शब्द का अर्थ
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					शुद्ध					 :
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					वि० [सं०√शुध् (शोधन करना)+क्त] १. (पदार्थ) जिसमें किसी प्रकार का खोट या मैल न हो। खालिस। २. (पदार्थ या व्यक्ति) जिसमें कोई ऐब या दोष न हो। निर्दोष। ३. (व्यक्ति) जिसका धार्मिक या नैतिक दृष्टि से पतन न हुआ हो। जो भ्रष्ट न हुआ हो। ५. पाप से रहति। निष्पाप। ६. साफ और सफेद। ७. उज्जवल। चमकीला। ८. (गणना या लेख) जिसमें कोई अशुद्धि गलती या भूल न हो। ९. अनुपम। बेजोड़। १॰. (शास्त्र) जिसकी धार चोखी या तेज की गई हो। सान पर चढ़ाया हुआ। पुं० १. सेंधा नमक। २. काली मिर्च। ३. चाँदी। ४. एक तरह की घास। ५. शिव। ६. चौदहवें मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक। ७. संगीत शास्त्र में प्राचीन अथवा मार्ग रागों की संज्ञा। जैसे—भैरव, मेघ आदि राग।				 | 
			
			
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					शुद्ध-कर्मा (र्मन्)					 :
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					वि० [ब० स०] शुद्ध और पवित्र कर्म करनेवाला।				 | 
			
			
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					शुद्ध-तरंगिणी					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिणी।				 | 
			
			
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					शुद्ध-पक्ष					 :
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					पुं० [सं०] चान्द्र मास का शुक्ल पक्ष।				 | 
			
			
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					शुद्ध-भोगी					 :
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					स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की रागिनी।				 | 
			
			
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					शुद्ध-मंजरी					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।				 | 
			
			
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					शुद्ध-मनोहरी					 :
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					स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।				 | 
			
			
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					शुद्धत्व					 :
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					पुं० [सं० शुद्ध+त्व]=शुद्धता।				 | 
			
			
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					शुद्धमांस					 :
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					पुं० [सं०] पकाया हुआ ऐसा मांस जिसमें हड्डी न हो (वैद्यक)।				 | 
			
			
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					शुद्धा					 :
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					स्त्री० [सं० शुद्ध-टाप्] कुटज बीज। इन्द्र जौ।				 | 
			
			
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					शुद्धांत					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] १. प्राचीन भारत में राजाओं का अंतःपुर जो शुद्ध और पवित्र माना जाता था। २. दे० ‘धवलगृह’।				 | 
			
			
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					शुद्धांत पालक					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] वह जो अंतःपुर के द्वार पर पहरा देता हो।				 | 
			
			
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					शुद्धांता					 :
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					स्त्री० [सं० शुद्धांत-टाप्] रानी।				 | 
			
			
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					शुद्धात्मा (त्मन्)					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] शिव का एक नाम।				 | 
			
			
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					शुद्धाद्वैत					 :
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					पुं० [सं० शुद्ध+अद्वैत] वल्लभाचार्य का चलाया हुआ एक वेदान्तिक संप्रदाय। इसमें माया रहित ब्रह्म को अद्वैत तत्त्व माना जाता है और सारा जगत् प्रपंच उसी की लीला का विलास है।				 | 
			
			
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					शुद्धापह्नुति					 :
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					स्त्री० [सं० मध्य० स०] साहित्य में अपह्नुति अलंकार का एक भेद जिसमें अति सादृश्य के कारण सत्य होने पर भी उपमान को असत्य कहकर उपमान को सत्य सिद्ध किया जाता है।				 | 
			
			
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					शुद्धाशुद्धि					 :
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					स्त्री० [सं० द्व० स० या ब० स०] शुद्ध और अशुद्ध होने की अवस्था या भाव।				 | 
			
			
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					शुद्धि					 :
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					स्त्री० [सं०√शुध् (शोधन करना)+क्तिन्] १. शुद्ध होने की अवस्था, धर्म या भाव। शुद्धता। २. सफाई। स्वच्छता। पवित्रता। शुचिता। ४. चमक। द्युति। ५. ऋण आदि का चुकता होना या चुकाया जाना। परिशोध। ६. गणित में घटाने की क्रिया बाकी। ७. कोई ऐसा धार्मिक कृत्य जो किसी अपवित्र वस्तु को पवित्र अथवा धर्म-च्युत व्यक्ति को फिर से धर्म में मिलाने या धार्मिक बनाने के लिए किया जाय। ८. दुर्गा का एक नाम।				 | 
			
			
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					शुद्धिकंद					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] लहसुन।				 | 
			
			
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					शुद्धिपत्र					 :
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					पुं० [सं० मध्यम० स०] १. आज-कल ग्रन्थों आदि के अन्त् में लगाया जानेवाला वह पत्र जिससे सूचित हो कि कहाँ क्या अशुद्धि है। (एर्राटा)। २. प्राचीन भारत में वह व्यवस्था पत्र जो प्रायश्चित के उपरान्त शुद्धि के प्रमाण में पंडितों की ओर से दिया जाता था। (शुक्रनीति।				 | 
			
			
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					शुद्धोद					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] समुद्र। सागर।				 | 
			
			
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					शुद्धोदन					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] भगवान् बुद्धदेव के पिता का नाम।				 | 
			
			
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					शुद्धोदनि					 :
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					पुं० [सं० शुद्धोदन+इनि] विष्णु का एक नाम।				 | 
			
			
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