एक प्रकार का न्याय जैसे शाखा पर चंद्र का होना मान लिया जाय।
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शाखानगर  : पुं० [कर्म० स०] उप-नगर।
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शाखापित्त  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का रोग जिसमें हाथों-पैरों में जलन और सूजन होती है।
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शाखापुर  : पुं० [सं०] उप-नगर।
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शाखामृग  : पुं० [सं० ष० त०] १. बानर। बंदर। २. गिलहरी।
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शांखायन  : पुं० [सं० शख+फिञ्-आयन] एक गहना और श्रौत सूत्रकार ऋषि जिनका कौशीतकी ब्राह्मण ग्रंथ है।
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शाखायित  : वि० [सं० शाखा+क्यङक्त] शाखाओं से युक्त।
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शाखारंड  : पुं० [सं०] ऐसा ब्राह्मण जो अपनी वैदिक शाखा को छोड़कर किसी दूसरी वैदिक शाखा का अध्ययन करें।
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शाखालंबी  : वि० [सं०] वृक्ष की शाखा में लटकनेवाला। पुं० बंदरों की तरह का एक जंतु जो प्रायः वृक्षों की शाखाओं में लटका रहता है, और अधिक चल-फिर नहीं सकता।
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शाखाशिफा  : स्त्री० [सं० ष० त० स०] पेड़ की वह शाखा जिसने जड़ का रूप धारण कर लिया हो।
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शांखिक  : वि० [सं० शंख+ठञ्-इक] [स्त्री० शांखिकी] १. शंख संबंधी। २. शंख का बना हुआ। पुं० १. वह जो शंख बजाता हो। २. वह जो शंख बनाता और बेचता हो।
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शाखी (खिन्)  : वि० [सं० शाखा+इनि, दीर्, नलोप] १. (वृक्ष) जिसकी अनेक शाखाएँ हों। २. (संस्था) जिसके अधीनस्थ कार्यालय अनेक स्थानों पर हों। ३. किसी साखा से संबंधित। पुं० १. पेड़। वृक्ष। २. वेद। ३. वेद की किसी शाखा का अनुयायी। ४. पीलू वृक्ष। ५. तुर्किस्तान का निवासी।
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शाखीय  : वि० [सं० शाखा+छ-ईय] १. शाखा संबंधी। शाखा का। २. शाखा पर का।
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शाखोच्चार  : पुं० [सं० ष० त० स०] १. विवाह के समय वर और वधू की ऊपर की पीढ़ियों का संबंधित पुरोहित द्वारा होनेवाला कथन। २. किसी के पूर्वजों के नाम ले-लेकर उन पर कलंक लगाना या उनके दोष बताना (व्यंग)।
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शाखोट  : पुं० [सं० ब० स०] सिहोर (पेड़)।
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शांख्य  : वि० [सं० शंख-इञ्] १. शंख-संबंधी। २. शंख का बना हुआ।
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शाख्य  : वि० [सं० शाखा+यत्]=शाखीय।
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शागिर्द  : पुं० [फा०] [भाव० शागिर्दगी] १. चेला। शिष्य। २. संबंध के विचार से किसी के द्वारा सिखाया-पढ़ाया हुआ व्यक्ति।
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शागिर्द-पेशा  : पुं० [फा० शागिर्द-पेशा] १. वह जो किसी के अधीन रहकर कोई काम सीखता हो। २. कर्मचारी। अहलकार। ३. खिदमतगार। ४. मकान के पास ही नौकर-चाकर के रहने के लिए बनाई हुई कोठरी।
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शागिर्दी  : स्त्री० [फा०] १. शागिर्द होने की अवस्था या भाव। शिष्यता। २. टहल या सेवा जो शागिर्द का कर्त्तव्य है।
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शाचिव  : पुं० [सं०] वि० १. प्रबल। २. शक्तिशाली। ३. प्रसिद्ध। ख्यात। ४. ऐसा जौ जिसका छिलका या भूसी कूटकर निकाल दी गई हो। २. जौ का दलिया।
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शाज  : वि० [अ०] १. दुर्लभ। २. अदभुत। अनोखा। पद-शाजो नादिर=कभी-कभी यदा-कदा।
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शाट  : पुं० [सं०√शट् (डोरा)+अण्] १. कपड़े का टुक़ड़ा। २. कमर में लपेटकर पहना जानेवाला कपड़ा। जैसे—धोती, तहमद आदि। ३. एक प्रकार की कुरती या फतही। ४. कोई ढीला-ढाला पहनावा। जैसे—चोगा। पुं० [अं] खेल में गेंद पर किया जानेवाला जोर का आघात।
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शाटक  : पुं० [सं०√शाट् (डोरा)+ण्वुल-अक] वस्त्र। कपड़ा।
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शाटिका  : स्त्री० [सं० शाटक+टाप्, इत्व] १. साड़ी। धोती। २. स्त्रियों की पहनने की धोती या साड़ी। ३. कचूर।
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शाटी  : स्त्री० [सं० शाट-ङीष्] १. साड़ी। धोती।
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शाठ्य  : पुं० [सं० शठ+ष्यञ्] =शठता।
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शांडिक  : वि० [सं० शंख-इञ्] साँड़ा नामक जंतु।
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शांडिल्य  : पुं० [सं० शंड+ठक्-यञ्] १. एक गोत्र प्रवर्तक ऋषि जो स्मृतिकार भी कहे गये हैं। २. उक्त मुनि के कुल या गोत्र में उत्पन्न व्यक्ति। ३. बेल वृक्ष या उसका फल। ४. अग्नि।
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शाण  : पुं० [सं० शण+अण्] १. हथियारों की धार तेज करने का पत्थर या और कोई उपकरण। २. कसौटी नामक काला पत्थर। ३. चार माशे की एक पुरानी तौल। वि० १. सन के पौधे से संबंध रखनेवाला। २. सन के रेशों से बना हुआ। पुं० सन के रेशे का बना हुआ कपड़ा। भँगरा।
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शाणवास  : पुं० [सं० ब० स०] १. वह जो सन का बना हुआ वस्त्र पहनता हो। २. जैनों का एक अर्हत्।
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शाणाजीव  : पुं० [सं० शाण-आ√जीव्+अच्] सान लगानेवाला कारीगर।
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शाणिता  : भू० कृ० [सं० शाण+इतच्-टाप्] १. (शस्त्र) जिसे सान पर चढ़ाकर चोखा या तेज किया गया हो। २. कसौटी पर कसा हुआ।
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शाणी  : स्त्री० [सं० शाण+ङीष्] १. सन के रेशों से बना हुआ कपड़ा। भँगरा। २. फटा पुराना कपड़ा। फटी पोशाक। ३. वह छोटा कपड़ा जो यज्ञोपवीत के समय ब्रह्मचारी को पहनने के लिए दिया जाता है। ४. धार तेज करने की सान। ५. कसौटी नामक पत्थर। ६. छोटा खेमा। रावटी। ७. आरा। ८. चार माशे की तौल। ९. संकेत।
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शांत  : वि० [सं०√शम् (शांत होना)+क्त, निपा०, दीर्घ] १. (उत्पात या उपद्रव) जिसका शमन हो चुका हो या किया जा चुका हो। जो दबाया गया हो। जिसकी उग्रता या प्रचंडता न रह गई हो या नष्ट कर दी गई हो। जैसे—उपद्रव क्रोध या विद्रोह शांत होना। २. (क्रिया या व्यापार) जिसका पूर्णतः अन्त या समाप्ति हो चुकी हो। जैसे—शीत शांत होना। ३. जिसमें कोई आवेग, चंचलता वासना या विकार न रह गया हो। जैसे—वह बहुत शातं भाव से जीवन बिताता है। ४. जिसने इंद्रियों और मन को वश में कर लिया हो जितेंद्रिय। ५. उत्साह, उमंग, कर्मठता आदि से रहित। ६. चुप। मौन। ७. थका या हारा हुआ। श्रांत। ८. जिसकी उष्णता या ताप नष्ट हो चुका हो। जैसे—अग्नि या दीपक शान्त होना। ९. जिसकी घबराहट या चिंता दूर हो चुकी हो। पुं० १. साहित्य में नौ रसों में से अंतिम रस जो सब रसों में प्रधान या सर्वोपरि माना गया है और जिसका स्थायी भाव निर्वेद अर्थात् काम आदि मनोविकारों का शमन माना गया है। (भक्ति-काल में इस रस को विशेष महत्त्व प्राप्त हुआ था)।
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शात  : भू० कृ० [सं०√शो (पतला करना)+क्त] १. सान पर चढ़ाकर तेज किया हुआ। २. पतला। बारीक। ३. दुर्बल। कमजोर। पुं० १. धतूरा। २. सुख। ३. आनन्द।
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शात-कुंभ  : पुं० [सं० शतकुभ+अण्] १. कचनार का वृक्ष। २. धतूरा। ३. कनेर। ४. सोना। स्वर्ण।
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शात-पत्रक  : पुं० [सं० शतपत्र=अण्-कन्] चंद्रिका। चाँदनी। ज्योत्स्ना।
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शांतता  : स्त्री० [सं० शांत+तल्-टाप्] शांति।
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शातन  : पुं० [सं०√शो (पतला करना)+णिच्, तङ-ल्युट-अन] [वि० शातनीय, भू० कृ० शातित] १. सान पर चढ़ाकर धार तेज करना। चोखा करना। २. पेड़ आदि को काटना या कटवाना। ३. नष्ट करना। ४. छीलना। तराशना। ५. लकड़ी रँदना।
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शांतनव  : पुं० [सं० शन्तनु+अण्] [स्त्री० शांतनवी] राजा शांतनु के पुत्र भीष्म।
