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स्थावर  : वि० [सं०] [भाव० स्थावरता] १. इस प्रकार जड़ा, रखा या लगाया हुआ कि हट न सके। २. जो सदा एक ही जगह जमा रहता हो और वहाँ से कभी हटता न हो। (‘जंगम’ का विरु०) ३. अचल। गैर मनकूला। (इम्मूवेबुल) ४. उक्त प्रकार के पदार्थों से उत्पन्न होने या संबंध रखने वाला। जैसे–स्थावर विष। पुं० १. अचल संपत्ति। जैसे–खेत, बाग, मकान आदि। २. पर्वत। ३. अचेतन पदार्थ। जैसे–मिट्टी, बालू आदि। ४. वह पारिवारिक वस्तु जिसे बेचने का अधिकार किसी को नहीं होता है। ५. स्थूल शरीर।
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स्थावर-नाम  : पुं० [सं०] वह पाप कर्म जिसके उदय से जीव स्थावर काय (स्थूल शरीर) में जन्म ग्रहण करते हैं। (जैन)
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स्थावर-राज  : पुं० [सं०] हिमालय।
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स्थावर-विष  : पुं० [सं०] वह विषय जो वृक्षों की जड़ों, पत्तों, फल, फूल, छाल, दूध, सार, गोंद, धातु और कंद में होता है। स्थावर पदार्थों में होने वाला जहर। (वैद्यक)
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स्थावरता  : स्त्री० [सं०] स्थावर होने का अवस्था, गुण या भाव।
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