शब्द का अर्थ
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					सीत					 :
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					पुं० [?] बहुत ही थोड़ा सा अंश। उदा०—हाँड़ी के चावलों की एक सीत थी।—वृन्दावनलाल। पुं०=शीत (सरदी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सीत-पकड़					 :
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					पुं० [सं० शीत+हिं० पकड़ना] १. शीत द्वारा ग्रस्त होने का रोग। २. हाथियों का एक रोग जो उन्हें सरदी लगने से होता है।				 | 
			
			
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					सीतल					 :
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					वि०=शीतल।				 | 
			
			
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					सीतल-चीनी					 :
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					स्त्री० दे० ‘कबाब चीनी’।				 | 
			
			
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					सीतल-पाटी					 :
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					स्त्री०[सं० शीतल+हिं० पाटी] १. पूर्वी बंगाल और असम के जंगलो में होने वाली एक प्रकार की झाड़ी जिससे चटाइयाँ बनती हैं। २. उक्त झाड़ी के डंठलों से बनी हुई चटाई। ३. एक प्रकार का धारीदार कपड़ा।				 | 
			
			
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					सीतल-बुकनी					 :
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					स्त्री० [सं० शीतल+हिं० बुकनी] १. सत्तू। सतुआ। २. साधुओं की परिभाषा में संतों की बानी जो हृदय को शीतल करती है।				 | 
			
			
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					सीतला					 :
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					स्त्री०=शीतला।				 | 
			
			
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					सीता					 :
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					स्त्री० [सं√षिज्ञ् (बाँधना)+क्त बाहु० दीर्घ-टाप] १. वह रेखाकार गड्ढा जो जमीन जोतते समय तल के फाल के धँसने से बनता है। कूंड। २. मिथिला के राजा सीरध्वज जनक की कन्या जो रामचन्द्र को ब्याही थी। जानकी। वैदेही। पद—सीता की रसोई= (क) बच्चों के खेलने के लिए बने हुए रसोई के छोटे-छोटे बरतन। (ख) एक प्रकार का गोदना। सीता की पंजीरी=कर्पूर बल्ली नाम की लता। ३. वह भूमि जिस पर राजा की खेती होती हो। राजा की निज की भूमि। सीर। ४. वह अन्न जो प्राचीन भारत में सीताध्यज प्रजा से लेकर एकत्र करता था। ५. दाक्षायणी देवी का एक नाम या रूप। ६. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में रगड़, तगड़, मगड़, यगड़ और रगड़ होते हैं। ७. आकाश गंगा की उन चार धाराओं में से एक जो मेरु पर्वत पर गिरने के उपरान्त हो जाती है। ८. मदिरा। शराब। ९. पाताल गारुणी नाम की लता। ककही या कंघी नाम का पौधा।				 | 
			
			
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					सीता-जानि					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] श्रीरामचन्द्र।				 | 
			
			
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					सीता-नाथ					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] श्रीरामचन्द्र।				 | 
			
			
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					सीता-पति					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] श्रीरामचन्द्र।				 | 
			
			
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					सीता-फल					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स० ब० स०] १. शरीफा। २. कुम्हड़ा।				 | 
			
			
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					सीता-यज्ञ					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] प्राचीन भारत में हल जोतने के समय होने वाला एक प्रकार का यज्ञ।				 | 
			
			
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					सीता-रमण					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] श्रीरामचन्द्र।				 | 
			
			
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					सीता-वट					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] १. प्रयाग और चित्रकूट के बीच स्थित एक वट वृक्ष जिसके नीचे राम और सीता विश्राम किया था। २. उक्त वृक्ष के आस पास का स्थान।				 | 
			
			
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					सीता-वल्लभ					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] श्रीरामचन्द्र।				 | 
			
			
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					सीतात्यय					 :
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					पुं० [सं०] किसानों पर होने वाला जुर्माना। खेती के संबंध का जुरमाना। (कौ०)				 | 
			
			
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					सीताधर					 :
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					पुं० [सं० सीता√घृ+अच्] सीता (हल) धारण करनेवाला बलराम।				 | 
			
			
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					सीताध्यक्ष					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] प्राचीन भारत में वह राज-अधिकारी जो राजा की निजी भूमि में खेतीबारी आदि का प्रबंध करता था।				 | 
			
			
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					सीतारवन, सीतारौन					 :
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					पुं०=सीता रमण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सीतावर					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] श्रीरामचन्द्र।				 | 
			
			
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					सीताहार					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का पौधा।				 | 
			
			
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					सीत्कार					 :
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					पुं० [सं०] मुँह से निकलने वाला सी-सी शब्द जो शीघ्रता पूर्वक साँस खीचने या लेने से होता है। सी-सी ध्वनि। विशेष—यह ध्वनि अत्यधिक आनन्द, पीड़ा, या सरदी के फलस्वरूप होती है।				 | 
			
			
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					सीत्कृति					 :
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					स्त्री० [सं०] सीत्कार। (दे०)				 | 
			
			
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					सीत्य					 :
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					पुं० [सं० सीत+यत्] १. धान्य। धान। २. खेत।				 | 
			
			
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