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शांतनु  : पुं० [सं० शांतनु+डु] १. द्वापर युग के २१ वें चन्द्रवंशी राजा। २. ककड़ी।
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शांतंपापं  : अव्य, [सं०] एक पद जिसका अर्थ है पाप शांत हो और जिसका प्रयोग किसी बड़े के सामने उसके कोप आदि से बचने की कामना से किया जाता था।
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शातला  : स्त्री०=सातला।
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शांतस्वरूपी  : पुं० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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शांता  : स्त्री० [सं० शांत-टाप्] १. श्रृंगी ऋषि की पत्नी का नाम जिसके जनक दशरथ थे और पालक-पोषक अंगराज लोमपाद थे। २. शमी-वृक्ष। ३. आँवला। ४. रेणुका नामक गन्ध द्रव्य। ५. दूब। ६. संगीत में, एक श्रुति।
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शांति  : स्त्री० [सं०√शम् (शान्त होना)+क्तिन्] १. शांत होने की अवस्था जिसमें उद्वेग, क्षोभ, चिंता, दुःख आदि का पूर्णतः अभाव होता है। चित्त का ठिकाने और स्वस्थ रहना। २. दिल का आराम, इतमीनान और चैन। ३. जन-समूह या समाज की वह अवस्था जिसमें उत्पात, उपद्रव, मार-पीट, लड़ाई-झगड़ा विद्वेष आदि का अभाव हो और फलतः लोग निश्चिंत भाव से सुखपूर्वक जीवन बिताते हों। ४. राजनीतिक क्षेत्र में वह स्थिति जिसमें राज्य,राष्ट्र आपस में लड़ते-झगड़ते या मार-पीट न करते हों। ५. वातावरण की वह स्थिति जिसमें नैसर्गिक तत्त्वों में कोई उग्रता या प्रचंडता न रहती हो। ६. ऐसी स्थिति जिसमें किसी प्रकार की अप्रिय या कटु ध्वनि या शब्द न होता हो। नीरवता। सन्नाटा। स्तब्धता। ७. ऐसी शारीरिक स्थिति जिसमें पीड़ा, रोग आदि का दमन या शमन हो चुका हो। (पीस, उक्त सभी अर्थों में) ८. जीवन का शारीरिक व्यापारों का अंत या समाप्ति। मृत्यु। मौत। ९. गंभीरता, धीरता आदि की सौम्य स्थिति। १॰. धार्मिक दृष्टि से तृष्णा, राग, विराग आदि से मुक्त या रहित होने की अवस्था। ११. कर्मकांड में वह धार्मिक कृत्य जो अनिष्ट या अशुभ बातों का निवारण करने के लिए किया जाता है। जैसे—गृह-शांति, मूलशांति आदि। १२. दुर्गा का एक नाम।
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शांति-वादी  : वि० [सं०] शांतिवाद संबंधी। शांतिवाद का। पुं० वह जो शांतिवाद के सिद्धान्तों का अनुयायी और समर्थक हो। (पैसिफ़िस्ट)
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शांतिक  : वि० [सं० शांति+ठक्] १. शांति-संबंधी। शांति का। २. शांति के परिणाम स्वरूप होनेवाला। पुं० कर्मकाण्ड का शांति नामक कर्म।
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शांतिकर्म  : पुं० [सं०√मध्य० स०] वह पूजा पाठ जो अनिष्ट, बाधा आदि की शांति के निमित्त किया जाता है।
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शांतिकलश  : पुं० [सं० मध्यम० स०] शुभ अवसरों पर शांति के निमित्त स्थापित कलश।
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शांतिगृह  : पुं० [सं० ष० त०] वह स्थान जहाँ पर यज्ञ की समाप्ति के बाद स्नान करने का विधान होता था।
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शांतिद  : वि० [सं० शांति√दा+क] [स्त्री० शांतिदा] शांति देनेवाला। पुं० विष्णु।
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शांतिदाता (तृ)  : वि० [सं० ष० त०] [स्त्री० शांतिदात्री] शांति देनेवाला।
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शांतिदायक  : वि० [सं० शांति√दा+ण्वुल्-अक,-युक्] [स्त्री० शांतिदायिका] शांति देनेवाला।
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शांतिदायी (यिन्)  : वि० [सं० शांति√दा+णिनि-युक्] [स्त्री० शांति-दायिनी] शांति देनेवाला।
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शांतिनाथ  : पुं० [सं० ब० स०] जैनों के एक तीर्थकार या अर्हत् का नाम।
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शांतिपर्व  : पुं० [सं०√मध्य० स०] महाभारत का बारहवाँ और सबसे बड़ा पर्व जिसमें युद्ध के उपरांत युधिष्ठिर की चित्तशांति के लिए कही हुई बहुत सी कथाएँ, उपदेश या ज्ञान-चर्चाएँ हैं।
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शांतिपाठ  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. किसी मांगलिक कार्य के आरंभ में, विघ्न-बाधा दूर करने के लिए किया जानेवाला धार्मिक पाठ या कृत्य। २. बराबर यह कहते रहना कि शांति रहे शांति रहे।
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शांतिपात्र  : पुं० [सं० मध्यम० स०] वह पात्र जिसमें ग्रहों, पापों आदि की शांति के लिए जल रखा जाय।
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शांतिभंग  : पुं० [सं० ष० त०] १. शांत स्थिति में होनेवाली गड़बड़ी या बाधा। २. ऐसा अनुचित काम या उपद्रव जिससे जन-साधारण के सुख और शांतिपूर्वक रहने में बाधा होती हो (ब्रीच ऑफ पीस)।
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शातिर  : पुं० [अ०] १. शतरंज का अच्छा खिलाड़ी। २. बहुत बड़ा चालाक और चालबाज। परम धूर्त। ३. दूत।
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शांतिवाचन  : पुं० [सं० मध्यम० स०] शांतिपाठ।
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शांतिवाद  : पुं० [सं० शांति√वद्+घञ्] [वि० शांतिवादी] आधुनिक राजनीति में वह वाद या सिद्धान्त जिसमें सब प्रकार की सैनिक शक्तियों के प्रयोगों और युद्धों का विरोध करते हुए यह कहा जाता है कि सब राष्ट्रों को शांतिपूर्वक रहना और आपसी झगड़ों को शांति पूर्ण उपायों से निपटाना चाहिए। (पैसिफिज्म)
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शांतिसंधि  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] युद्ध के उपरांत युद्ध-रत राष्ट्रों में होनेवाली वह संधि जिसके द्वारा शांति स्थापित होती और परस्पर मित्रता का व्यवहार आरम्भ होता है। (पीस ट्रीटी)
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शातोदर  : वि० [सं० ब० स०] [स्त्री० शातोदरी] १. पतली कमरवाला। क्षीण-कटि। २. दुबला-पतला।
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शात्रव  : पुं० [सं० शत्रु+अण्] १. शत्रुत्व। शत्रुता। २. शत्रु। दुश्मन। ३. शत्रुओं का समूह। वि० १. शत्रु-संबंधी। २. दुश्मन का। ३. शत्रुतापूर्ण।
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शाद  : पुं० [सं०√शो (पतला करना)+द] १. गिरना या पड़ना। पतन। २. घास। ३. कीचड़।
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शाद-मान  : वि० [फा०] [भाव० शादमानी] प्रसन्न। खुश।
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शादाब  : वि० [फा०] [भाव० शादाबी] १. सिंचित। २. हराभरा। सरसब्ज।
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शादियाना  : पुं० [फा० शादियानः] १. खुशी या आनंद-मंगल के समय बजनेवाले बाजे। २. आन्नद-मंगल के समय गाया जानेवाला गीत। ३. वह धन जो किसान जमींदार को ब्याह के अवसर पर देते हैं। ४. बधावा। बधाई।
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शादी  : स्त्री० [फा०] १. खुशी। प्रसन्नता। आनन्द। २. आनन्द विशेषतः ब्याह के अवसर पर मनाया जानेवाला उत्सव। ३. विवाह ब्याह। क्रि० प्र०—करना।—रचना।—होना।
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शादी-गमी  : स्त्री० [सं० फा०+अ०] १. विवाह तथा मृत्यु। २. बोल-चाल में गृहस्थी में लगे रहनेवाले जन्म, मृत्यु विवाह आदि सुख-दुःख।
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शाद्वल  : वि० [सं० शाद्+डव्लच्] हरित तृम या दूब से युक्त। हरी घास से ढका हुआ। हरा-भरा। पुं० १. हरी घास। २. मरु द्वीप (दे०) ३. साँड़। ४. बैल।
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शान  : पुं० [सं० शान (तेज करना)+अच्] १. कसौटी। २. सान नामक उपकरण जिससे चाकू, छुरी आदि की धार तेज करते हैं। स्त्री० [अ०] १. तड़क-भड़कवाली सजावट। ठाट-बाट। जैसे—कल बड़ी शान से सवारी निकली थी। पद—शान—शौकत (देखें)। २. गर्व, महत्व, वैभव आदि सूचित करनेवाली चर्चा या स्थिति। जैसे—वह खूब शान से बातें करता (या रहता) है। ३. विशालता। जैसे— (क) उसके मकान की शान देखने योग्य है। (ख) वह सब खुदा की शान है। ४. मान-मर्यादा। प्रतिष्ठा। मान्यता। पद-किसी की शान में=किसी बड़े के संबंध में। किसी के प्रति या किसी के विषय में। जैसे—उसकी शान में, ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए। मुहावरा—शान गवाँना=शान में बट्टा लगाना। शान मारी जाना=शान पर ऐसा आघात लगना कि वह नष्ट हो जाय। शान में बट्टा लगाना=शान या मान-मर्यादा में कमी या त्रुटि होना।
