शब्द का अर्थ
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					सौं					 :
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					अव्य० १. दे० ‘सों’। २. दे० ‘सा’ (समान)। उदा०–हरि सौं ठाकुर और न जन कौ।–सूर। ३. दे० ‘सौंह’ (सामने)। स्त्री० =सौंहि (शपथ)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंकारा					 :
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					पुं० [सं० सकाल] प्रातः काल। सवेरा। तड़का।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंकारे, सौंकेरे					 :
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					अव्य० [सं० सकाल, पुं० हिं० सकारे] १. तड़के। सबेरे। २. उचित या ठीक समय से कुछ पहले।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंघाई					 :
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					स्त्री० [हिं० सोहागा=सस्ता] अधिकता। बहुतायत। ज्यादती।				 | 
			
			
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					सौंचन					 :
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					स्त्री० [सं० शौच] मल—त्याग। शौच।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंचना					 :
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					स० [सं० शौच] १. शौच करना। मल—त्याग करना। २. मल त्याग के उपरांत हाथ-पैर आदि धोना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंचर					 :
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					पुं०=सोंचर (नमक)।				 | 
			
			
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					सौंचाना					 :
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					स० [हिं० सौंचाना का प्रे०] शोच करना या मल त्याग करना। (मुख्यतः बच्चों के संबंध में प्रयुक्त)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंज					 :
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					स्त्री० [फा० साज] साज (सामान)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंजा					 :
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					पुं० [हिं० सौंपना] १. सुपुर्द करना। सौंपना। २. जोतने बोने के लिए किसी को खेत देना। ३. आपस में होने वाला परामर्श या समझौता। पुं० [सं० श्वापद] जंगली (विशेषतः शिकारी) जानवर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंड़ (ड़ा)					 :
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					[हिं० सोना+ओढना] ओढने का (विशेषतः सोते समय ओढने का) भारी कपड़ा। जैसे–रजाई, लिहाफ आदि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंण					 :
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					पुं०=शकुन (राज०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंत					 :
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					स्त्री० [सं० सपत्नी] किसी स्त्री की दृष्टि से उसके पति या प्रेमी दूसरी पत्नी या प्रेमिका। सपत्नी। पद–सौतिया डाह। (दे० ) वि० [सं०] १. सूत से संबंध रखनेवाला। सूत का। २. सूत से बना हुआ। सूती।				 | 
			
			
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					सौंतुख					 :
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					अव्य० [सं० सम्मुख] १. आँखो के आगे। प्रत्यक्ष। सामने। २. आगे। सामने। पुं० आगा। सामना।				 | 
			
			
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					सौंदन					 :
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					स्त्री० [हिं० सौदना] रेह मिले पानी में कपड़े भिगोना। (धोबी)				 | 
			
			
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					सौंदना					 :
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					स० [सं० संधम्=मिलना] १. सौंदन का काम करना। २. दे० ‘सानना’।				 | 
			
			
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					सौंदर्ज					 :
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					पुं० =सौंदर्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंदर्य					 :
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					पुं० [सं०] १. सुंदर होने की अवस्था, गुण या भाव। सुंदरता। खूबसूरती। २. किसी वस्तु का वह गुण या तत्व समूह जो उसके आकार या रूप को आकर्षक और नेत्रों के लिए सुखद बनता है। सुंदरता (ब्यूटी)। विशेष–यह तत्व प्रायः व्यक्तिगत रुचि और विचार पर आश्रित रहता है, और कला के क्षेत्र तक की ही परिमित नहीं है। ३. संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।				 | 
			
			
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					सौंदर्यता					 :
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					स्त्री०=सौंदर्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंदर्यवाद					 :
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					पुं० [सं०] यह मत या सिद्धांत की कला में सौंदर्य की ही प्रधानता होनी चाहिए और मनुष्य की रुची उसी के प्रति रहनी चाहिए। (एस्थिटिसिज्म)				 | 
			
