शब्द का अर्थ
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					सँभाल					 :
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					स्त्री० [सं० संभार] १. सँभलने या सँभालने की क्रिया या भाव। २. कोई चीज सँभालकर रखने की क्रिया या भाव। देख-रेख। हिफाजत। ३. शरीर के अंग आदि सँभालकर रखने की शक्ति या समझ। तन-बदन की सुध। जैसे—वह इतना वृद्ध हो गया है कि उसे शरीर की भी सँबाल नहीं रहती। ४. प्रबंध। व्यवस्था। जैसे—गृहस्थी की संभाल। ५. किसी का किया जाने वाला पालन-पोषण।				 | 
			
			
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					सँभालना					 :
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					स० [हिं सँभलना का स०] १. ऐसी क्रिया करना जिससे कुछ या कोई सँभले। २. गिरते हुए को बीच में ही रोकना। बीच में पकड़ या रोक रखना। ३. बिगड़ते हुए के संबंध में ऐसी क्रिया करना वह अधिक बिगड़ने न पावे और धीरे-धीरे सुधरने लगे। ४. ऐसी देख-रेख रखना कि बिगड़ने या नष्ट न होने पाए। निगरानी करना। जैसे—घर की चीजें सँभालकर रखना। ५. किसी का पालन-पोषण करना। ६. उचित प्रबंध या व्यवस्था करना। ७. कर्तव्य, कार्य भार आदि अपने ऊपर लेकर उसका ठीक तरह से निर्वाह करना। जैसे—शासन का कार्य सँभालना। ८. यह देखना कि कोई चीज जितनी या जैसी होनी चाहिए उतनी वैसी ही है न। जैसे—अपना अब सामान सँभाल लो। ९. अपने आपको आवेग-युक्त या क्षुब्ध न होने देना।जैसे—उस पर क्रोध मत करना अपने आप को सँभाले रहना। संयो० क्रि०—देना।—लेना।				 | 
			
			
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					सँभाला					 :
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					पुं० [हिं० सँभलना] १. सँभलने या सँभालने की क्रिया या भाव। २. मरणासन्न व्यक्ति की वह स्थिति जिसमें वह कुछ समय के लिए थोड़ा चैतन्य हो जाता है और ऐसा जान पड़ता है कि उसकी स्थिति सँभल जायगी।—वह मरने से बच जायगा। उदा—बीमारे महब्बत ने लिया तह से सँभाला लेकिन वह सँभाले से सँभल जाय तो अच्छा-कोई शायर। क्रि०—प्र०—लेना।				 | 
			
			
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					सँभालू					 :
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					पुं० [हिं० सिंधुवार] श्वेत सिंधुवार वृक्ष।				 | 
			
			
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