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शान-शौकत  : स्त्री० [अ०] तड़क-भड़क। वैभव-सूचक। ठाठबाट या सजावट।
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शानदार  : वि० [अ० शान+फा० दार] [भाव० शानदारी] १. ऐश्वर्य वाला। २. तड़क-भड़कवाला। ३. उच्च कोटि का तथा प्रशंसनीय। जैसे—शानदार जीत।
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शानपाद  : पुं० [सं० ष० त० स०] १. चन्दन रगड़ने का पत्थर। २. पारियात्र पर्वत।
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शाना  : पुं० [फा० शान] १. कंघा। कंघी। २. कन्धा। मोढ़ा। मुहावरा-शाने से सान छिलना=बहुत अधिक भीड़ और रेल-पेल होना।
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शाप  : पुं० [सं०√शप् (निंदा करना)+घञ्] १. अनिष्ट कामना के उद्देश्य से किया जानेवाला कथन। २. उक्त की सूचक बात या वाक्य। विशेष—प्राचीन भारत में प्रायः कुपित या पीड़ित होने पर ऋषि, मुनि, ब्राह्मण आदि हाथ में जल लेकर किसी दुष्ट या पीड़क के सम्बन्ध में कोई अशुभ कामना प्रकट करते थे। २. धिक्कार। भर्त्सना। ३. ऐसी शपथ जिसके न पालन करने पर कोई अनिष्ट परिणाम कहा जाय। बुरी कसम।
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शाप-ज्वर  : पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का ज्वर जो माता-पिता, गुरु आदि बड़ों के शाप के कारण होनेवाला कहा गया है।
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शापग्रस्त  : भू० कृ० [सं० तृ० त०] जिसे किसी ने शाप दिया हो। शापित।
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शापांबु  : पुं० [सं० मध्यम० स०] वह जल जो किसी को शाप देने के समय हाथ में लिया जाता था।
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शापास्त्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] शाप रूपी अस्त्र।
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शापित  : भू० कृ० [सं० शाप+इतच्] शाप से पीड़ित।
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शापोत्सर्ग  : पुं० [सं० ष० त० स०] किसी को शाप देने की क्रिया।
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शापोद्वार  : पुं० [सं० ष० त०] शाप या उसके प्रभाव से होनेवाला छुटकारा। शाप-मुक्ति।
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शाफरिक  : पुं० [सं० शबर+ठक्—इक] मछुआ। धीवर।
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शांब  : पुं० [सं०]=सांब।
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शांबर  : वि० [सं० शंबर+अण्] १. शंबर दैत्य संबंधी। २. साँभर मृग संबंधी। पुं० लोध का पेड़।
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शाबर  : वि० [सं० शबर+अञ्] दुष्ट। कपटी। पु० १. खराबी। बुराई। २. हानि। ३. लोध का पेड़। ४. ताँबा। ५. अँधेरा। अन्धकार। ६. एक प्रकार का चंदन।
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शाबर-तंत्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] एक तन्त्र ग्रन्थ जो शिव का बनाया हुआ माना जाता है।
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शाबर-भाष्य  : पुं० [सं० तृ० त० स०] मीमांसा सूत्र पर प्रसिद्ध भाष्य या व्याख्या।
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शांबर-शिल्प  : पुं० [सं० कर्म० स०] इंद्रजाल। जादू।
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शांबरिक  : पुं० [सं० शम्बर+ठक्-इक] जादूगर। मायावी।
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शांबरी  : स्त्री० [सं० शांबर-ङीष्] १. माया। इन्द्रजाल। २. जादूगरनी। पुं० १. एक प्रकार का चंदन। २. लोध। ३. मूसाकानी।
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शाबरी  : स्त्री० [सं० शाबर-ङीष्] १. शबरों की भाषा। २. एक प्रकार की प्राकृत भाषा।
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शाबल्य  : पुं० [सं० शबल+ष्यञ्] शबलता।
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शांबविक  : पुं० [सं० शंबु+ठञ्-इक] शंख का व्यवसाय करनेवाला व्यक्ति।
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शाबाश  : अव्य० [फा० शाद बाश=प्रसन्न रहो] एक प्रशंसा सूचक शब्द। खुश रहो। वाह वाह। धन्य हो। क्या कहना।
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शाबाशी  : स्त्री० [फा०] किसी कार्य के करने पर ‘शाबाश’ कहना। वाहवाही। साधुवाद। क्रि० प्र०—देना।—पाना।—मिलना।
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शांबुक  : पुं० [सं० शांबु+कन्] घोंघा।
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शाब्द  : वि० [शब्द+अण्] [स्त्री० शाब्दी] १. शब्द संबंधी। शब्द या शब्दों का। २. वाक्य के शब्दों में रहने या होनेवाला। ३. साहित्य में, शब्दों के कारण स्पष्ट रूप से कहा हुआ। कथित ‘अर्थ’ से भिन्न और उसका उल्टा। जैसे—शाब्दी विभावना या व्यंजना। ४. मौखिक। ५. शब्द करता हुआ। पुं० १. शब्द-शास्त्र का पंडित। २. वैयाकरण।
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शाब्दबोध  : पुं० [सं० कर्म० स०] शब्दों के प्रयोग द्वारा होनेवाले अर्थ का ज्ञान। वाक्य के तात्पर्य का ज्ञान।
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शाब्दिक  : वि० [सं० शब्द+ठक्—इक] १. शब्द संबंधी। शब्द का। २. शब्द करता हुआ। ३. शब्दों के रूप में होनेवाला। मौखिक। जैसे—शाब्दिक सहानुभूति। पुं० १. शब्दशास्त्र का ज्ञाता। २. वैयाकरण।
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शाब्दी  : वि० [सं०] १. शब्द संबंधी। २. केवल शब्दों में होनेवाला। जैसे—शाब्दी व्यंजना।
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शाब्दी-व्यंजना  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] व्यंजना शब्द-शक्ति का एक भेद, जिसमें व्यंजित होनेवाला अर्थ किसी विशेष शब्द तक ही सीमित रहता है, उससे आगे नहीं बढ़ता।
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शांभर  : स्त्री० [सं० शंभर+अण्] साँभर झील। पुं० साँभर नामक नमक।
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शांभव  : वि० [वि० शंभु+अण्] १. शंभु संबंधी। शिव का। २. शंभु से उत्पन्न। ३. शिव का उपासक। पुं० १. देवदार। २. कपूर। ३. गुग्गुल। ४. एक प्रकार का विष।
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शांभवी  : स्त्री० [सं० शांभव-ङीष्] १. दुर्गा। २. नीली दूब।
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शाम  : वि० [सं० शम+अण्] शम अर्थात् शांति संबंधी। पुं० [सं० शामन्] सामगान। वि०, पुं०=श्याम। वि० [फा०] साय। साँझ। मुहावरा—शाम फूलना=संध्या समय पश्चिम की ललाई का प्रकट होना। स्त्री० [देश०] लोहे, पीतल आदि धातु का बना हुआ वह छल्ला जो हाथ में ली जानेवाली छड़ियों, डंडों आदि के निचले भाग में अथवा औजारों के दस्ते में लकड़ी को घिसने या छीजने से बचाने के लिए लगाया जाता है। क्रि० प्र०—जड़ना।—लगाना। पुं० एक प्रसिद्ध प्राचीन देश जो अरब के उत्तर में है।
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शामक  : वि० [सं०√शम्+ण्वुल्-अक] १. शमन करनेवाला। २. (दवा) जो कष्ट, घबराहट या पीड़ा कम करें। (सेडीटिव)।
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शामक  : स्त्री० [अ०] १. बदकिस्मती। दुर्भाग्य। २. दुर्दशा करनेवाली विपत्ति। क्रि० प्र०—आना।—घेरना।—में पड़ना या फँसना। पद-शामत का मारा=जिसे शामत ने घेरा हो। मुहावरा-शामत सवार होना या सिर पर खेलना=शामत आना। दुर्दशा का समय आना।
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शामकरण  : पुं०=श्यामकर्ण (घोड़ा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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शामत-ज़दा  : वि० [अ० शामत+फा० जदा] १. जिस पर शामत या विपत्ति आई हो। विपदग्रस्त। २. कमबख्त। बदनसीब। अभागा।
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शामती  : वि० [अ० शामत+हिं० ई (प्रत्यय)] जिसकी शामत आई हो। जिसकी दुर्दशा होने को हो।
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शामन  : पुं० [सं० शमन+अण्] १. शमन। २. शांति। ३. मार डालना। हत्या।
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शामनी  : स्त्री० [सं० शामन-ङीष्] १. दक्षिण दिशा जिसके अधिपति यम माने गए हैं। २. शालि। ३. स्तब्धता। ४. अन्त। समाप्ति। ५. वध। हत्या।
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शामा  : पुं० [?] १. एक प्रकार का पौधा जिसकी पत्तियाँ और जड़ कोढ़ के रोगी के लिए लाभदायक मानी जाती है। वि० स्त्री० श्यामा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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शामित्र  : स्त्री० [सं० शामितृ-अण्] १. यज्ञ में मांस पकाने के लिए जलाई हुई अग्नि। २. वह स्थान जहाँ उक्त आग जलाई जाती है।
