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स्वर्ण  : पुं० [सं०] १. सुवर्ण या सोना नामक बहुमूल्य धातु। कनक। २. धतूरा। ३. नाग केसर। ४. गौर स्वर्ण नामक साग। ५. कामरूप देश की एक नदी। वि० सोने की तरह का पीला।
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स्वर्ण ग्रीवा  : स्त्री० [सं०] कालिका पुराण के अनुसार एक पवित्र नदी जो नाटक शैल के पूर्वी भाग से निकली हुई मानी गई है।
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स्वर्ण नाभ  : पुं० [सं०] एक प्रकार के शालग्राम।
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स्वर्ण पत्र  : पुं० [सं०] सोने का पत्तर या तबक।
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स्वर्ण पाटक  : पुं० [सं०] सुहागा जिसके मिलाने से सोना गल जाता है।
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स्वर्ण फला  : स्त्री० [सं०] स्वर्ण कपाली। चंपा केला।
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स्वर्ण मय  : वि० [सं०] १. स्वर्ण से युक्ति। २. जो बिलकुल सोने का हो। जैसे–स्वर्णमय सिंहासन।
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स्वर्ण मानक  : पुं०=स्वर्णमान।
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स्वर्ण मीन  : पुं० [सं०] सुनहले रंग की एक प्रकार की मछली।
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स्वर्ण लता  : स्त्री० [सं०] १. मालकंगनी। ज्योतिष्मती। २. पीली जीवंती।
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स्वर्ण वर्णा  : स्त्री० [सं०] १. हलदी। २. दारुहलदी।
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स्वर्ण वल्ली  : स्त्री० [सं०] १. सोनावल्ली। रक्तफला। २. पीली जीवंती।
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स्वर्ण शिख  : पुं० [सं०] स्वर्णचूड़ या नीलकंठ नामक पक्षी।
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स्वर्ण-कूट  : पुं० [सं०] हिमालय की एक चोटी।
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स्वर्ण-केतकी  : स्त्री० [सं०] पीली केतकी।
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स्वर्ण-गिरि  : पुं० [सं०] सुमेरु पर्वत।
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स्वर्ण-गैरिक  : पुं० [सं०] सोनोगेरू।
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स्वर्ण-चूड़, स्वर्ण-चूल  : पुं० [सं०] नीलकंठ नामक पक्षी।
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स्वर्ण-जयंती  : स्त्री० [सं०] किसी व्यक्ति, संस्था आदि या किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के जन्म या आरम्भ होने के ५0 वर्ष पूरा होने पर होनेवाली जयंती (गोल्डेन जुबली)।
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स्वर्ण-द्वीप  : पुं० [सं०] आधुनिक सुमात्रा द्वीप का मध्ययुगीन नाम।
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स्वर्ण-पर्पटी  : स्त्री० [सं०] वैद्यक में एक प्रसिद्ध औषध, जो संग्रहणी रोग के लिए सबसे अधिक गुणकारी मानी जाती है।
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स्वर्ण-पुष्प  : पुं० [सं०] १. अमलतास। २. चंपा। ३. कीकर। बबूल। ४. कैथ। ५. पेठा।
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स्वर्ण-पुष्पा  : स्त्री० [सं०] १. कलिहारी। लागली। २. सातला नामक थूहर। ३. मेढ़ा-सिंगी। ४. अमलतास। ५. पीली केतकी।
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स्वर्ण-पुष्पी  : स्त्री० [सं०] १. स्वर्ण-केतकी। पीला केवड़ा। २. अमलतास। ३. सातला।
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स्वर्ण-प्रस्थ  : पुं० [सं०] पुराणानुसार जंबू द्वीप का एक उपद्वीप।
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स्वर्ण-फल  : पुं० [सं०] धतूरा।
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स्वर्ण-बीज  : पुं० [सं०] धतूरे का बीज।
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स्वर्ण-भाज  : पुं० [सं०] सूर्य।
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स्वर्ण-माक्षिक  : पुं० [सं०] सोनामक्खी नामक उपधातु।
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स्वर्ण-माता  : स्त्री० [सं० स्वर्णमातृ] हिमालय की एक छोटी नदी।
