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सूई  : स्त्री० [सं० सूची] १. लोहे का वह नुकीला, पतला और लंबा उपकरण जिसके छेद में धागा पिरोकर कपड़े आदि सीते है। मुहा०–सूई का फावड़ा या भाला बनाना=जरा-सी बात को बहुत अधिक बढ़ाना। व्यर्थ विस्तार करना। आँखों की सूइयाँ निकालना=किसी विकट काम के प्रायः समाप्त हो चुकने पर उसका शेष थोड़ा-सा सुगम अंश पूरा करके उसका श्रेय पाने का प्रयत्न करना। २. किसी विशेष परिणाम, अंक, दिशा आदि की सूचक तार या काँटा। जैसे–घड़ी की सुई। ३. पौधे का छोटा पतला अंकुर। ४. कित्सा क्षेत्र में नली के आकार का एक प्रसिद्ध छोटा उपकरण, जिसकी सहायता से कुछ तरल दवाएँ शरीर के रगों या पट्टों में पहुँचाई जाती हैं। पिचकारी। श्रृंगक। (सीरिंज) ५. उक्त उपकरण से शरीर के रगों या पट्ठों पर तरल औषध आदि पहुँचाने की क्रिया। (इंजेक्शन) मुहा०–सुई लगाना=उक्त नली के द्धारा शरीर के अन्दर दवा पहँचाना—सूई लेना=रोगी का उक्त उपकरण द्वारा कोई दवा अपने शरीर में प्रविष्ट कराना।
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सूई—डोरा  : पुं० [हिं० सूई+डोरा] मालखंभ की एक कसरत।
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सूईकारी  : स्त्री० [हिं० सुई+फा० कारी (किया हुआ काम)] १. कपड़े पर सूई और डोरे की सहायता से (तीलीकारी से भिन्न) बनाये हुए बेल, बूटे आदि। सूची—शिल्प। (नीडल वर्क, स्टिच—क्रैफ्ट) २. चित्रकला में, उक्त आकार—प्रकार का अंकन।
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