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शामियाना  : पुं० [फा० शामियानः] एक प्रकार का तंबू जो बाँसों पर रस्सियों की सहायता से टाँगा जाता है। क्रि० प्र०-खड़ा करना।—गाड़ना। तानना।—लगाना।
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शामिल  : वि० [फा०] १. मिला हुआ। सम्मिलित। पद-शामिल हाल। २. इकट्ठा।
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शामिल-हाल  : वि० [फा० शामिल+अ० हाल] १. जो दुःख, सुख आदि अवस्थाओं में साथ रहे। साथी। शरीफ। २. (परिवार के लोग)। जो एक साथ मिलकर रहते हों।
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शामिलात  : स्त्री० [अ०] संयुक्त संपत्ति। साझी जायदाद।
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शामिलाती  : वि० [अ० शामिलात] किसी के साथ मिला हुआ। सम्मिलित।
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शामी  : वि० [श्याम (देश)] १. शाम देश सम्बन्धी। २. शाम देश में होनेवाला। जैसे—सामी कबाब। पुं० [देश] एक प्रकार का लोहे का छल्ला जो छड़ी या लकड़ी की मूठ आदि पर चढ़ाया जाता है। क्रि० प्र०—जड़ना।—लगाना।
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शामी-कबाब  : पुं० [हि० शामी+कबाब] टिकियाँ के रूप में तवे पर भूना हुआ मांस जिसमें मसाले आदि मिलाये गये होते हैं।
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शामूल  : पुं० [सं० शम+ऊलच्—अण्] ऊनी कपड़ा।
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शाम्य  : पुं० [सं० शाम+यत्] १. शम का धर्म या भाव। शमता। २. भाई-चारा। बन्धुत्व। २. शालि।
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शायक  : पुं० [सं०√शो+ण्वुल्—अक—युक्] १. बाण। तीर। शर। २. तलवार। वि० [अ० शाइक] १. शौक करने या रखनेवाला। शौकीन। २. अभिलाषी। इच्छुक।
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शायद  : अव्य० [सं० स्यात् से फा०] सन्देह और संभावना सूचक अव्यय। कदाचित्। संभव है कि। जैसे—शायद वह आज आएगा।
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शायर  : पुं० [अ०] [स्त्री० शायरा] १. वह जो उर्दू फारसी आदि के शेर आदि बनाता हो। २. काव्य-रचना करनेवाला।
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शायराना  : वि० [अ० शायर+फा० आना (प्रत्यय)] १. शायर संबंधी। २. शायरों जैसा। जैसे—शायराना तबीयत। ३. कवि सुलभ।
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शायरी  : स्त्री० [अ०] १. कविता करने का भाव या कार्य। २. कविता। काव्य।
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शायाँ  : वि० [फा०] अनुरूप। उपयुक्त।
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शाया  : वि० [फा०] १. प्रकट। जाहिर। २. छापकर प्रकट किया हुआ। प्रकाशित।
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शायिक  : वि० [सं० शय्या-ठक्+इक्] १. शय्या बनानेवाला। २. सेज सजानेवाला।
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शायित  : भू० कृ० [सं० शी (शयन करना)+णिच्-क्त] [स्त्री० शायिता] १. सुलाया या लेटाया हुआ। २. गिराया हुआ।
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शायिता  : स्त्री० [सं० शायिन्+तल्-टाप्] शयन। सोना।
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शायी  : वि० [सं०√शी (शयन करना)+णिनि] [स्त्री० शायिनी] शयन करनेवाला। सोनेवाला। जैसे—शेषशायी भगवान्।
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शार  : वि० [सं०√शृ+घञ्] १. चितकबरा। कई रंगों का। २. पीला। ३. नीले-पीले और हरे रंग का। पुं० १. एक प्रकार का पासा। २. वायु। हवा। ३. हिंसा। स्त्री० कुश। कुशा।
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शारअ  : पुं० [अ० शारिअ] १. बड़ी सड़क। राजमार्ग। २. लोगों को धर्म का मार्ग बतलानेवाला। धर्मशास्त्री।
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शारक  : स्त्री० [फा० मिलाओ, सं० शारिका] मैना।
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शारंग  : पुं०=सारंग।
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शारंग-धनुष  : पुं० [सं० ब० स०] १. सारंग नामक धनुष से सुशोभित अर्थात् विष्णु। २. श्रीकृष्ण।
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शारंग-पानी  : पुं०=शारंगपाणि।
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शारंग-भृत्  : पुं० [सं० शारंग√भृ (रखना)+क्विप्-तुक्] १. सारंग धनुष को धारण करने वाले विष्णु। २. श्रीकृष्ण।
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शारंगक  : पुं० [सं० शारंग+कन्] एक प्रकार का पक्षी।
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शारंगपाणि  : पुं० [सं० ब० स०] १. हाथ में सारंग नामक धनुष धारण करनेवाले विष्णु। २. श्रीकृष्ण। ३. रामचन्द्र।
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शारंगवत  : पुं० [सं० शारंग+मतुप-म=व] कुरु वर्ष नामक देश।
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शारंगष्टा  : स्त्री० [सं० शारंग, स्था (ठहरना)+क-टाप्] १. काक जंघा। २. मकोय। ३. गुंजा। घुँघची।
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शारंगी  : स्त्री० [सं० शारंग-ङीष्] सारंगी नामक बाजा।
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शारणिक  : वि० [सं० शरण+ठक्-इक] १. शरण देनेवाला। २. शरण चाहनेवाला। शरणार्थी।
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शारद  : वि० [सं० शरद्+अण्] १. शरद संबंधी। २. शरद ऋतु में होनेवाला। ३. नवीन। ४. वार्षिक। ५. शालीन। पुं० १. वर्ष। साल। २. बादल। मेघ। ३. सफेद कमल। ४. मौलसिरी। ५. काँस नामक तृण। ६. हरी मूँग। ७. एक प्रकार का रोग।
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शारदा  : स्त्री० [सं० शारद-टाप्] १. सरस्वती। २. भारत की एक प्राचीन लिपि जो दसवें शताब्दी के लगभग पंजाब और कश्मीर में प्रचलित हुई थी। आज-कल की कश्मीरी, गुरुमुखी और टाकरी लिपियाँ इसी से निकली हैं। ३. एक प्रकार की वीणा। ४. दुर्गा। ५. ब्राह्मी। ६. अनंतमूल।
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शारदाभरण  : पुं० [सं० ब० स०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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शारदिक  : पुं० [सं० शरद्+ठञ्-इक] १. शरद् ऋतु में होनेवाला ज्वर। २. शरद् की धूप। ३. श्राद्ध। ४. बीमारी। रोग।
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शारदी  : स्त्री० [सं० शारद-ङीष्] १. जलपीपल। २. छतिवन। सप्तपर्णी। ३. आश्विन मास की पूर्णिमा। पुं० [सं० शारदिन्] १. अपराजिता। २. सफेद कमल। ३. अन्न, फल आदि। वि० शरद काल का।
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शारदीय  : वि० [सं० शरद+छण्-ईय] [स्त्री० शारदीय] शरद्काल का। शरद ऋतु संबंधी। जैसे—शरदीय नवरात्र।
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शारदीय महापूजा  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] शरद्काल में होनेवाली दुर्गा की पूजा। नवरात्रि की दुर्गापूजा।
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शारद्य  : वि० [सं० शारद्+यत्] शरद् काल का। शरद् ऋतु संबंधी।
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शारि  : पुं० [सं०√शृ (हिंसा करना)+इञ्] १. पासा, शतरंज आदि खेलने की गोटी। मोहरा। चौसर, शतरंज आदि की विसात। कपट। छल। ४. मैना पक्षी। ५. एक प्रकार के गीत।
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शारिका  : स्त्री० [सं० शारि+कन्-टाप्] १. मैना चिड़िया। २. चौसर शतरंज आदि के खेल। ३. सारंगी बजाने की कमानी। वीणा, सारंगी आदि कोई बाजा। ५. दुर्गा।
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शारिका कवच  : पुं० [सं० ष० त०] दुर्गा का एक कवच जो रुद्रयामल तन्त्र में है।
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शारित  : वि० [सं० शारि+इतच्] चित्र-विचित्र। रंग-बिरंगा।
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शारिपट्ट  : पुं० [सं० ष० त० स०] शतरंज, चौसर आदि खेलने की बिसात।
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शारिफल  : पुं० [सं० ष० त० स०]=शारिपट्ट।
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शारिवा  : स्त्री० [सं० शारि√वन् (पृथक् करना)+ड-टाप्]अनंतमूल। सालसा। दुरालभा। २. जवासा। धमासा।