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स्वर्ण-मान  : पुं० [सं०] अर्थशास्त्र में, सिक्कों के संबंध की वह प्रणाली जिसमें कोई देश अपनी मुद्रा की इकाई या मानक का अर्ध सोने की एक निश्चित तौल के अर्ध के बराबर रखता है। (गोल्ड स्टैन्डर्ड) विशेष–जिस देश में यह प्रणाली प्रचलित रहती है, वहाँ (क) या तो सोने के ही सिक्के चलते हैं या (ख) ऐसी मुद्रा चलती है, जो तत्काल सोने के सिक्कों में बदली जा सकती है या (ग) लोग अपना सोना देकर टकसाल से उसके सिक्के ढलवा सकते हैं।
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स्वर्ण-मुखी (खिन्)  : स्त्री० [सं०] १. मध्ययुग में, 6४ हाथ लंबी, ३२ हाथ ऊँची और ३२ हाथ चौड़ी नाव। २. सनाय।
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स्वर्ण-मुद्रा  : स्त्री० [सं०] सोने का सिक्का। अशरफी।
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स्वर्ण-यूथिक, स्वर्ण-यूथी  : स्त्री० [सं०] पीली जूही। सोनजूही।
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स्वर्ण-रंभा  : स्त्री० [सं०] स्वर्ण कदली। चंपा केला।
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स्वर्ण-रस  : पुं० [सं०] १. मध्यकालीन तांत्रिकों और रासायनिकों की परिभाषा में ऐसा रस, जिसके स्पर्श से कोई धातु सोना बन जाता हो या बन सकती हो। २. परवर्ती रहस्यवादी साधकों या संप्रदायों में वह क्रिया या तत्त्व, जिसमें मन की चंचलता नष्ट होती हो और वह पूर्ण रूप से शांत हो जाता हो।
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स्वर्ण-रेखा  : स्त्री०=सुवर्ण-रेखा (नदी)।
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स्वर्ण-वज्र  : पुं० [सं०] एक प्रकार का लोहा।
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स्वर्ण-वर्ण  : पुं० [सं०] १. कण-गुग्गल। २. हरताल। ३. सोना गेरू। ४. दारुहलदी।
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स्वर्ण-विंदु  : पुं० [सं०] १. विष्णु। २. एक प्राचीन तीर्थ।
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स्वर्ण-श्रृंगी (गित्)  : पुं० [सं०] पुराणानुसार एक पर्वत जो सुमेरु पर्वत के उत्तर ओर माना जाता है।
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स्वर्ण-सिंदूर  : पुं०=रस-सिंदूर।
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स्वर्णकर्ष  : पुं० [सं०] सोने की एक प्राचीन तौल जो किसी के मत से दश माशे की और किसी के मत से सोलह माशे की होती थी।
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स्वर्णकाय  : वि० [सं०] जिसका शरीर सोने का अथवा सोने का-सा हो। पुं० गरुड़।
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स्वर्णकार  : पुं० [सं०] १. एक जाति जो सोने-चाँदी के आभूषण आदि बनाती है। २. सुनार।
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स्वर्णकारी  : स्त्री० [हिं० स्वर्णकार] सोने-चाँदी के गहने आदि बनाने का व्यवसाय। सुनारी।
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स्वर्णज  : वि० [सं०] १. सोने से उत्पन्न। २. सोने का बना हुआ। पुं० १. राँगा वंग। २. सोनामक्खी।
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स्वर्णजीवी (विन्)  : पुं० [सं०] स्वर्णकार। सुनार।
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स्वर्णद  : वि० [सं०] १. स्वर्ण या सोना देनेवाला। २. स्वर्ण या सोना दान करनेवाला।
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स्वर्णदी  : स्त्री० [सं०] १. मंदाकिनी। स्वर्गंगा। २. कामाख्या के पास की एक नदी।
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स्वर्णाकर  : पुं० [सं०] सोने की खान।
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स्वर्णाचल  : पुं० [सं०] उड़ीसा प्रदेश का भुवनेश्वर नामक तीर्थ।
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स्वर्णाद्रि  : पुं० [सं०]=स्वर्णाचल।
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स्वर्णाभ  : वि० [सं०] १. सोने की सी आभा या चमकवाला। २. सोने के रंग का। सुनहला। ३. (प्रतिभूति) जो सब प्रकार से सुरक्षित हो और जिसके डूबने या व्यर्थ होने की कोई आशंका न हो। (गिल्टएज्ड) पुं० हरताल।
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स्वर्णारि  : पुं० [सं०] १. गंधक। २. सीमा नामक धातु।
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स्वर्णिम  : वि० [सं०] सोने का। सुनहला।
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स्वर्णुली  : स्त्री० [सं०] एक प्रकार का क्षुप। हेमपुष्पी। सोनुली।
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स्वर्णोपधातु  : पुं० [सं०] सोनामक्खी नामक उपधातु।
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