शब्द का अर्थ
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					शेष					 :
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					वि० [सं०√शिष् (मारना)+अच्०] १. औरों विशेषतः साथ वालों के न रह जाने पर भी जो अभी विद्यमान हो। २. अनावश्यक या आवश्यकता से अधिक होने पर जिसका आभोग या उपयोग न किया जा सका हो। ३. जो पूर्णतया क्षीण, नष्ट या समाप्त हो गया हो। ४. जिसका उल्लेख कथन आदि अभी होने को हो। जैसे—कहानी अभी खत्म नहीं हई शेष फिर सुनाऊँगा। पुं० १. बाकी बची हुई चीज या भाग। अवशिष्ट अंश। २. किसी घटना या व्यक्ति का स्मरण करनेवाला कोई बचा हुआ पदार्थ या वस्तु। स्मारक। ३. बड़ी संख्या में से छोटी संख्या घटाने से बची हुई संख्या। बाकी। ४. वह पद या शब्द जो किसी वाक्य का अर्थ या आशय पूरा और स्पष्ट करने के लिए लगाना पड़ता हो। अध्याहार। ५. अंत। समाप्ति। ६. परिणाम। फल। ७. मृत्यु। मौत। ८. नाश। ९. पुराणानुसार सहस फणों के सर्पराज जो पाताल में हैं और जिनके फनों पर पृथ्वी का ठहरा होना कहा गया है। १॰. रामचन्द्र के भाई लक्ष्मण जो उक्त सर्पराज के अवतार माने जाते हैं। ११. बलराम। १२. एक प्रजापित। १३. दस दिग्गजों में से एक। १४. परमेश्वर। १५. हाथी। १६. जमालगोटा। १७. पिगंल में टगण के पाँचवें भेद का नाम। १८. छप्पय छंद के पंचीसवें भेद का नाम जिसमें ४६ गुरु ६॰ लघु कुल १॰६ वर्ण या १५२ मात्राएँ होती हैं।				 | 
			
			
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					शेष जाति					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] गणित में बचे हुए अंक को लेने की क्रिया।				 | 
			
			
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					शेषधर					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] शेष अर्थात् सर्प को धारण करनेवाले शिवजी।				 | 
			
			
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					शेषनाग					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] सर्पराज शेष जो पुराणानुसार पृथ्वी को अपने सिर पर धारण करनेवाले माने गये हैं।				 | 
			
			
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					शेषर					 :
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					पुं०=शेखर।				 | 
			
			
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					शेषराज					 :
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					पुं० [सं०] १. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में दो मगण होते हैं। विद्युल्लेखा। २. शेषनाग।				 | 
			
			
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					शेषवाद					 :
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					पुं० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।				 | 
			
			
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					शेषव्रत					 :
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					पुं० [शेष+मतुप्, म=व] न्याय में अनुमान का एक भेद जिसमें किसी परिणाम के आधार पर पूर्ववर्ती कारण या घटना का अनुमान किया जाता है। जैसे—नदी की बाढ़ देखकर ऊपर हुई वर्षा का अनुमान।				 | 
			
			
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					शेषशायी (यिन्)					 :
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					पुं० [सं० शेष√शी+णिनि] शेषनाग पर शयन करनेवाले, विष्णु।				 | 
			
			
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					शेषा					 :
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					स्त्री० [सं० शेष-टाप्] देवताओं को चढ़ी हुई वस्तु जो दर्शकों या उपासकों को बाँटी जाय। प्रसाद।				 | 
			
			
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					शेषाचल					 :
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					पुं० [सं० मध्यम० स०] दक्षिण भारत का एक पर्वत।				 | 
			
			
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					शेषांश					 :
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					पुं० [सं० कर्म० स०] १. बचा हुआ अंश या भाग। २. अन्तिम अंश या भाग।				 | 
			
			
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					शेषोक्त					 :
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					भू० कृ० [सं० सप्त० त० स०] कइयों में से अन्त में कहा हुआ। जिसका उल्लेख सबके अन्त में हुआ हो।				 | 
			
			
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