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शारी  : स्त्री० [सं० शारि-ङीष्] १. कुश नामक घास। २. एक प्रकार का पक्षी। २. मूँज। पुं० १. गोटी। मोहरा। २. गेंद।
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शारीर  : वि० [सं० शरीर+अण्] १. शरीर संबंधी। शरीर का। २. शरीर से उत्पन्न। पुं० १. जीवात्मा। २. साँड़। ३. गृह। मल।
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शारीर विज्ञान (शास्त्र)  : पुं० [सं० ब० स०] वह शास्त्र जिसमें जीवों की शारीरिक रचना और उनके बाहरी तथा भीतरी सभी अंगों, अस्थियों, नाड़ियों और उनके कार्यों आदि का विवेचन होता है। (एनाटमी)।
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शारीर शास्त्र  : पुं० [सं०] आधुनिक विज्ञान की वह शाखा जिसमें प्राणियों और वनस्पतियों के अंगों और उपांगों का व्यवच्छेदन करके उनकी क्रियाओं आदि का अध्ययन किया जाता है (एनाटमी)।
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शारीर-विद्या  : स्त्री० [सं० मध्यम० स०]=शरीर विज्ञान।
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शारीरक  : वि० [सं० शरीर+कन्-अण्] १. शरीर से उत्पन्न। २. शरीर संबंधी। ३. शरीर में स्थित। पुं० १. आत्मा। २. आत्मा संबंधी। अन्वेषण।
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शारीरक भाष्य  : पुं० [सं० मध्य०, स०] शंकराचार्य का किया हुआ ब्रह्मसूत्र का भाष्य।
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शारीरक-सूत्र  : पुं० [सं० कर्म० स०] वेदव्यास कृत वेदांत सूत्र।
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शारीरतत्त्व  : पुं० [सं० शरीर-तत्त्व, ष० त० स०+अण्] शरीर विज्ञान।
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शारीरव्रण  : पुं० [सं० ब० स०] वह रोग जो वात, पित्त, कफ और रक्त के विकार से उत्पन्न हो।
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शारीरिक  : वि० [सं० शरीर+ठक्-इक] १. शरीर-संबंधी। २. भौतिक।
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शारीरिकीय  : वि० [सं० शारीरिक+छ-ईय]=शारीरिक।
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शारीरिविधान  : पुं० [सं० ब० स०] १. वह शास्त्र जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि जीव किस प्रकार से उत्पन्न होते और बढ़ते है। २. शारीर विज्ञान।
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शारुक  : वि० [सं०√शृ (हिंसा करना)+उकञ्] हत्या का नाश करनेवाला।
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शार्क  : पुं० [सं० शृ+कन्—अण्] चीनी। शर्करा। स्त्री० [अं०] एक प्रकार की बड़ी हिंसक मछली जो समुद्रों में रहती है।
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शार्कक  : पुं० [सं० शार्क+कन्] १. दूध का फेन। दुग्धफेन। २. चीनी का डला। ३. मांस का टुकड़ा।
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शार्कर  : पुं० [सं० शर्करा+अण्] १. दूध का फेन। २. लोध। ३. कंकरीली या पथरीली जगह। वि० १. जिसमें कंकड़, पत्थर आदि हों। २. शर्करा या चीनी से बना हुआ।
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शार्करक  : पुं० [सं० शार्कर+कन्] १. वह स्थान जो कंकड़ों और पत्थरों से भरा हो। कंकरीली-पथरीली जगह। २. चीनी बनाने का स्थान। खंडसार। वि० कंकड़ पत्थर आदि से भरा हुआ।
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शार्करमय  : पुं० [सं० शार्कर-मयट्] प्राचीन काल की एक प्रकार की शराब जो चीनी और जौ से बनाई जाती थी।
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शार्करी-धान  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्राचीन देश जो उत्तर दिशा में था।
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शार्करीय  : वि० [सं० शर्करा+छण्-ईय] शार्करीक।
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शार्ग  : पुं० [सं० शुंग+अण्] १. धनुष। कमान। २. विष्णु के हाथ में रहनेवाला धनुष। ३. अदरक। आदी। ४. एक प्रकार का साग। ५. धनुर्धारी। वि० १. श्रृंग-सम्बन्धी। श्रृंग का। २. सींग का बना हुआ।
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शार्गंक  : पुं० [सं० शार्ग+कन्] पक्षी। चिड़िया।
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शार्गंधन्वा (न्वन्)  : पुं० [सं० ब० स०] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण। ३. वह जो धनुष चलाता हो। कमनैत।
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शार्गधर  : पु० [सं० ष० त० स०] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण।
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शार्गपाणि  : पुं० [सं० ब० स०] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण। ३. वह जो धनुष चलाता हो। कमनैत।
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शार्गंभृत्  : पुं० [सं० शार्ग्र√भू+क्विप्—तुक्] विष्णु।
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शार्गवैदिक  : पुं० [सं० कर्म० स०] एक प्रकार का स्थावर विष।
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शार्गांयुध  : पुं० [सं० ब० स०] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण। ३. धनुर्धारी। कमनैत।
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शार्गी (ग्ङिन्)  : पुं० [सं० शार्ग्ङ+इनि] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण। ३. धनुर्धर। कमनैत।
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शार्गेष्टा  : स्त्री० [सं० शार्ग√स्था (ठहरना)+क-टाप्] १. काक जंघा। २. घुँघची।
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शार्गेष्ठा  : स्त्री० [सं०] १. महाकरंज। २. लता करंज।
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शार्दुल-कंद  : पुं० [सं० ब० स०] जंगली प्याज।
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शार्दूल  : पुं० [सं०√शृ (हिंसा करना)+उलच्-दुकच्, निपा० सिद्ध] १. चीता। बाघ। २. केसरी। सिंह। ३. राक्षस। ४. शरभ नामक जंतु। ५. एक प्रकार का पक्षी। ६. यजुर्वेद की एक शाखा। ७. चित्रक या चीता नामक वृक्ष। ८. दोहे का एक भेद जिसमें ६ गुरु और ३६ लघु मात्राएं होती हैं। वि० सर्वश्रेष्ठ।
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शार्दूल-ललित  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का वर्ण वृत्त जिसका प्रत्येक पद अठारह अक्षरों का होता है और उनका क्रम इस प्रकार है-म, स, ज, स, त, स।
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शार्दूल-लसित  : पुं० [सं० ब० स०]=शार्दूलललित।
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शार्दूल-वाहन  : पुं० [सं० ब० स०] एक जिन (जैन)।
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शार्दूल-विक्रीडित  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसका प्रत्येक पद १९ अक्षरों का होता है। उनका क्रम इस प्रकार है-म, स, ज, स, त, त, एक गुरु।
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शार्दूलज  : पुं० [सं० शार्दूल√जन् (उत्पन्न करना)+ड] व्याघ्र-नख नामक गंध-द्रव्य। वि० शार्दूल से उत्पन्न।
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शार्यात  : पुं० [सं० शर्यात्य+अण्] १. वैदिक काल के एक प्राचीन राजर्षि। २. एक प्रकार का साग।
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शार्वर  : पुं० [सं० शर्वर+अण्] बहुत अधिक अंधकार।
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शार्वरिक  : वि० [सं० शर्वरी+ठक्-इक] रात्रि संबंधी। रात का।
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शार्वरी  : स्त्री० [सं० शर्वरी+अण्-ङीष्] १. रात। २. लोच। पुं० [सं०शार्वरिन्] बृहस्पति के साठ संवत्सरों में से ३४वाँ संवत्सर।
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शाल  : पुं० [सं०√शल् (प्रशस्त होना)+घञ्] १. साखू (वृक्ष)। २. पेड़। वृक्ष। ३. एक प्राचीन नद। ४. एक प्रकार की मछली। ५. धूना। राल। ६. राजा शालिवाहन का एक नाम। स्त्री० [फा०] ओढ़ने की एक प्रकार की गरम चादर।
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शाल-कल्याणी  : स्त्री० [सं० उपमि० स०] एक प्रकार का साग जो चरक के अनुसार भारी, रूखा, मधुर शीतवीर्य और पुरीष-भेदक होता है।
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शाल-दोज  : पुं० [फा०] वह जो शाल के किनारे पर बेल-बूटे आदि बनाता हो।
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शाल-निर्यास  : पुं० [सं० ष० त० स०] १. राल। घूना। २. शाल या सर्ज नामक वृक्ष।