			
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					सौंदर्यवादी					 :
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					वि० [सं०] सौंदर्यवाद—संबंधी। सौंदर्यवाद का। पुं० वह जो सौंदर्यवाद का अनुयायी, पोषक या समर्थक हो।				 | 
			
			
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					सौंदर्यविज्ञान					 :
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					पुं० [सं०]=सौंदर्य—शास्त्र।				 | 
			
			
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					सौंदर्यशास्त्र					 :
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					पुं० [सं०] वह शास्त्र जिसमें कलात्मक कृतियों, रचनाओं आदि से अभिव्यक्त होनेवाला अथवा उनमें निहित रहनेवाले सौंदर्य का तात्विक, दार्शनिक और मार्मिक विवेचन होता है। (एस्थेटिक्स) विशेष–किसी सुंदर वस्तु को देखकर हमारे मन में जो आनन्ददायिनी अनुभूति होती है। उसके स्वभाव और स्वरूप का विवेचन तथा जीवन की अन्यान्य अनुभूतियों के साथ उसका समन्वय स्थापित करना इनका मुख्य उद्देश्य होता है।				 | 
			
			
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					सौंध					 :
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					पुं०=सौध।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० =सुगंध।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंधना					 :
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					स० [सं० सुगंधि] सुगंधित करना। सुवासित करना। वासना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स० सौंदना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंधा					 :
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					वि० , पुं० =सोंधा। उदा०–गंधी को सौंधने नहीं, जन—जन होथ बिकाय।–नन्ददास।				 | 
			
			
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					सौंधी					 :
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					वि० [?] १. अच्छा। २. उचित। ठीक। वाजिब।				 | 
			
			
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					सौंनना					 :
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					स०=सौंदना।				 | 
			
			
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					सौंनी					 :
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					पुं०=सुनार।				 | 
			
			
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					सौंपना					 :
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					स० [सं० समर्पण, प्रा० सउप्पण] १. किसी के अधिकार में देना। २. पूरी तरह से और सदा के लिए किसी को दे देना। ३. समर्पण करना।				 | 
			
			
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					सौंफ					 :
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					स्त्री० [सं० शतपुष्पा] १. पाँच—छः फुट ऊँचा एक पौधा जिसकी पत्तियाँ सोए की पत्तियों के समान ही बहुत बारीक और फूल सोए के समान ही रुछ पीले होते हैं। फूल लंबे सींको मे गुच्छों के रूप में लगतें हैं। २. उक्त पौधे के समान जो जीरे के रूप में होते हैं और मसाले के काम में आते हैं।				 | 
			
			
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					सौंफिया					 :
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					स्त्री० [हिं० सौंफ=इया (प्रत्य०)] १. सौंफ की बनी हुइ शराब। २. रूसा नाम की घस जब कि वह पुरानी और लाल हो जाती है।				 | 
			
			
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					सौंफी					 :
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					वि० [हिं० सौंफ] सौंफ संबंधी। सौंफ का। स्त्री० =सौंफिया (शराब)।				 | 
			
			
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					सौंभरि					 :
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					पुं०=सौभरि।				 | 
			
			
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					सौंर					 :
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					पुं० [हिं० सौरी] मिट्टी के बरतन भाड़े आदि जो संतानोत्पत्ति के दसवें दिन (अर्थात सूतक हटने पर) तोड़ दिये जाते हैं। स्त्री०=सौरी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंरई					 :
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					स्त्री० [हिं० साँवरा] साँवलापन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					सौंरा					 :
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					वि० =साँवला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					सौंराई					 :
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					स्त्री० =साँवलापन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					सौंसे					 :
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					वि० [सं० समस्त] सब। कुल। पूरा। (पुं० हिं०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सौंह					 :
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					स्त्री० [हिं० सौगंध] शपथ। कसम। (पश्चिम)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) क्रि० प्र०–करना।–खाना।–देना। अव्य०=सोंहें।				 | 
			
			
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					सौंहन					 :
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					पुं०=सोहन।				 | 
			
			
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					सौंही					 :
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					स्त्री० [?] एक प्रकार का हथियार। अव्य०=सौंहें (सामने)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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