शब्द का अर्थ
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स्वरा :
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स्त्री० [सं०] ब्रह्मा की बड़ी पत्नी जो गायत्री को सपत्नी कही गई है। |
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समानार्थी शब्द-
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स्वरागम :
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पुं० [सं० स्वर+आगम] निरुक्त में किसी शब्द के दो वर्णों के बीच में किसी प्रकार कोई स्वर आ लगना। जैसे–कर्म से करम रूप बनने में अ का स्वरागम हुआ है। |
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स्वराघात :
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पुं० [सं० स्वर-आघात] किसी शब्द का उच्चारण करने, किसी को पुकारने, कुछ कहने, गाने आदि के समय किसी व्यंजन या स्वर पर साधारण से अधिक जोर देने या अधिक प्राण-शक्ति लगाने की क्रिया या भाव (ऐक्सेन्ट)। विशेष–साधारणतः ध्वनियों पर होनेवाला आघात या प्राण-शक्ति का प्रयोग हो प्रकार का होता है। पहले प्रकार में तो जिज्ञासा विधि, निषेध, विस्मय, संतोष, हर्ष आदि प्रकट करने के लिए होता है। उदा०–हरणार्थ जब हम कहते हैं–हम जायेंगे–तो कभी तो हमें ‘हम’ पर जोर देना अभीष्ट होता है, जिसका आशय होता है–हम अवश्य जाएँगे, बिना गये नहीं मानेंगे। ध्वनियों पर दूसरे प्रकार का आघात वह होता है, जिसमें या तो मात्रा खींचकर बढ़ाई जाती है (जैसे–क्या, जी, हाँ–आदि या उच्चारण ही कुछ अधिक या कम जोर लगाकर किया जाता है। वैदिक मंत्रों के उच्चारण के संबंध में जो उदात्त, अनुदात्त और स्वरित नामक तीन भेद हैं, वे इसी प्रकार के अन्तर्गत आते हैं। पाश्चात्य देशों की अँगरेजी आदि कुछ आर्य परिवारवाली भाषाओं में शब्दों के उच्चारण का शुद्ध रूप बतलानेवाला कुछ विशिष्ट प्रकार का स्वराघात भी होता है, जो छपाई-लिखाई आदि में एक विशिष्ट प्रकार का स्वराघात भी होता है, जो छपाई-लिखाई आदि में एक विशिष्ट प्रकार का स्वराघात भी होता है, जो छपाई-लिखाई आदि में एक विशिष्ट प्रकार के चिह्न (‘) से सूचित किया जाता है। |
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स्वराजी :
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पुं० [सं० स्वराज्य] १. वहो जो ‘स्वाराज्य’ नामक राजनीतिक पक्ष या दल का हो। २. स्वराज्य-प्राप्ति के लिए आन्दोलन तथा प्रयत्न करनेवाले राजनीतिक दल का मनुष्य। वि० स्वराज्य संबंधी। स्वराज्य का। |
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स्वराज्य :
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पुं० [सं०] १. अपना राज्य। अपना देश। २. वह अवस्था जिसमें शासन-सत्ता विदेशी शासकों के हाथ से निकलकर देशवासियों के हाथों में आ चुकी होती है। |
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स्वराट् :
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वि० [सं०] जो स्वयं प्रकाशमान हो और दूसरों को प्रकाशित करता हो। पुं० १. ईश्वर। २. ब्रह्मा। ३. वहा राजा जो किसी ऐसे राज्य का स्वामी हो, जिसमें स्वराज्य-शासन प्रणाली प्रचलित हो। ४. ऐसा वैदिक छंद जिसके सब पादों में से मिलकर नियमित वर्णों में दो वर्ण कम हों। |
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स्वरांत :
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वि० [सं०] (शब्द) जिसके अंत में कोई स्वर हो। जैसे–माला, रोटी आदि। |
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स्वरांतर :
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पुं० [सं०] दो स्वरों के उच्चारण के बीच का अन्तर या विराम। |
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स्वरापगा :
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स्त्री० [सं०] आकाश-गंगा। मन्दाकिनी। |
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स्वराभरण :
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पुं० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग। |
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स्वरालाप :
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पुं० [सं० स्वर+आलाप] संगीत में ऊँचे-नीचे स्वरों को नियत और नियमित रूप से लयदार और सुन्दर बनाकर उच्चारण करने की क्रिया या भाव। |
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स्वरालाप :
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स्त्री० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। |
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स्वरांश :
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पुं० [सं०] संगीत में, स्वर का आधा या चौथाई अंग। |
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स्वराष्टक :
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पुं० [सं०] संगीत में, एक प्रकार का संकर रोग जो बंगाली, भैरव, गांधार, पंचम और गुर्जरी के मेल से बनता है। |
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स्वराष्ट्र :
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वि० [सं०] जिसका संबंध अपने राष्ट्र से हो। फलतः अन्य राष्ट्रों, उपनिवेशों से संबंध न रखनेवाला। (होम) जैसे–स्वराष्ट्र मंत्रालय; स्वराष्ट्र मंत्री। पुं० १. अपना राष्ट्र या राज्य। २. सुराष्ट्र नामक प्राचीन देश। ३. तामस मनु के पिता, जो पुराणानुसार एक सार्वभौम राजा थे और जिन्होंने बहुत से यज्ञादि किए थे। |
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स्वराष्ट्र मंत्री :
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पुं० [सं०] किसी देश की सरकार या मंत्रिमण्डल का वह सदस्य जिसके अधीन राष्ट्र की आन्तरिक व्यवस्था और सुरक्षा-संबंधी विभागों की देख-रेख और संचालन हो। (होम मिनिस्टर) |
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