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शाल-पत्रा  : स्त्री० [सं० ब० स०] शालपर्णी।
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शाल-भंजिका  : स्त्री० [सं० शाला√भंज् (बनाना)+ण्वुल्-अक-टाप्, इत्व] १. कठ-पुतली। २. गुड़िया। पुतली। ३. प्राचीन भारत में राज-दरबार में नाचनेवाली स्त्री। ४. रंडी। वेश्या।
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शाल-युग्म  : पुं० [सं० ष० त० स०] दोनों प्रकार के शाल अर्थात् सर्जवृक्ष और विजय सार।
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शालक  : पुं० [सं० शाल+कन्] १. पटुआ। २. मसखरा। हँसोड़।
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शालंकटांकह  : पुं० [सं०] सुकेशी राक्षस का एक नाम जो वामन पुराण के अनुसार विद्युतकेशी का पुत्र था।
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शालंकायन  : पुं० [सं० शलंक+फक्-आयन] १. विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम। २. शिव का नंदी।
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शालंकायनि  : पुं० [सं० शालंकायन+ङीप्] एक प्राचीन गोत्र प्रवर्तक ऋषि।
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शालंकि  : पुं० [सं० शलंक+इञ्] पाणिनि।
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शालंकी  : स्त्री० [सं० शालंक-ङीष्] १. गुड़िया। २. कठ-पुतली।
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शालग्राम  : पुं० [सं० ब० स०] गोलाकार बटिया के रूप में गंडक नदी में मिलनेवाले पत्थर के टुकड़े जिनकी पूजा की जाती है।
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शालज  : पुं० [सं० शाल√जन् (उत्पन्न करना)+ड] एक प्रकार की मछली। वि० शाल (शाखू) से उत्पन्न या बना हुआ।
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शालपर्णिका  : स्त्री० [सं० ब० स०] १. मुरा नामक गंध द्रव्य। २. एकांगी नामक वनस्पति।
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शालपर्णी  : स्त्री० [सं० ब० स०] सरिवन नामक वृक्ष।
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शालबाफ  : पुं० [फा०] [भाव० शालबाफी] १. शाल या दुशाला बुननेवाला। २. लाल रंग का एक प्रकार का रेशमी कपड़ा।
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शालबाफी  : स्त्री० [फा०] १. दुशाला बुनने का काम। शालबाफ का काम। २. शाल बुनने की मजदूरी।
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शालभ  : पुं० [सं० शलभ+अण्] बिना सोचे-विचारे उसी प्रकार आपत्ति में कूद पड़ना जिस प्रकार पतंगा आग या दीपक पर कूद पड़ता है। वि० शलभ संबंधी। शलभ का।
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शालभंजी  : स्त्री० [सं०]=शाल भंजिका।
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शालमत्स्य  : पुं० [सं० मध्य० स०] शिलिंद नामक मछली।
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शालरस  : पुं० [सं० ष० तस०] राल। धूना।
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शालव  : पुं० [सं० शाल√वल् (जाना आदि)+ड०] लोध्र। लोध।
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शालवानक  : पुं० [सं० ब० स०] १. एक प्राचीन देश। २. उक्त देश का निवासी।
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शालवाहन  : पुं० [सं० ब० स०]=शालिवाहन।
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शालसार  : पुं० [सं० ष० त० स०] १. हींग। हिंगु। २. धूना। राल। ३. शाल या साखू नामक वृक्ष। ४. पेड़। वृक्ष।
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शाला  : स्त्री० [सं०√शो (पतला करना)+कालन्-टाप्] १. घर। गृह। मकान। २. किसी विशिष्ट कार्य के लिए बना हुआ मकान या स्थान। जैसे—गोशाला, नृत्यशाला, पाठशाला। ३. पेड़ की डाल। शाखा। ४. इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा के योग से बननेवाले सोलह प्रकार के वृत्तों में से एक प्रकार का वृत्त।
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शाला-मृग  : पुं० [सं० सप्त० स०] १. गीदड़। श्रृंगाल। २. कुत्ता।
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शाला-वृक  : पुं० [सं० सप्त० त०] १. कुत्ता। २. बन्दर। ३. बिल्ली। ४. हिरन। ५. गीदड़। श्रृंगाल। ६. लोमड़ी।
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शालाक  : पुं० [सं० शाला+कन्] १. झाड-झंखाड़। २. झाड़-झंखाड़ से उत्पन्न होनेवाली आग।
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शालाकी (किन्)  : पुं० [सं० शालाक+इनि] १. शल्य चिकित्सा करनेवाला। जर्राह। २. नापित। हज्जाम। ३. भाला-बरदार।
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शालाक्य  : पुं० [सं० शलाक+ण्य] १. आयुर्वेद की एक शाखा जिसमें कान, आँख, नाक, जीभ, मुँह आदि रोगों की चिकित्सा सम्बन्धी विवरण हैं। २. वह जो आँख, नाक, मुँह आदि के रोगों की चिकित्सा करता हो।
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शालाजिर  : पुं० [सं० ब० स०] मिट्टी की तश्तरी, पुरवा, प्याला आदि बरतन।
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शालातुरीय  : वि० [सं० शालातुर+छ—ईय] शालातुर प्रदेश सम्बन्धी। पुं० १. शालातुर का निवासी। २. पाणिनी।
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शालार  : पुं० [सं० शाला√ऋ (गमनादि)+अण्] १. सीढी। २. पिंजरा। ३. दीवार में लगी हुई खूँटी। ४. हाथी का नख।
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शालि  : पुं० [सं०√शल्+इञ्] १. हेमंत ऋतु में होनेवाला धान। अगहन। २. चावल। विशेषतः जड़हन धान का चावल। ३. बासमती चावल। ४. काला जीरा। ५. गन्ना। ६. गन्ध-विलाव। ७. एक प्रकार का यज्ञ।
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शालि-धान  : पुं० [सं० शालि धान्य] बासमती चावल।
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शालि-वाहन  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रसिद्ध भारतीय सम्राट जिन्होंने शक संवत् चलाया था।
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शालिक  : पुं० [सं० शालि+कन्] १. जुलाहा। २. कारीगरों की बस्ती। ३. एक तरह का कर।
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शालिका  : स्त्री० [सं० शालि√कै (होना)+क—टाप्] १. बिदारी कंद। २. शालपर्णी। ३. घर। मकान। ४. मैना पक्षी।
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शालिनी  : स्त्री० [सं० सालि√नी (ढोना)+ड, ङीष्] १. गृहस्वामिनी। २. ग्यारह अक्षरों का एक वृत्त जिसमें क्रम से १ यगण, २ तगण और अंत में २ गुरु होते हैं। ३. पद्यकंद। भसींड। ४. मेथी।
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शालिपर्णी  : स्त्री० [सं० ब० स०] १. मेदा नामक अष्टवर्गीय ओषधि। २. पिठवन। ३. बन-उरदी। ३. सरिवन।
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शालिहोत्र  : पुं० [सं० शालि√हू (देन-लेन)+ष्ट्रन्] १. घोडा। २. अश्व चिकित्सा। ३. घोड़ों और दूसरे पशुओं आदि की चिकित्सा का शास्त्र। पशु-चिकित्सा। (वेटेरिनरी)।
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शालिहोत्री  : पुं० [सं० शालहोत्र+इनि (प्रत्यय)] १. घोड़ों की चिकित्सा करनेवाला। २. पशु चिकित्सक।
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शाली  : स्त्री० [सं० शाल+अच्—ङीष्] १. काला जीरा। २. शालपर्णी। ३. मेथी। ४. दुरालभा। प्रत्य० [सं० शालिन्] [स्त्री० शालिनी] एक प्रत्यय जो संज्ञा शब्दों के अंत में लगकर युक्त, वाला आदि का अर्थ देता है। जैसे—ऐश्वर्यशाली, भाग्यशाली, शक्तिशाली।
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शालीन  : वि० [सं० शाला+ख-ईन] [भाव० शालीनता] १. लज्जाशील। हयावाला। २. विनीत। नम्र। ३. अच्छे आचरणवाला। ४. सादृश्य। समान। ५. शाला-संबंधी।
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शालीनता  : स्त्री० [सं० शालीन+तल्—टाप्] शालीन होने की अवस्था, धर्म या भाव।
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शालीनत्व  : पुं० [सं० शालीन+त्व] शालीनता।
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शालीय  : वि० [सं० शाला+छ-ईय] शाला अर्थात् घर सम्बन्धी।
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शालु  : पुं० [सं० शाल+उण्] १. भसींड। कमलकंद। २. चोरक नामक गन्ध द्रव्य। ३. कसैली चीज। ४. मेढ़क। ५. एक प्रकार का फल।
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शालुक  : पुं० [सं० शल+उकञ्] १. भसींड़। पद्यकंद। २. जायफल।
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शालूक  : पुं० [सं० शाल+ऊकञ्] १. जायफल। जातीफल। २. मेंढ़क। ३. भसींड़। ४. एक प्रकार का रोग।
