शब्द का अर्थ
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					सास					 :
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					स्त्री० [सं० श्वसु] १. संबंध के विचार किसी की पत्नी या पति की माता। २. संबंध के विचार से उक्तस्थान पर पड़ने वाला स्त्री। जैसे—चचिया सास, ममिया सास,। ३. नाथ और सिद्ध सम्प्रदायों में मणिपुर चक्र में स्थित अपान वायु जो माया, मोह, वासना आदि की जननी मानी गई है। उदा०—सास ननद को मारअदल मैं दिहा चलाई।—पलटूदास।				 | 
			
			
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					सासण					 :
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					पुं०=शासन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सासत					 :
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					स्त्री०=साँसत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सासति					 :
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					स्त्री०=शास्ति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सासन					 :
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					पुं०=शासन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सासन लेट					 :
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					[?] एक प्रकार का सफेद जालीदार कपड़ा				 | 
			
			
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					सासना					 :
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					सं० [सं० शासन] १. शासन करना। २. दंड देना। ३. कष्ट देना। पुं०=शासन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सासरा					 :
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					पुं०=ससुराल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सासा					 :
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					स्त्री० [सं० संशय] संदेह। पुं० साँस।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सासु					 :
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					वि० [सं० तृ० त०] प्राणयुक्त। जीवित। स्त्री० सास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सासुर					 :
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					पुं० १. ससुर। २. ससुराल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सास्मित					 :
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					पुं० [सं० ब० स०, तृ० त० वा] शुद्ध सत्व को विषय बनाकर की जाने वाली भावना।				 | 
			
			
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					सास्वादन					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] जैनों में, निर्वाण प्राप्ति चौदह अवस्थाओं में दूसरी अवस्था।				 | 
			
			
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