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शालेय  : पुं० [सं० शालि+ठक्—एय] १. शालि अर्थात् धान का खेत। २. सौंफ। ३. मूली। वि० १. शाल सम्बन्धी। शाल का। २. शाला अर्थात् घर सम्बन्धी।
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शाल्मलि  : पुं० [सं० शाल+मलिच्—ङीष् वा] १. सेमल का पेड़। २. पृथ्वी के सात खण्डों में से एक जिसकी गिनती नरकों में होती है। ३. पुराणानुसार एक द्वीप।
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शाल्मली  : स्त्री० [सं० शाल्मल—ङीष्] १. शाल्मलि। सेमर। २. पाताल की एक नदी। पुं० गरुड़।
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शाल्मली वेष्ट  : पुं० [सं०] सेमल के वृक्ष का गोंद। मोचरस।
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शाल्मली-कंद  : पुं० [सं० ष० त० स०] शाल्मलि की जड़ जो वैद्यक में ओषधि के रूप में व्यवहृत होती है।
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शाल्मली-फलक  : पुं० [सं० शाल्मली-फल्+कन्] एक तरह की लकड़ी जिसपर रगड़कर शल्य तेज किये जाते थे (सुश्रुत)।
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शाल्व  : पुं० [सं० शाल+व] १. एक प्राचीन देश। २. उक्त देश का राजा या निवासी।
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शाव  : पुं० [सं०√शव् (गमनादि)+घञ्] १. बच्चा विशेषतः पशुओं आदि का बच्चा। शावक। २. मृत शरीर। शव। ३. घर में किसी के मरने पर होनेवाला अशौच। सूतक। ४. मरघट। मसान। ५. भूरा रंग। वि० १. शव संबंधी। शव का। २. मृत्यु के फलस्वरूप होनेवाला।
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शावक  : पुं० [सं० शाव+कन्] १. किसी पक्षी का बच्चा। २. अपराध। कसूर। ३. लोध का पेड़।
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शावर  : पुं० [सं० शव+णिच्-अरन्] १. पाप। गुनाह। २. अपराध। कसूर। ३. लोघ का पेड़। वि० पुं०=शाबर।
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शावरक  : पुं० [सं० शावर+कन्] पठानी लोध।
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शावरी  : स्त्री० [सं० शावर+अण्-ङीष्] कौंछ। केवाँच।
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शाश्वत  : वि० [सं० शश्वत+अण्] जो सदा से चला आ रहा हो और सदा चला-चलने को हो। नित्य (एटर्नल)। पुं० १. स्वर्ग। २. अंतरिक्ष। ३. शिव। ४. वेदव्यास।
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शाश्वतवाद  : पुं० [सं० ष० त] वह दार्शनिक सिद्धांत कि आत्मा एक रूप, चिरन्तन और नित्य है, उनका न तो कभी नाश होता है और न कभी उसमें कोई विकार होता है। ‘उच्छेदवाद’ का विपर्याय।
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शाश्वतिक  : वि० [सं० शाश्वत+ठक्—इक]=शाश्वत।
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शाश्वती  : स्त्री० [सं० शाश्वत-ङीष्] पृथ्वी।
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शाष्कुल  : वि० [सं० शष्कुल+अण्] मांस-मछली खानेवाला।
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शास  : पुं० [सं०√शास् (अनुशासन करना)+घञ्] १. अनुशासन। २. प्रशंसा। स्तुति।
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शासक  : पुं० [सं०√शास् (अनुशासन करना)+ण्वुल्—अक] [स्त्री० शासिका] १. वह जो शासन करता हो। शासन कर्ता। २. किसी शासनिक इकाई का प्रधान अधिकारी। (हाकिम)।
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शासन  : पुं० [सं०√शास्+ल्युट-अन] १. ज्ञान-वृद्धि के लिए किसी को कुछ बतलाना, समझाना या सिखाना। २. किसी को इस प्रकार अपने अधिकार, नियंत्रण या वश में रखना कि वह आज्ञा, नियम आदि के विरुद्ध आचरण या व्यवहार न कर सके। ३. किसी देश, प्रान्त या स्थान पर नियंत्रण रखते हुए उसकी ऐसी व्यवस्था करना कि किसी प्रकार की गड़बड़ी या अराजकता न होने पाए। हुकूमत। सरकार (गवर्नमेंट)। ५. वह प्रमुख अधिकारी और उसके मुख्य सहायकों का वर्ग जो उक्त प्रकार की व्यवस्था करते हों। हुकूमत। (गवर्नमेंट) ६. आज्ञा। आदेश। हुकुम। ७. वह आज्ञा पत्र जिसमें किसी को प्रबंध या व्यवस्था करने का अधिकार या आदेश दिया गया हो। ८. कोई ऐसा पत्र जिस पर कोई निश्चय, प्रतिज्ञा या समझौता लिखा गया हो। जैसे—पट्टा, शर्तनामा आदि। ९. राजा या राज्य के द्वारा निर्वाह आदि के लिए दान की हुई भूमि। १॰. इन्द्रिय-निग्रह। ११. शास्त्र। १२. दंड। सजा। १३. कायदा। नियम। वि० दंड देने या नष्ट करनेवाला (यौ० के अन्त में) जैसे— (क) पाक शासन=पाक नामक असुर को मारनेवाला, अर्थात् इन्द्र। (ख) स्मर शासन=कामदेव का नाश करनेवाले, अर्थात् शिव।
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शासन-कर  : पुं० [सं०] गुप्त काल में वह अधिकारी जो राजा या शासन का आदेश लिखकर निम्न अधिकारियों के पास भेजता था।
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शासन-कर्ता (तृ)  : पुं० [सं० ष० त० स०] वह जो शासन करता हो। शासक।
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शासन-तंत्र  : पुं० [सं० ष० त० स०] १. वे सिद्धान्त जिनके अनुसार शासन होता या किया जाता हो। २. शासन करने के लिए होनेवाली व्यवस्था।
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शासन-धर  : पुं० [सं० ष० त० स०] १. शासक। २. राजदूत।
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शासन-निकाय  : पुं० [सं०] वह समिति या निकाय जो किसी संस्था की प्रशासनिक व्यवस्था करने के लिए और सब प्रकार से उस पर नियंत्रण रखने के लिए नियुक्त किया गया हो। शासी-निकाय। (गवर्निग बाड़ी)।
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शासन-पत्र  : पुं० [सं० ष० त०] सरकारी हुकुम—नामा। राज्यादेश।
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शासन-प्रणाली  : स्त्री० [सं० ष० त०] किसी देश या राज्य पर शासन करने की कोई विशिष्ट प्रणाली या ढंग। शासन-तंत्र।
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शासन-वाहक  : पुं० [सं० ष० त० स०] १. वह जो राजा की आज्ञा लोगों तक पहुँचाता हो। २. राजदूत।
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शासन-शिला  : स्त्री० [सं० ष० त०] वह शिला जिस पर कोई राजाज्ञा लिखी हो। वह पत्थर जिस पर किसी शासक की घोषणा, लेख आदि अंकित हो।
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शासनहर  : पुं० [सं० ष० त०]=शासन-वाहक।
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शासनहारी (रिन)  : पुं० [सं० शासनहारिन्]=शासन वाहक।
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शासना  : स्त्री० [सं०] दंड। सजा।
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शासनिक  : वि० [सं० शासन+ठक्-इक] १. शासन से संबंध रखनेवाला। २. सरकारी। राजकीय। ३. शासन-विभाग का। जैसे—शासनिक अधिकारी।
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शासनी  : स्त्री० [सं० शासन-ङीष्] धर्मोपदेश करनेवाली स्त्री।
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शासनीय  : वि० [सं०√शास्+अनीयर्] १. जिस पर शासन करना उचित हो। २. जिस पर शासन किया जा सके। ३. दंड पाने के योग्य। दंडनीय। ४. जिसमें सुधार करना हो या किया जा सके।
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शासित  : भू० कृ० [सं०√शास् (शासन करना)+क्त] [स्त्री० शासिता] १. (प्रदेश) जो शासन के अधीन हो। २. (व्यक्ति) जो नियन्त्रण में हो। ३. जिसे दंड दिया गया हो। दंडित। पुं० १. प्रजा। २. निग्रह। संयम।
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शासी (सिन्)  : वि० [सं०√शस् (शासन करना)+णिनि] शासन करनेवाला।
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शासी निकाय  : पुं० [सं० ष० त०] राज्य, संस्था आदि की व्यवस्था और शासन (प्रबंध) करनेवाले लोगों का वर्ग, निकाय या संघ। शासन-निकाय। (गवर्निग बॉडी)।
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शास्ता (स्तृ)  : पुं० [सं०√शास् (शासन करना)+तृच्] १. कोई ऐसा व्यक्ति जिसे किसी प्रकार का शासन करने का पूर्ण अधिकार हो। २. अधिनायक। तानाशाह। शासक। ३. राजा। ४. पिता। बाप। ५. गुरु। शिक्षक। ६. निरंकुश शासक।
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शास्ति  : स्त्री० [सं० शास्+ति० बाहु] १. शासन दंड। सजा। २. कोई ऐसी दंडात्मक क्रिया या कार्रवाई जो किसी पूर्ण स्वतन्त्र व्यक्ति राज्य संस्था आदि के साथ उसे ठीक रास्ते पर लाने के लिए की जाय। अनुशास्ति (सैन्कशन)। ४. अर्थदण्ड या जुरमाने से भिन्न वह अल्प धन जो अनुचित या नियम विरुद्ध कार्य करनेवाले से वसूल किया जाता हो। (पेनैलिटी)
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शास्त्र  : पुं० [सं०√शास्+ष्ट्रन्] [वि० शास्त्रीय] १. कोई ऐसी आज्ञा या आदेश जो किसी को नियम या विधान के अनुसार आचरण या व्यवहार करने के संबंध में दिया जाय। २. कोई ऐसा धर्मग्रन्थ जिसमें आचार, नीति आदि के नियमों का विधान किया गया हो और जिसे लोग पवित्र तथा पूज्य मानते हों। विशेष—हिन्दुओं में प्राचीन ऋषि-मुनियों के बनाये हुए बहुत से ऐसे ग्रन्थ जो लोक में ‘शास्त्र’ के नाम से प्रसिद्ध और मान्य हैं। पर मुख्य रूप से शास्त्र चौदह कहे गये हैं यथा—चार वेद, छः वेदांग, पुराण मात्र, आन्वीक्षिकी, मीमासा और स्मृति। इनके सिवा शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष और अलंकार शास्त्री की गणना भी शास्त्रों में होती है। ३. किसी कला, विद्या या विशिष्ट विषय से संबंध रखनेवाला ऐसा विवेचन अथवा विवेचनात्मक ग्रन्थ जिसमें उसके सभी अंगो, उपांगों प्रक्रियाओं आदि का वैज्ञानिक ढंग से वर्णन और विश्लेषण हो (सायन्स) विशेष—‘विज्ञान’ और ‘शास्त्र’ में मुख्य अन्तर यह है कि विज्ञान तो उन तथ्यों पर आश्रित होता जो हमें अपने अनुभवों निरीक्षणों आदि के आधार पर प्राप्त होते हैं, परन्तु उन आध्यात्मिक तथ्यों का विवेचनात्मक स्वरूप है जो हमें उक्त प्रकार के अनुभवों निरीक्षणों आदि का अनुशीलन या मनन करने पर विदित होते हैं। इसके अतिरिक्त विज्ञान का क्षेत्र तो वही तक परिमित रहता है, जहाँ तक वस्तुओं का संबंध प्रकृति से होता है, परन्तु शास्त्र का क्षेत्र इसके उपरांत और आगे विस्तृत होकर उस सीमा की ओर बढ़ता है जहाँ उसका संबंध हमारी आत्मा और मनोभावों से स्थापित होता है। जैसे—ज्योतिष शास्त्र, शरीर शास्त्र आदि। ४. वे सब बातें जिनका ज्ञान पढ़ या सीखकर प्राप्त किया जाय। ५. किसी गंभीर विषय का किसी के द्वारा प्रतिपादित किया हुआ मत या सिद्धान्त।
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शास्त्र-तत्त्वज्ञ  : पुं० [सं० ष० त० स०] गणक। ज्योतिषी।
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शास्त्रकार  : पुं० [सं० शस्त्र√कृ (करना)+अण्, उपप० स०] शास्त्र विशेषतः धर्मशास्त्र की रचना करनेवाला।
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शास्त्रकृत्  : पुं० [सं० शास्त्र√कृ (करना)+क्विप्-तुक्] १. शास्त्र बनाने वाले अर्थात् ऋषि-मुनि। २. आचार्य।
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शास्त्रचक्षु (स्)  : पुं० [सं० ष० त०] १. शास्त्र की आँख, अर्थात् ज्योतिष। २. पंडित। विद्वान।
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शास्त्रज्ञ  : पुं० [सं० शास्त्र√ज्ञा (जानना)+क] १. शास्त्र का ज्ञाता। २. धर्मशास्त्रों का आचार्य।
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शास्त्रत्व  : पुं० [सं० शास्त्र+त्व] शास्त्र का धर्म या भाव।
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शास्त्रदर्शी  : पुं० [सं० शास्त्र√दृश् (देकना)+णिनि]=शास्त्रज्ञ।
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शास्त्रशिल्पी (ल्पिन्)  : पुं० [सं० शास्त्रशिल्प+इनि] १. काश्मीर देश। २. जमीन। भूमि।
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शास्त्राचरण  : पुं० [सं० शास्त्रआ√चर् (करना)+णिच्-ल्यु-अन] १. शास्त्रों का अध्ययन और मनन। २. शास्त्र में बतलाई हुई बातों का आचरण और पालन।
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शास्त्रार्थ  : पुं० [सं० ष० त०] १. शास्त्र का अर्थ। २. शास्त्र के ठीक अर्थ तक पहुँचने के लिए होनेवाला तर्क-वितर्क या विवाद। ३. किसी प्रकार का तात्त्विक वाद-विवाद।
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शास्त्री (स्त्रिन्)  : पुं० [सं० शास्त्र+इनि] १. वह जो शास्त्रों आदि का अच्छा ज्ञाता हो। शास्त्रज्ञ। २. धर्मशास्त्र का अच्छा ज्ञाता या पंडित। ३. आज-कल एक प्रकार की उपाधि जो कुछ विशिष्ट परीक्षाओं में उत्तीर्ण होनेवाले व्यक्तियों को मिलती है।
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शास्त्रीकरण  : पुं० [सं० शास्त्र+च्वि√कृ+ल्युट-अन-दीर्घ] किसी विषय की सब बातें व्यवस्थित रूप से एकत्र करके और शास्त्रीय ढंग से उनका विवेचन करके उसे शास्त्र का रूप देना।
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शास्त्रीय  : वि० [सं० शास्त्र+छ-ईय] १. शास्त्र-संबंधी। शास्त्र का। २. शास्त्र में बतलाये हुए ढंग या प्रकार का। जैसे—शास्त्रीय संगीत। ३. शास्त्रीय ज्ञान अथवा उसके शिक्षण से संबंध रखनेवाला। शैक्षणिक। ४. शास्त्रीय ज्ञान पर आश्रित। (एकेडेमिक)। जैसे—शास्त्रीय विवेचन।
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शास्त्रोक्त  : भू० कृ० [सं० स० त०] शास्त्र में कहा हुआ।
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शास्य  : वि० [सं०√शास् (शासन करना)+ण्यत्] १. जिसका शासन किया जा सकता हो या किया जाने को हो। २. सुधारे जाने के योग्य। ३. दंडित होने के योग्य।
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शाह  : पुं० [फा०] १. बहुत बड़ा राजा या महाराज। बादशाह। २. मुसलमान फकीरों की उपाधि। ३. ताश, शतरंज आदि में का बादशाह। वि० १. बहुत बड़ा या श्रेष्ठ (यौ० के आरंभ में) जैसे—शाहकार, शाहबलूत, शाहराह आदि। २. शाहों का सा। जैसे—शाह खर्च।
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शाह-सुलेमान  : पुं० [फा०] हुदहुद पक्षी का मुसलमानी नाम।
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शाहकार  : पुं० [फा०] कला संबंधी कोई बहुत बड़ी कृति।
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शाहखर्च  : वि० [फा०] [भाव० शाहखर्ची] बहुत अधिक खर्च करनेवाला।
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शाहखर्ची  : स्त्री० [फा०] १. शाहखर्च होने की अवस्था या भाव। २. शाहों की तरह किया जानेवाला अन्धाधुन्ध खर्च।
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शाहजादा  : पुं० [फा० शाहजादः] [स्त्री० शाहजादी] बादशाह का लड़का। राजकुमार।
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शाहजादी  : स्त्री० [फा०] १. बादशाह की कन्या। राजकुमारी। २. कमल के फूल के अन्दर का पीला जीरा।
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शाहतरा  : पुं० [फा०] पित्त पापड़ा।
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शाहदरा  : पुं० [फा०] किले या महल के आसपास की बस्ती।
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शाहदाना  : पुं० [फा० शाहदानः] १. बहुत बड़ा मोती। २. भाँग के बीज।
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शाहदारू  : पुं० [फा०] औषधों का राजा अर्थात् भाँग या शराब।
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शाहनर्शी  : पुं० [फा०] शह-नशीन।
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शाहबलूत  : पुं०=बलूत (वृक्ष)।
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शाहबाज  : पुं० [फा० शाहबाज] एक प्रकार का बाज।
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शाहबाला  : पुं०=शहबाला।
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शाहबुलबुल  : स्त्री० [अ० शाह+फा० बुलबुल] एक प्रकार की बुलबुल जिसका सिर काला सारा शरीर सफेद और दुम एक हाथ लंबी होती है।
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शाहरम  : स्त्री० [फा०] वह बड़ी और सीधी नली जो गले से नीचे की ओर जाती है और जिससे सांस लेते हैं। श्वास नली।
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शाहराह  : स्त्री० [फा०] १. वह बड़ा मार्ग जिस पर बादशाह की सवारी निकलती थी। २. बड़ा और चौड़ा रास्ता। राजमार्ग। ३. सड़क।
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शाहंशाह  : पुं० [फा०] सम्राट।
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शाहंशाही  : स्त्री० [फा०] १. शाहंशाह होने की अवस्था या भाव। २. शाहंशाह का कार्य या पद। वि० १. शाहंशाह संबंधी। २. शहंशाहों का सा। ३. उदारता, बड़प्पन आदि का सूचक।
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शाहाना  : वि० [फा० शाहानः] १. शाहों का। २. शाहों का सा। ३. शाहों के योग्य। ४. बहुत बढ़िया। पुं०=शहाना (राज०)।
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शाहिद  : पुं० [अ०] शहादत देनेवाला। गवाह। वि० मनोहर। सुन्दर।
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शाही  : वि० [फा०] १. शाह का। २. शाह द्वारा रचाया हुआ। ३. शाहों का सा। ४. राजसी। स्त्री० १. बादशाह का शासन अथवा राज्य काल। २. किसी प्रकार का आधिकारिक प्रकार, व्यवहार या स्वरूप। जैसे—नादिरशाही, नौकरशाही।
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